प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती और आचार्य बालकृष्ण की भेंट वार्ता हुई


- प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती और आचार्य बालकृष्ण की दिव्य भेंट वार्ता
- दिव्य व भव्य कुम्भमेला प्रयागराज और आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति के विस्तार पर हुई चर्चा
- आयुर्वेद के ग्रंथों का उपहार पूरी मानवता के लिये आचार्य बालकृष्ण ने किया तैयारप्राकृतिक चिकित्सा दिवस पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती और आचार्य बालकृष्ण की भेंट वार्ता

स्वामी चिदानन्द सरस्वती और आचार्य बालकृष्ण ने भव्य कुम्भमेला प्रयागराज की दिव्यता, भव्यता और आध्यात्मिकता को बनाये रखने हेतु विशद् चर्चा की। कुम्भमेला, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। स्वामी ने कहा, ‘कुम्भमेला न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करता है, बल्कि यह लाखों लोगों को एकत्रित कर अध्यात्मिकता और मानवता की ओर प्रेरित भी करता है। यह अवसर हमें एक साथ आने, अपने विचार साझा करने और एक नई दिशा में कदम बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।आचार्य बालकृष्ण ने कुम्भमेला की महत्ता पर जोर देते हुए कहा, कुम्भमेला एक ऐसा मंच है, जहां हम हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों, विशेषकर आयुर्वेद, को व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित कर सकते हैं। यह आयोजन न केवल हमारे आध्यात्मिक उत्थान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी सजीव करता है। आयुर्वेद केवल उपचार की नहीं, बल्कि स्वास्थ्य को बनाए रखने की कला भी है। यह हमें एक संतुलित और स्वस्थ जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के अवसर पर आयोजित इस दिव्य भेंट वार्ता ने हमें आयुर्वेद की प्राचीन परंपरा और उसकी आधुनिक प्रासंगिकता पर गहन विचार विमर्श किया।