ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन में पर्यटकों को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस पर कराया मिशन लाइफ और परम्परागत, प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली अपनाने संकल्प

- भारतीय संस्कृति में सशक्तिकरण एवं सृजनात्मक का अद्भुत संगम
- परमार्थ निकेतन से प्रवाहित हो रही हैं संस्कारों की गंगा
- भारत सहित विभिन्न देशों के पर्यटक परमार्थ निकेतन आकर प्राप्त कर रहे हैं संस्कार, परम्परागत भारतीय जीवन शैली और दर्शन की जानकारी
- राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस पर कराया मिशन लाइफ और परम्परागत, प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली अपनाने संकल्प
- हरित ऊर्जा-पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा, भारतीय दर्शन वृहद और विशाल :स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन में भारत सहित विश्व के अनेक देशों से न केवल योग जिज्ञासु बल्कि संस्कार, भारतीय संस्कृृति, दर्शन व परम्परागत जीवन शैली के प्रति जिज्ञासा रखने वाले अनेक पर्यटक और परिवार नियमित रूप से आते हैं, जो आश्रम की आध्यात्मिक गतिविधियों में सहभाग कर भारतीय संस्कृति के अनुरूप जीवन जीने की प्रेरणा लेते हैं।
भारत की राजधानी दिल्ली से उद्योगपतियों एक ग्रुप परमार्थ निकेतन, गंगा आरती से प्रभावित होकर इस दिव्य धाम के दर्शन करने आया। दल के सदस्यों ने बताया कि जी – 20 प्रतिभागियों की गंगा आरती के ऑनलाइन दर्शन कर उससे प्रभावित होकर उन्होंने गंगा जी की आरती को न केवल अपनी टी शर्ट बल्कि अपने दिलों पर भी अंकित कर लिया है। यहां से पूज्य स्वामी जी द्वारा दिये जा रहें अध्यात्म, पर्यावरण, संस्कृति व संरकारों के संरक्षण के संदेश उन्हें अत्यधिक प्रभावित करते हैं।परमार्थ निकेतन में परिवार व समुदाय साथ मिलकर भक्ति के रंग में रंगने हेतु आते हैं। भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से ’अध्यात्म की गंगा’ की बात की; परिवारों में अध्यात्म व संस्कारों के रोपण की बात की; अधिकारों के साथ कर्तव्यों की बात की उनसे जनसमुदाय को अत्यंत प्रभावित किया, श्रद्धालु अपने परिवार व मित्रों के साथ आ रहे हैं।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति न केवल सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति हैं बल्कि वृहद व विशाल भी है। भारतीय संस्कृति अत्यंत उदात्त, समन्वयवादी एवं जीवंत हैं, इसमें जीवन के प्रति वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोण का अद्भुत समन्वय है। स्वामी ने कहा कि संस्कारों के बिना जीवन में समृद्धि तो हो सकती है परन्तु शान्ति नहीं हो सकती, भौतिकता तो हो सकती है परन्तु सुख व आनन्द नहीं हो सकता, सफलता तो हो सकती है परन्तु प्रसन्नता नहीं हो सकती इसलिये जीवन में संस्कार अत्यंत आवश्यक है।स्वामी ने कहा कि भारत की संस्कृति ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्’ के सिद्धांत में गहरी आस्था रखती हैं इसमें मानवता के सिद्धांत समाहित हैं इसलिये हमारा और हमारी संस्कृति का अस्तित्व सुरक्षित है। भारतीय संस्कृति में सशक्तिकरण एवं सृजनात्मक का अद्भुत संगम है।