ग्रामीण इलाके में काफी हद तक “सड़कों की हालत” परिणाम तय करेगी इस बार ऋषिकेश में
ऋषिकेश : नगर निगम/निकाय चुनाव का बिगुल बज चुका है….लेकिन इस बार ऋषिकेश की बात करें तो काफी हद तक अगर ग्रामीण इलाके की बात करें तो वो भी चुनाव को आमजन की दृष्टि से देखें तो “सडकें तय करेंगी परिणाम…. वो चाहे कोई भी हो सत्ता पक्ष का हो या विपक्ष या निर्दलीय. सभी को इस बार प्रचार करते समय प्रत्याशियों को गलियों में घुसने में हिचकिचाहट हो रही है. कहीं कोई न पूछ न ले…दो ढाई साल से ये सड़कें खुदी हुई हैं….ये टूटी हुई हैं….या कटिंग कर के छोड़ दी….लोग गिर पड़ रहे हैं, चोटिल हो रहे हैं…कौन करेगा ये ? कब तक होंगी अब ? इत्यादि, खैर….अभी तक, कभी पानी की लाइन, कभी सीवर लाइन डल रही है करके जनता को विकास की अफीम सूंगा दी जाती रही….चुनाव आये तो JCB का पंजा चलने लग गया गलियों में….JCB की गडगढ़ाहट से लोग खुश नहीं हैं बल्कि बेपरवाह से दिखाई दे रहे हैं. उनको कोई ख़ुशी नहीं बल्कि और टेंशन हो रही है.
ग्रामीण इलाके की बात करें तो शिवाजी नगर, 20 बीघा, मीरा नगर, बापू ग्राम, सुमन विहार, मनसा देवी, गुमानीवाला, अमित ग्राम इत्यादि…ऐसे इलाके हैं जहाँ पर खुदाई कर के छोड़ दी गयी हैं सड़के. कहीं पर खुदाई जारी है. लेकिन कोई पूछने वाला नहीं है. कोई फोलो करने वाला नहीं है…..हर जगह जनता विरोध या फिर मांग नहीं कर सकती है. अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों की नैतिक जिम्मेदारी गंगा नहाने क्योँ चली जाती है ? लोग कई जगह लोग चोटिल भी हो रहे हैं.सबसे ख़ास बात है, एक नहीं दो नहीं बल्कि ढाई साल से ये हालत है. कई पर्व गए लेकिन सड़कों लोगों को नचाने में लगे हुए हैं. ऐसे में हर कोई यही कह रहा है, सड़कें तो बनी नहीं….देखिये. कहाँ से जाएँ और कैसे जाएँ हम लोग. बारिश में और परेशानी. स्कूली बच्चे, गर्भवती महिलाएं, मेहमान रिश्तेदार, बुजुर्ग कैसे जाएँ ? बहुत गंभीर और बड़ा सवाल है…जो दरवाजे पर नीबू मिर्च की नजर की तरह झूले जा रहा है.
विकास का आइना लोग देखकर या तो खामोश हो जाते हैं या फिर क्रोधित. यह खुबसूरती है हमारे लोकतंत्र की जन के प्रतिनिधि चुनने की. जिसे जनप्रतिनिधि कहते हैं. अब यही जनप्रतिनिधि अब लोगों के गेट पर जायेंगे, गलियों में घुसेंगे तो लोग जवाब नहीं देंगे तो अपने मत के अनुसार वे जवाब देंगे इस बार. लोगों का कहना है, छोटा चुनाव है, अपना चुनाव है, यानि साफ़ सफाई, गलियाँ मोहल्ले, बिजली पानी का….तो हम स्थानीय मुद्दों, समस्याओं को ही तो रखेंगे सामने. जो रखना भी चाहिए. ऐसे में कैडर, संगठन, समर्पण जैसे अल्फाज काफी पीछे छूट जाते हैं. whatsapp यूनिवर्सिटी का जमाना है. एक मिनट में आपके पास चीजें परोश कर सामने आ जाएँगी. कब तक छुपायेंगे ? कहाँ तक छुपायेंगे ? इसमें कोई शक नहीं पानी की लाइन और शीवर की लाइन के नाम पर ऋषिकेश में लोग जरुर प्रताड़ित हुए हैं. विकास का यह तरीका किसी भी सूरत में स्वीकार करने लायक नहीं है. इतना लंबा टाइम निर्माण का, काम की प्रक्रिया चले और परिणाम अभी तक सिफर. एक दो जगह तो ऐसा हुआ, हॉट मिक्स सडक बनने लग गयी वो भी सर्दी में. अंदाजा लगाइए वहां पर लोग जागरूक थे, बंद करवा दिया काम ? जब सवाल पूछे तो ख़ामोशी तैरने लगी अधिकारी की तरफ से. ऐसा ही सीवर लाइन डल रही है, इतने बड़े मोहल्ले में इतना छोटा पाइप ??? कौन समझे, कैसे समझाए, बताया जा रहा अहि प्रेसर तेज होगा…अब किस प्रेसर की बात कर रहे हैं अधिकारी ही जानें. लोगों की गाड़ियाँ, स्कूटी/मोटर साइकिल हिलने लग गयी हैं अब. सड़कों पर हिचकोले खाते खाते. जन प्रतिनिधि, शासन प्रशासन से जुड़े हुए अपनी कुर्सी, पद, कमीशन, लालच के नीचे मदमस्त हैं. कहते हैं कर्म का परिणाम यहीं मिल जाता है, फिर ये तो गंगा का किनारा है….गंगा की रेती है न लेती है न देती है….. बातें देखो तो लम्बी लम्बी…ऐसी राजनीती, जनप्रतिनिधि, अधिकारी के कर्मों का घड़ा भी जल्द भरेगा इसमें कोई दो राय नहीं..!