न्याय और कानून मंत्री, भारत सरकार अर्जुन राम मेघवाल का परमार्थ निकेतन पहुंचे, गंगा आरती में किया सहभाग

- स्वामी चिदानन्द सरस्वती से भेंट कर विभिन्न समसामयिक विषयों पर हुई चर्चा
- परमार्थ निकेतन के ऋषिकुमार और विश्व के विभिन्न देशों से परमार्थ निकेतन योग की शिक्षा ग्रहण करने आये योग जिज्ञासुओं ने पुष्पवर्षा कर मंत्री का अभिनन्दन किया
- महाकुम्भ प्रयागराज में सहभाग हेतु विशेष आमंत्रण दिया मंत्री को
- मंत्री को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा किया भेंट


स्वामी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण भी एक महत्वपूर्ण आयाम है, जो हमारे अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है। पर्यावरण की देखभाल और संरक्षण हमारे भविष्य की स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। वनों की कटाई, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग के कारण हमारा पर्यावरण संकट में है, और इसके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है इसलिये पर्यावरण न्याय की नितांत आवश्यकता है ताकि हम अपने समाज को एक न्यायपूर्ण, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील और आध्यात्मिकता से समृद्ध बना सकते हैं। अर्जुन राम मेघवाल की जीवन यात्रा भारतीय संस्कृति और संस्कारों का जीवंत प्रतीक है, जो वर्तमान पीढ़ी को नैतिकता, कर्तव्यपरायणता और समर्पण का संदेश देती है। उन्होंने अपने जीवन में भारतीय संस्कृति और संस्कारों का पालन हमेशा प्रमुख स्थान दिया है।अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि पूज्य स्वामी का जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि कैसे भारतीय संस्कृति और संस्कारों का पालन कर समाज और राष्ट्र की उन्नति में योगदान दिया जा सकता है। उनका जीवन प्रेरणादायक है और हमें उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। वे भारतीय संस्कृति और संस्कारों के एक जीवंत प्रतीक हैं, जिनके कार्यों और नीतियों से समाज को नई दिशा मिलती है।योग जिज्ञासुओं ने कहा कि हम सभी अलग-अलग देशों से आये हैं परन्तु 15 दिनों से हम यहां वेदमंत्रों की शिक्षा ग्रहण कर रहे है। यहां के वातावरण, संस्कार व संस्कृति ने हम सभी को अत्यंत प्रभावित किया है। मानों हमारा जीवन ही बदल गया है। भारतीय परिधान, परिवेश, पकवान सब कुछ अद्भुत है। योग जिज्ञासुओं ने मंत्री, पूज्य संतों, स्वच्छता कर्मियों और ऋषिकुमारों सभी को भोजन परोसा। उन्होंने वेदमंत्रों का उच्चारण भी किया।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अर्जुन राम मेघवाल जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट करते हुये कहा कि यह प्रकृति के प्रति सम्मान, सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है।