मुनि की रेती  : उत्तराखण्ड में यह समय एक करवट का समय है, सौभाग्य से ऐसे समय मे एक युवा बेदाग बहुमुखी प्रतिभा धनी और संवेदनशील मुख्यमंत्री के हाथ मे बागडोर है : गौरांग रघु मानस प्रबोध

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  • इस समय जो आंदोलन (मूल निवास और भू कानून की मांग) चल रहा है उसके समाचार मैंने देखे थे  उसमें ऐसा लगता है कि छद्म राजनीति के माहिर शातिर लोग युवाओं की मांग को दिशाहीन और भृमित कर अपनी राजनीतिक जमीन बचाने का प्रयास कर रहे है. : गौरांग रघु मानस प्रबोध 

मुनि की रेती : (मनोज रौतेला) रामानंद आश्रम के संत गौरांग रघु मानस प्रबोध ने कहा जैसा हम सब ने देखा ही पुष्कर सिंह  धामी  के बनने के बाद एक से एक ऐतिहासिक निर्णय नीतिगत और आवश्यक जो थे वो हुए हैं।सबसे बड़ा जो सङ्कट था कि युवाओं की नौकरी में दलालों भ्रष्टाचारियों का कब्जा ऐसे सिंडिकेट को तोड़ना आसान नही था लेकिन धामी सरकार ने इसे सभी तत्वों को जेल की हवा दिखा कर एक कठोर सन्देश दिया इन सबको और साथ साथ एक कठोर कानून बना जिस से पारदर्शी परीक्षा का आधार तैयार हो सका।

इन बीते सालों में सैकड़ों नियुक्तियां दी गयी और अनेकों नई भर्ती परीक्षा भी कराई गई।जहां तक भू कानून की बात है उसके लिए जो पहला काम धामी  ने किया माफिया और बाहरी लोगों द्वारा धार्मिक स्थलों के नाम पर जमीनों में जो अवैध कब्जे थे उसे एक फ्री लेंड ऑपरेशन चलाकर हटाया गया जिसमें हजारों हेक्टेयर सरकारी भूमि बचाई गयी।दूसरा भू कानून को लेकर एक समिति बनी जिसका प्रस्ताव भी बन गया है उसके प्रस्तावों पर पुनः एक विशेषज्ञ समिति बनाकर ड्राफ्ट बनाने का काम भी इस हफ्ते शुरू हो चुका है जल्दी ही इस विषय मे कुछ महत्वपूर्ण निर्णय होंगे यह निश्चित है।

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मूल निवास को लेकर भी धामी सरकार ने गत सप्ताह एक राजाज्ञा प्रसारित की है जिसमे मूलनिवासधारी की स्थाई निवास की बाध्यता को समाप्त किया है।सरलीकरण के इस निर्णय से हजारों लोगों विद्यार्थियों कर्मचारियों को सीधा लाभ होगा।आगे मूलनिवास के सम्बंध में भी क्या क्या जरूरी है इसके लिए तज्ञ लोगो की कमेटी बन चुकी है उसके अनुसार शीघ्र ही यह विषय भी एक अच्छे वातावरण के साथ हल होगा।आंदोलन को लेकर मेरा मात्र इतना कहना है कि संवेदनशील लेकिन आवश्यक मुद्दों को लेकर युवा सक्रिय और जागृत है यह अच्छा है. किंतु उनको यह भी देखना होगा कि कोई भी कानून या निर्णय करना कोई साधारण काम नही है उसके लिए न्यायिक और संवैधानिक पक्ष के साथ साथ भौगोलिक और सामाजिक बिंदु भी आवश्यक है.और इस समय जो आंदोलन चल रहा है उसके समाचार मैंने देखे थे  उसमें ऐसा लगता है कि छद्म राजनीति के माहिर शातिर लोग युवाओं की मांग को दिशाहीन और भृमित कर अपनी राजनीतिक जमीन बचाने का प्रयास कर रहे है. जिस प्रकार कुछ दल हमेशा से करते आये है। 80 के दशक में पंजाब में किया.90 के दशक में उत्तरप्रदेश में करने की कोशिश की. 2000 के दशक में गुजरात में 2010 के दशक में वही कोशिश देश की कई यूनिवर्सिटी में दोहराई गयी.अब उत्तराखंड में उसका प्रयोग वह दल करना चाहते हैं।इस तरह के लोगो से उत्तराखंड के युवाओं को बचना है।क्योंकि 20 साल के बाद उत्तराखंड को एक परिश्रमी और दूरगामी सोच के साथ विकास और भविष्य के लिए काम करने वाला मुख्यमंत्री धामी मिला है.

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