ऋषिकेश : कहाँ से आयी ये रात के अँधेरे में ये “नंदी” त्रिवेणी घाट पर ? नहीं ले रहा है अब कोई सुध, हो सकती है प्राचीन मूर्ति

क्या यह चोरी कर के ला रहा था कहीं से कोई, और चुनाव के समय सघन चेकिंग की डर से छोड़ गया यहाँ पर

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ऋषिकेश : त्रिवेणी घाट पर शनिवार देर रात कोई ब्यक्ति गाड़ी से उतारकर एक खंडित नंदी को रख गया. नंदी भगवान् जो पथ्हर के बने हुए हैं त्रिवेणी घाट की सीढ़ियों पर गंगा नदी के सामने रख के चला गया. वहां पर मौजूद डोल बाबा ने ‘नेशनल वाणी’ से बात करते हुए बताया खंडित मूर्ति है यह ऐसा क्योँ रख के चला गया यहाँ पर. मंदिर के सामने ? जबकि उनका कहना था कोई ब्यक्ति गाड़ी से उतार कर यहाँ पर रख के चला गया. ऐसे में मूर्ति देखने पर प्रतीत हो रहा है कोई प्राचीन मूर्ति है और कोई अगर रख गया तो क्योँ रख के चला गया ? सवाल खड़े हो रहे हैं. पार्किंग से जैसे ही सीढ़ियों में नीचे उतारते हैं वहीँ पर रखी हैं ये नंदी की मूर्ति. क्या मूर्ति चोरी की थी ? चुनाव के वक्त चेकिंग चल रही है गाड़ियों की, कहीं पकड़ा न जाए इसलिए यहाँ पर रख कर चला गया है ? क्या यह चोरी कर के ले जाई जा रही थी ? या फिर खंडित मूर्ति यहाँ पर रखनी थी तो दिन के समय क्योँ नहीं रखी गयी. रात के समय ही क्योँ रख के गया. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं. मूर्ति को देख कर लगा रहा है प्राचीन मूर्ति है पत्थर की. ऐसे में खंडित मूर्ति भी है तो वह किसी म्यूजियम या सरकार के कब्जे में रखा जाना चाहिए ताकि पुरानी दरोहार के तौर पर रखा जा सकता है. कहाँ से आयी मूर्ति यह रहस्य का विषय है. (ASI) भारतीय पुरातत्व बिभाग की मूर्ति को कब्जे में लेकर बता सकता है कितनी पुराणी है यह मूर्ति. ऐसे में वहां पर महिलायें जो मछली का दाना बेचती हैं और बाबा लोग जो वहां पर भगवा वस्त्र में बैठे होते हैं उनका भी कहना था रात में कौन रख गया पता नहीं सुबह देखा हमने. इस तरफ से खंडित मूर्ति नहीं रखनी चाहिए. उनको यह नहीं पता था अगर यह खंडित मूर्ति भी है तो यह अध्यात्म और पुरातत्व बिभाग की दृष्टि से महत्वपूर्ण मूर्ति हो सकती है.

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कौन हैं नंदी ?
भगवान शिव, माता पार्वती और नंदीश्वर…हिन्दू धर्म में, नन्दी या नन्दीश्वर कैलाश के द्वारपाल हैं, जो शिव का निवास है। पुराणों के अनुसार वे शिव के वाहन तथा अवतार भी हैं जिन्हे बैल के रूप में शिवमंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाता है। संस्कृत में ‘नन्दि’ का अर्थ प्रसन्नता या आनन्द है। नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है।शैव परम्परा में नन्दि को नन्दिनाथ सम्प्रदाय का मुख्य गुरु माना जाता है, जिनके 8 शिष्य हैं- सनक, सनातन, सनन्दन, सनत्कुमार, तिरुमूलर, व्याघ्रपाद, पतंजलि, और शिवयोग मुनि। ये आठ शिष्य आठ दिशाओं में शैवधर्म का प्ररसार करने के लिए भेजे गये थे। शिलाद मुनि इनके पिता थे. जिन्होंने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने के लिए तपस्या की थी तथा उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे. भूमि ज्योत ते समय शिलाद को भूमि से एक बालक की प्राप्ति हुई थी. जिसका नाम उन्होंने नंदी रखा.

