ऋषिकेश : एम्स में हिंदवा सूरज महाराणा प्रताप जयंती के अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन
ऋषिकेश : एम्स ऋषिकेश में गुरूवार को रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया. हिंदू कैलेंडर के अनुसार 2 जून 2022 को महाराणा प्रताप जयंती मनाई जाती है. इस अवसर पर AIIMS ऋषिकेश में कार्यरत युवाओं द्वारा व् अन्य युवाओं द्वारा बढ़-चढ़कर रक्तदान में हिस्सा लिया गया।इस दौरान 42 यूनिट रक्त दान हुआ.
देखिये रक्तदान शिविर का Video—->>>
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रक्तदान शिविर की आयोजन समिति के अनुसार यह हमारा पहला प्रयास था कि महाराणा प्रताप की जयंती पर उन्हें याद किया जाए और रक्तदान शिविर आयोजित किया जाए।इस अवसर पर आयोजन समिति ने रक्त दाताओं को महाराणा प्रताप का स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया ।
इस मौके पर शेर सिंह प्रेम सिंह दीप सिंह अमित सैनी बलराज रामकिशन जी राजपुरोहित विजेंद्र जी नागर उपस्थित रहेl राजपूत समाज की मौजूदा टीम में मुख्य रूप से एडवोकेट धर्मपाल सिंह और कमल सिंह राजपूत मौजूद रहे बाकी जो टीम थी उसमें एम्स के नर्सिंग ऑफिसर मौजूद रहे जिन्होंने रक्तदान किया. वहीँ नर्सिंग ऑफिसर स्टाफ से आशा, बलवीर, अभय मौजूद रहे.

महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया के बारे में एक नजर –
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540–19 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे।उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुघल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया।उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ था। लेखक जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ के कुम्भलगढ में हुआ था। इतिहासकार विजय नाहर के अनुसार राजपूत समाज की परंपरा व महाराणा प्रताप की जन्म कुण्डली व कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजमहलों में हुआ.
हल्दी घाटी का युद्ध –
लड़ाई का स्थल राजस्थान के गोगुन्दा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी दर्रा था। महाराणा प्रताप ने लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों के बल को मैदान में उतारा। मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था, जिन्होंने लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना की कमान संभाली थी।इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिया थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी.यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। भील सेना के सरदार, पानरवा के ठाकुर राणा पूंजा सोलंकी थे।इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे- हकीम खाँ सूरी।
राणा उदयसिंह केे दूसरी रानी धीरबाई जिसे राज्य के इतिहास में रानी भटियाणी के नाम से जाना जाता है, यह अपने पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी. प्रताप केे उत्तराधिकारी होने पर इसकेे विरोध स्वरूप जगमाल अकबर केे खेमे में चला जाता है। महाराणा प्रताप का प्रथम राज्याभिषेक मेंं 28 फरवरी, 1572 में गोगुन्दा में हुआ था, लेकिन विधि विधानस्वरूप राणा प्रताप का द्वितीय राज्याभिषेक 1572 ई. में ही कुुंभलगढ़़ दुुर्ग में हुआ, दुसरे राज्याभिषेक में जोधपुर के राठौड़ शासक राव चन्द्रसेेन भी उपस्थित थे।राणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियाँ की थी उनकी पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम हैं-महारानी अजबदे पंवार : अमरसिंह और भगवानदास
अमरबाई राठौर : नत्था
शहमति बाई हाडा :पुरा
अलमदेबाई चौहान: जसवंत सिंह
रत्नावती बाई परमार :माल,गज,क्लिंगु
लखाबाई :रायभाना
जसोबाई चौहान :कल्याणदास
चंपाबाई जंथी :कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
सोलनखिनीपुर बाई : साशा और गोपाल
फूलबाई राठौर :चंदा और शिखा
खीचर आशाबाई :हत्थी और राम सिंह
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540–19 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे।उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुघल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया।उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ था। लेखक जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ के कुम्भलगढ में हुआ था। इतिहासकार विजय नाहर के अनुसार राजपूत समाज की परंपरा व महाराणा प्रताप की जन्म कुण्डली व कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजमहलों में हुआ.
हल्दी घाटी का युद्ध –
लड़ाई का स्थल राजस्थान के गोगुन्दा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी दर्रा था। महाराणा प्रताप ने लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों के बल को मैदान में उतारा। मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था, जिन्होंने लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना की कमान संभाली थी।इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिया थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी.यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। भील सेना के सरदार, पानरवा के ठाकुर राणा पूंजा सोलंकी थे।इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे- हकीम खाँ सूरी।

अमरबाई राठौर : नत्था
शहमति बाई हाडा :पुरा
अलमदेबाई चौहान: जसवंत सिंह
रत्नावती बाई परमार :माल,गज,क्लिंगु
लखाबाई :रायभाना
जसोबाई चौहान :कल्याणदास
चंपाबाई जंथी :कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
सोलनखिनीपुर बाई : साशा और गोपाल
फूलबाई राठौर :चंदा और शिखा
खीचर आशाबाई :हत्थी और राम सिंह