सहारनपुर :कोरोना काल के बाद माँ शाकुंभरी के दरबार में गूंजे जयकारे, चैत्री मेले पर श्रद्धालुओं का लगा तांता…मन्नतें पूरी होने के बाद जमीन पर लेट कर पहुंचे मां के दरबार

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सहारनपुर : कोरोना महामारी के बाद चैत्र मास के प्रथम नवरात्रि पर मां शाकुंभरी दरबार में लगने वाले मेले पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। इस मेले में श्रद्धालुओं में भारी उत्साह देखने को मिला।

शनिवार को चैत्र प्रतिपदा प्रथम नवरात्रि पर सिद्ध पीठ मां शाकुंभरी के दरबार में लगने वाले मेले पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और भारी उत्साह देखने को मिला। श्रद्धालुओं का कहना है कि कोरोना महामारी के बाद भी यह पहला मेला हैं। जिसके चलते श्रद्धालुओं में भारी उत्साह है जिला पंचायत एवं पुलिस प्रशासन ने मेले में सभी इंतजाम पूर्ण किए हैं। कुछ श्रद्धालुओं का तो यह भी कहना है की मां बड़ी दयालु है वह अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है। मां शाकुंभरी मंदिर 51 सिद्ध पीठ में से एक है यहां माता के दर्शन कर आशीर्वाद लेने के लिए उत्तर प्रदेश उत्तराखंड हरियाणा पंजाब हिमाचल आदि प्रदेशों से भारी मात्रा में श्रद्धालु पहुंचते हैं मां शाकुंभरी देवी के दर्शनों से पूर्व बाबा भूरे देव के दर्शन करने की मन्नता है भूरे देव के दर्शन करने के बाद ही मां शाकुंभरी देवी के दर्शन करने का फल मिलता है।

मां शाकुंभरी के भक्तों का कहना है कि सच्चे मन से मांगी गई मन्नते मां अवश्य पूरी करती है इतना ही नहीं माता शाकुंभरी के दर्शनों के लिए जिन भक्तों की मन्नतें पूरी होती है उन भक्तों द्वारा औरतों के पूरे होने के बाद जमीन को नाचते हुए या यह कह सकते हैं कि जमीन पर लेट लेट कर अपना निशान बनाते हुए वैष्णो माता के दरबार तक पहुंचते हैं उनका मानना है कि माता की कृपा उन पर सदा बनी रहती है और उन्हीं की कृपा से उनकी मन्नते भी पूरी हुई है

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अनादि काल से माता शाकुंभरी देवी का यह सिद्ध पीठ मंदिर सहारनपुर के बेहट तहसील क्षेत्र के शिवालिक पहाड़ियों के बीच है, इस मंदिर के बारे में कहा जाए तो एक पुराणिक गाथा सामने आती है जिसमें बताया गया है कि एक समय ऐसा आया था की राक्षसों द्वारा घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से चारों वेद प्राप्त कर लिए गए थे जिसके बाद से सभी धार्मिक क्रियाएं बंद हो गई थी जिस से पूर्ण रूप से दुर्भयक्षु फैल गया था जिस कारण पृथ्वी पर अन्न, जल, सब्जियां सभी कुछ सूख गया था जिसके बाद ऋषियों द्वारा मां दुर्गा की आराधना की गई थी जिसके बाद मां ने प्रकट हो 100 नेत्रों से जल व्रत होकर पूरी पृथ्वी पर जल ही जल कर दिया लेकिन इसके बाद भी केवल जल सेवन मात्र से कितने दिन जिया जा सकता था, हालात इस कदर हो गए की देवता तो देवता प्राणी पक्षी भी मौत की कगार पर आ गए थे जिसके बाद माँ दुर्गा ने शाकुंभरी रूप धारण कर पृथ्वी पर साग, सब्जी, फल, फूल उत्पन्न किए जिससे दोबारा जीवन सुचारू रूप से चलने लगा!

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वही ज्यादा जानकारी देते हुए श्री महंत सहजानंद ब्रह्मचारी जी महाराज ने बताया कि जिस तरह से दुर्गम नामक दैत्य ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर चारों वेद प्राप्त कर लिए जिसके बाद पृथ्वी पर सभी धार्मिक क्रियाएं बंद हो गई और पूर्ण रूप से सूखा पड़ गया ऐसा होता देख ऋषि मारकंडेय व मेघा ऋषि ने मां दुर्गा की आराधना की और सभी ऋषि-मुनियों ने अपनी सारी व्यथा उन्हें बताई जिसके बाद माता ने शताक्षी रूप धारण कर अपने 100 नेत्रों से जल व्रत होकर पूरी पृथ्वी पर जल ही जल कर दिया और उसके बाद शाकंभरी रूप धारण कर फूल, फल, सब्जियां भी उत्पन्न कर दी जिससे कि दोबारा से सब कुछ सुचारू रूप से चलने लगा और माता ने माँ भ्रामरी रूप धारण कर उस दैत्य का संहार भी किया तभी से माता शाकुंभरी देवी यहां शिवालिक की पहाड़ियों में विराजमान है.

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