यूपी : सुल्तानपुर में नेता जी सुभाषचंद्र बोस की पुण्यतिथि पर भाजपा पदाधिकारियों ने किए श्रद्धा सुमन अर्पित..

स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी व सबसे बड़े नेता थे सुभाषचंद्र बोस : डॉ आर ए वर्मा

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खबर उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले से है जहाँ भाजपा नगर अध्यक्ष आकाश जायसवाल की अगुवाई भाजपा के जिला पदाधिकारी,नगर पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने नेता जी सुभाषचंद्र बोस की पुण्यतिथि पर नगर क्षेत्र स्थित सुभाष मार्केट में नेता जी की प्रतिमा पर माल्यापर्ण कर श्रद्धा शुमन अर्पित किया।भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ आर ए वर्मा ने नेता जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि सुभाष चन्द्र बोस जी भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान,अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए,उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था।उनके द्वारा दिया गया “जय हिन्द” का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा भी उनका था।भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से सम्बोधित करते हैं।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से सहायता लेने का प्रयास किया था,तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें खत्म करने का आदेश दिया था।नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए “दिल्ली चलो!” का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।भाजपा नगर अध्यक्ष आकाश जायसवाल ने नेता जी को याद करते हुए बताया कि 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई जिसे जर्मनी,जापान, फ़िलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी। सुभाष जी उन द्वीपों में गए और उनका नया नामकरण किया।1944 को आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया जो एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।आगे उन्होंने बताया कि 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिए उनका आशीर्वाद और शुभ कामनाएँ मांगी थी।

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तो वहीं नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है।जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष जी की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से संबंधित दस्तावेज अब तक सार्वजनिक नहीं किए क्योंकि नेता जी की मृत्यु नहीं हुई थी।16 जनवरी 2014 को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने नेता जी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए विशेष पीठ के गठन का आदेश दिया।

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श्रद्धांजलि अर्पित करने में रूपेश सिंह,राज कुमार सोनी,प्रवीण मिश्रा, दीपांकुश चित्रांश,अंकित अग्रहरि,प्रदीप मिश्रा,प्रदीप बरनवाल,राम चरित्र पाण्डेय, मोहित साहू संजय सिंह मुन्ना,शंकर दयाल,कोकिला जी,रेनू सिंह के साथ महिला मोर्चा की कार्यकर्ता भी उपस्थित रहीं।

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