प्रयागराज: परमार्थ संगम तट पर प्रतिदिन संगम आरती का आह्वान किया स्वामी चिदानंद सरस्वती ने

- स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में संगम के पावन तट पर भारतीय संस्कृति व मंत्रों का उद्घोष*परमार्थ संगम तट, प्रयागराज में की गंगा आरती
प्रयागराज/ ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में सोमवार को पावन परमार्थ संगम घाट पर भारतीय संस्कृति, वेदमंत्रों और आध्यात्मिक शक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। परमार्थ संगम घाट, प्रयागराज पर आयोजित दिव्य गंगा आरती से अरैल की पावन भूमि एक बार फिर अध्यात्म, संस्कृति और समर्पण की उज्ज्वल ऊर्जा से आलोकित हो उठी।मंत्रोच्चार, दीपशिखाओं की दिव्य ज्वाला, भजनों की सुरलहरी और संगम तट की दिव्यता ने वातावरण को ऐसा पावन बनाया जैसे स्वयं प्रकृति देवत्व का उत्सव मना रही हो। आरती के दौरान सभी ने स्वयं को आध्यात्मिक रूप से जागृत, ऊर्जावान और भावविभोर महसूस किया।पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि प्रयागराज, भारत की आध्यात्मिक धड़कन और सनातन संस्कृति का शक्तिपीठ है। यहाँ की हवा में अध्यात्म बसता है, जल में संस्कृति बहती है और भूमि पर सेवा की परंपरा जीवित रहती है। उन्होंने कहा कि संगम तट पर होने वाली आरती न केवल भक्ति और भाव का उत्सव है, बल्कि यह भारत की संस्कृति, मूल्य और मानवता के प्रति समर्पण की एक वैश्विक प्रेरणा है।
स्वामी जी ने सभी श्रद्धालुओं और स्थानीय समुदाय से आग्रह किया कि परमार्थ संगम घाट पर प्रतिदिन होने वाली संगम आरती में अधिक से अधिक संख्या में सहभागी बनें। उन्होंने कहा कि आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि विचारों को पवित्र करने, जीवन को ऊर्जावान बनाने और समाज को सकारात्मकता की ओर ले जाने का माध्यम है। प्रतिदिन संगम आरती से प्रयागराज के आध्यात्मिक पर्यटन को नई दिशा मिलेगी।पूज्य स्वामी जी ने कहा, “संगम वह स्थल है जहाँ तीन पवित्र नदियाँ मिलती हैं और साथ ही तीन पवित्र ऊर्जा, आस्था, अध्यात्म और एकता, भी प्रवाहित होती हैं। यही एकता आज विश्व को सबसे अधिक आवश्यकता है।” उन्होंने यह भी कहा कि संगम पर आरती का दिव्य प्रकाश मानवता, प्रकृति और संस्कृति के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रतीक है।आरती के समापन पर सभी ने पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, जल संरक्षण व वृक्षारोपण के संकल्प लिए।



