जैसा हम अन्न ग्रहण करते हैं वैसा ही हमारा मन बन जाता है – योगी अजय राणा

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मुनिकी रेती (ऋषिकेश)- 05 मार्च 2025- अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के पांचवे दिन मानव उत्थान सेवा समिति के महात्मा सत्यबोधानंद जी महाराज ने कहा कि योग स्वयं को जानने की प्रक्रिया का नाम है हम सबको जानते हैं लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि स्वयं को नहीं जानते कि मैं आखिर हूं कौन? यदि हम स्वयं को जान जाए तो दुनिया का कोई भी संकट हम को विचलित नहीं कर सकता।

गढ़वाल मण्डल विकास निगम व पर्यटन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव में योग प्रशिक्षार्थियों को सम्बोधित करते हुए महात्मा सत्यबोधानंद जी महाराज ने कहा कि जब तक हम अपने अंतःकरण को पवित्र नहीं करेंगे तब तक हमारे विचारों में परिष्करण नहीं आ सकता, वस्तुतः विचारो की शुद्धता से ही व्यक्ति बाह्य व अंतःकरण की शक्ति को महसूस कर सही दिशा में आगे बढ़ सकता है।

मानव उत्थान सेवा समिति की दक्षिण अफ्रिका में धर्म प्रचारिका कौशल्या देवी ने कहा कि योग हमारी प्राचीन जीवन शैली है जो कि ऋषि-मुनियों द्वारा मानवता को दी गयी अमुल्य धरोहर है। उन्होंने कहा कि योग हमारे जीवन में संतुलन बनाने की दृष्टि व ज्ञान पैदा करता है। योग ‘युज’ धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ है जोड़ना। संयम और समाधि को जोड़ने को योग कहा गया है, योग का संदेश है कि स्वयं से जुड़ने की कोशिश करो और स्वयं से जुड़ कर परिवार, समाज, देश, विश्व व अखिल ब्रह्मांड से जुड़ो। योग स्वयं को जानने का दरवाजा है जहां से अध्यात्म का रास्ता निकलता है और इसी रास्ते से हम अपनी आत्मा तक पहुंच सकते हैं। दूसरी ओर सुबह के सत्र में योगाचार्य कपिल संघी ने कहा कि मन की गति कुछ और है और प्रकृति की गति कुछ और। जीवन में तभी आगे बढ़ा जा सकता है जब हम अपनी व प्रकृति की गति में तालमेल बिठा सकें। योगाचार्य विपिन जोशी ने कहा कि आज मनुष्य अर्थ कमाना तो सीख गया है किन्तु जीवन जीना भूलता जा रहा है। प्राचीन ऋषि-मुनि परम्परा के योग विज्ञान, आध्यात्म, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा ही आदर्श जीवन जिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सही खान-पान, सदआचरण, सदव्यवहार ही आदर्श जीवन के आधार हैं।

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योगीराज अजय राणा ने कहा कि संतुलित भोजन करने से व्यक्ति रोगों से दूर रहकर स्वस्थ जीवन जी सकता है। जैसा हम अन्न ग्रहण करते हैं वैसा ही हमारा मन बन जाता है, मन की एकाग्रता व्यक्ति को उठाती है और मन की चंचलता व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकती है। दूसरी ओर योगीनी उषा माता ने योग साधकों को कठिन योगाभ्यास कराते हुए कहा कि साधना से जीवन निखरता है बिना साधना के भौतिक व आध्यात्मिक जगत की कोई भी उपलब्धि व लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है। आचार्य रोहित ब्रह्मचारी द्वारा योग प्रतिभागियों को आनंद योग साधना का अभ्यास कराया गया और उसकी उपयोगिता के बारे में जानकारी दी गयी।

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अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव में आँचल डेरी, योगदा सत्संग सोसाईटी दिल्ली, स्पर्श हिमालय, नालंदा पुस्तकालय एवं अनुसंधान केन्द्र, आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा टि0ग0, हिमालय वनस्पति स्वायत सहकारिता, सदगुरू देव सियाग सिद्ध योग, ग्लोबल योगा एलाइन्स, उत्तराखण्ड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, वेदावी हर्बल टी, उद्योग विभाग उत्तराखण्ड, आदि के स्टाल लगाए गये हैं। योग महोत्सव में अब तक 410 पंजीकरण हो चुके हैं जिसमें 38 विदेशी प्रतिभागी शामिल हैं।

योग महोत्सव के पांचवे दिन कार्यक्रम में गढ़वाल मण्डल विकास निगम के प्रबंध निदेशक  विशाल मिश्रा, महाप्रबंधक प्रशासन विप्रा त्रिवेदी, महाप्रबंधक पर्यटन  दयानन्द सरस्वती, सहायक प्रधान प्रबंधक  एस.पी.एस. रावत, वरिष्ठ प्रबंधक कार्मिक श्री विश्वनाथ बेंजवाल, वित्त एवं लेखाधिकारी  चिंतामंणी भट्ट,  रघुवीर सिंह राणा,  दीपक रावत,  गिरवीर सिंह रावत,  विमला रावत, अनिता मेवाड, भारत भूषण कुकरेती,  कैलाश कोठारी,  आर0पी0 ढौंडियाल, श्री मुकेश उनियाल,  विजय नेगी,  विनोद राणा, श्री मेहरबान सिंह रांगड़,  आशुतोष नेगी,  मुकेश बेनीवाल,  अजयकांत शर्मा,  हिमांशु ढिंगिया समेत अनेक अधिकारी/कर्मचारी मौजूद रहे।

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