ऋषिकेश का मामला…३ पुलिस कर्मियों की उम्र कैद की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद


- २००४ का है मामला,गोली से एक महिला की हो गयी थी मौत ऋषिकेश में
- चार पुलिस बनाये गए थे आरोपी, एक की मौत हो गयी तीन की उम्र कैद की सजा को किया सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
- मामला ऋषिकेश थाना अंतर्गत का है, शराब तस्करी की शिकायत मिली थी ऋषिकेश पुलिस को
नई दिल्ली/ऋषिकेश : मामला ऋषिकेश पुलिस थाना क्षेत्र का है. तीन पुलिस कर्मियों को एक महिला की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा सुनाई गयी थी हाईकोर्ट के द्वारा. उनकी अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी उम्र कैद की सजा को निरस्त कर दिया है. मामला २००४ का है. ऋषिकेश में तैनात तीन पुलिसकर्मी की आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया. जिसमें 2004 में एक महिला की हत्या के मामले में तीन पुलिसकर्मियों की उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने हाई कोर्ट के दिसंबर 2012 के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर यह फैसला सुनाया है. आपको बता दें, मामले में हाई कोर्ट ने राज्य की अपील स्वीकार करते हुए तीन पुलिसकर्मियों सुरेंद्र सिंह, सूरत सिंह और असद सिंह नेगी की को हत्या के लिए बरी करने की ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया था. जिसमें आरोप लगाया गया था, एक महिला की मौत नवंबर 2004 में पुलिस की गोलीबारी में हुई थी. इस मामले में हाईकोर्ट ने एक अन्य पुलिसकर्मी जगदीश द्वारा दायर एक अलग अपील को भी खारिज कर दिया था. जिसने गोली चलाई थी और बाद में उसे दोषी भी ठहराया गया था. ट्रायल कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. पीठ ने कहा कि हेड कांस्टेबल जगदीश ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. लेकिन 16 जनवरी 2025 को उसकी मृत्यु हो जाने के कारण इसे निस्तारित कर दिया गया. आपको बता दें, 15 नवंबर 2004 को ऋषिकेश पुलिस थाने को सूचना मिली कि एक कार में अवैध शराब की तस्करी की जा रही है. कांस्टेबल जगदीश सिंह ने सुरेंद्र सिंह सूरत सिंह और असद सिंह नेगी के साथ कार को रोकने के लिए एक कार में पीछा किया. पुलिसकर्मियों ने कार को देखा और रोकने का प्रयास किया. जब वाहन चालक ने कार नहीं रोकी तो जगदीश ने गोली चलाई, जो आगे की सीट पर बैठी महिला को लगी जिससे उसकी मौत हो गई. 16 नवंबर 2004 को एक लिखित शिकायत के आधार पर पुलिस कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. उसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अब फैसला दिया है.