एक बार नंदी पहरेदारी का काम कर रहे थे। शिव पार्वती के साथ विहार कर रहे थे। भृगु उनके दर्शन करने आये- किंतु नंदी ने उन्हें गुफा के अंदर नहीं जाने दिया। भृगु ने शाप दिया, पर नंदी निर्विकार रूप से मार्ग रोके रहे। ऐसी ही शिव-पार्वती की आज्ञा थी। एक बार रावण ने अपने हाथ पर कैलाश पर्वत उठा लिया था। नंदी ने क्रुद्ध होकर अपने पांव से ऐसा दबाव डाला कि रावण का हाथ ही दब गया। जब तक उसने शिव की आराधना नहीं की तथा नंदी से क्षमा नहीं मांगी, नंदी ने उसे छोड़ा ही नहीं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग क्या है और क्या करता है ?
भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण (भा.पु.स.) भारत की सांस्‍कृतिक विरासतों के पुरातत्‍वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिए एक प्रमुख संगठन है। इसका प्रमुख कार्य राष्‍ट्रीय महत्‍व के प्राचीन स्‍मारकों तथा पुरातत्‍वीय स्‍थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है। इसके अतिरिक्‍त, प्राचीन संस्‍मारक तथा पुरातत्‍वीय स्‍थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार यह देश में सभी पुरातत्‍वीय गतिविधियों को विनियमित करता है। यह पुरावशेष तथा बहुमूल्‍य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है। यह संस्‍कृति मंत्रालय के अधीन है।

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राष्‍ट्रीय महत्‍व के प्राचीन स्‍मारकों तथा पुरातत्‍वीय स्‍थलों तथा अवशेषों के रखरखाव के लिए सम्‍पूर्ण भारत को 24 मंडलों में विभाजित किया गया है। संगठन के पास मंडलों, संग्रहालयों, उत्‍खनन शाखाओं, प्रागैतिहासिक शाखा, पुरालेख शाखाओं, विज्ञान शाखा, उद्यान शाखा, भवन सर्वेक्षण परियोजना, मंदिर सर्वेक्षण परियोजनाओं तथा अन्‍तरजलीय पुरातत्‍व स्‍कन्‍ध के माध्‍यम से पुरातत्‍वीय अनुसन्धान परियोजनाओं के संचालन के लिए बड़ी संख्‍या में प्रशिक्षित पुरातत्‍वविदों, संरक्षकों, पुरालेखविदों, वास्तुकारों तथा वैज्ञानिकों का कार्यदल है। वर्तमान में 3650 से अधिक प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व का अवशेष उपस्थित हैं। ये स्मारक विभिन्न काल से संबंधित हैं, प्रागैतिहासिक काल से औपनिवेशिक काल तक और विभिन्न भौगोलिक संरचना में स्थित हैं। वे मंदिरों, मस्जिदों, कब्रों, चर्चों, कब्रिस्तान, किलों, महलों, कदम-कुएं, रॉक-कट गुफाओं और धार्मिक वास्तुकला के साथ-साथ प्राचीन घाटियों और स्थलों को भी शामिल करते हैं, जो प्राचीन निवास के अवशेषों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विभिन्न मंडलों के माध्यम से यह स्मारक और साइटें संरक्षित और रक्षित की जाती हैं, जो पूरे देश में फैली हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के उपकार्यालय इन स्मारकों और संरक्षण गतिविधियों पर शोध करते हैं। इसका मुख्यालय देहरादून में है और इसकी विज्ञान शाखा आगरा में स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) ब्रिटिश पुरातत्वशास्त्री विलियम जोन्स, द्वारा 15 जनवरी, 1984 को स्थापित एशियैटिक सोसायटी का उत्तराधिकारी है। सन 1988 में इसका पत्र द एशियाटिक रिसर्चेज़ प्रकाशित होना आरम्भ हुआ था और सन 1814 में इसका प्रथम संग्रहालय बंगाल में बना।

ए.एस.आई. अपने वर्तमान रूप में सन 1861 में ब्रिटिश शासन के अधीन सर ऐलेक्ज़ैंडर कनिंघम द्वारा, तत्कालीन वाइसरॉय चार्ल्स जॉन कैनिंग की सहायता से स्थापित हुआ था। उस समय इसके क्षेत्र में अफगानिस्तान भी आता था। सन 1944 में, जब मॉर्टिमर व्हीलर महानिदेशक बने, तब इस विभाग का मुख्यालय, रेलवे बोर्ड भवन, शिमला में स्थित था। स्वतंत्रता उपरांत, यह सन 1958 की प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष धारा के अन्तर्गत आया।

अभी हाल ही में खुदाई में निकले अवशेषों में हर्ष-का-टीला, थानेसर, हरियाणा के अवशेशः हैं। इनसे कुशाण काल से मध्यकाल के भारत की सांस्कृतिक झलक मिलती है।

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