ऋषिकेश : महर्षि बाल्मीकि जी  ने सनातन धर्म को मजबूती प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई : अनिता ममगाईं

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  • त्रिवेणी घाट स्थित महिर्षि बाल्मीकि मंदिर में पधारी  नि. महापौर अनिता ममगाईं की  पुष्पांजली अर्पित जयंती पर 
  • संघ प्रमुख डा मोहन भागवत के वक्तव्य से सहमत हूँ, राष्ट्रीय पर्व है यह, सभी लोग  हिन्दू समाज में मनाएं जयंती -अनिता ममगाईं 

ऋषिकेश :हिंदू धर्म के सबसे अहम महाकाव्यों में से एक रामायण की रचना करने वाले महर्षि बाल्मिमी की जयंती पर नि.महापौर ऋषिकेश नगर निगम  अनिता ममगाईं ने गंगा तट स्थित त्रिवेणी घाट पर बने महर्षि बाल्मीकि मंदिर में जा कर उनकी प्रतिमा पर  पुष्पांजली अर्पित कर उनको याद किया. साथ ही उनका आशीर्वाद ग्रहण किया.  इस अवसर पर उन्हूने कहा, महर्षि  बाल्मीकि को   उनकी विद्वता और तप के कारण महर्षि की पदवी प्राप्त हुई थी. उन्होंने हिंदू धर्म के सबसे अहम महाकाव्यों में से एक रामायण की रचना की थी. साथ ही उन्हें संस्कृत का आदि कवि अर्थात संस्कृत भाषा के प्रथम कवि के रूप में भी जाना जाता है. उनके जीवन से हम बहुत कुछ सीख मिलती है.  उन्हूने कहा, अभी हाल ही में विजय दशमी के अवसर पर नागपुर में  आरएसएस मुख्यालय में अपने वार्षिक विजयादशमी भाषण में आरएसएस सरसंघचालक  डा  मोहन भागवत ने कहा, “हमारी विविधता इतनी बढ़ गई है कि हमने अपने संतों और देवताओं को भी विभाजित कर दिया है. वाल्मिकी जयंती केवल वाल्मिकी कॉलोनी में ही क्यों मनाई जानी चाहिए ? वाल्मिकी ने पूरे हिंदू को बताया समाज के लिए रामायण लिखी गई थी. इसलिए सभी को वाल्मिकी जयंती और रविदास जयंती एक साथ मनानी चाहिए. हम इस संदेश के साथ समाज में जाएंगे.. उनके इस वक्तब्य से हमें बहुत कुछ सीखने की जरुरत है. सनातन धर्म को अगर और मजबूती प्रदान करनी है तो उनके  कथन पर गौर करना चाहिए. इस अवसर पर सभी को बधाई देते हुए उन्होंने कहा आज का दिन महान दिन है. बाल्मीकि जी अगर रामायण नहीं लिखते तो आज हम श्री राम के बारे कैसे जानते ? सनातन धर्म को मजबूती प्रदान करने में महर्षि बाल्मीकि का अहम योगदान रहा है. इस अवसर पर उन्हूने आयोजकों को भी  धन्यवाद कहा इस तरह के  महापुरुषों, महिर्षियों   के  कायक्रम आयोजित होते रहने चाहिए. इससे समाज मजबूत होता है. समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कार्यक्रम में इस अवसर पर  अक्षय खैरवाल, नरेश खैरवाल, मुकेश खैरवाल, महेंद्र,राकेश खैरवाल, जीतेन्द्र, अजय बागड़ी, सन्नी, सीमा,पुष्पा, अंजलि, रेखा, भारती, विजय, सुमन, प्रिया आदि  लोग मुजुद रहे. 

बाल्मीकि जयंती –

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वाल्मीकि जयंती हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. इस साल वाल्मीकि जयंती 17 अक्टूबर के दिन मनाई जाएगी. ऋषि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की थी. वाल्मीकि जयंती के शुभ अवसर पर जगह- जगह झांकी निकाली जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पहले वाल्मीकि जी डाकू थे और वन में आने वाले लोगों को लूट कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. बाद में ऋषि वाल्मीकि ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए और अपने पापों की क्षमा याचना करने के लिए कठोर तप किया. वाल्मीकि अपने तप में इतने लीन थे. उन्हें इस बात का भी बोध नहीं हुआ कि उनके शरीर पर दीमक की मोटी परत जम चुकी है. जिसे देखकर ब्रह्मा जी ने रत्नाकर का नाम वाल्मीकि रखा दिया.एक बार जंगल से गुज़र रहे नारद मुनि से रत्नाकर ने लूट की कोशिश की, तो नारद मुनि ने उनसे पूछा कि वे ऐसा क्यों करते हैं? रत्नाकर ने बताया कि वे यह सब अपने परिवार के लिए करते हैं. नारद मुनि ने पूछा कि क्या उनका परिवार उनके पापों का फल भोगने को तैयार है. रत्नाकर ने परिवार से पूछा, तो सभी ने मना कर दिया. इस घटना के बाद रत्नाकर ने सभी गलत काम छोड़ दिए और राम नाम का जाप करने लगे. कई सालों तक कठोर तप के बाद उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना ली, इसी वजह से उनका नाम वाल्मीकि पड़ा.वाल्मीकि जी का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर हुआ था. बचपन में ही उनका पालन-पोषण भील समाज में हुआ था. बचपन में उनका नाम रत्नाकर था और वे परिवार के पालन-पोषण के लिए लूट-पाट करते थे.

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