एम्स ऋषिकेश में लौटती सांसों से जगी जीवन जीने की आस, 71 वर्षीय वृद्ध के दिल मे लगाया लीडलैस पेसमेकर


- जोखिम उठाकर एम्स के चिकित्सकों ने हासिल की उपलब्धि
- सांस लेने में तकलीफ के साथ बार-बार बेहोश होने की थी समस्या

डाॅ. बरूण ने बताया कि रोगी को बचाने के लिए जरूरी था कि उसके हृदय में समय रहते मेस मेकर लगाकर उसके दिल को अतिरिक्त ताकत दी जाय। समस्या रोगी के उम्र को लेकर थी। उम्र ज्यादा होने के कारण ऐसे मामलों में सर्जरी करना अत्यन्त जोखिम भरा निर्णय होता है। उन्होंने बताया कि इन हालातों में रोगी और उसके परिवार वालों की काउंसिलिंग कर उन्हें लीडलैस पेसमेकर लगाने की सलाह दी गयी और जोखिम उठाकर 19 जनवरी को रोगी के दिल में पेसमेकर प्रत्यारोपित कर दिया गया। डाॅ. बरूण ने बताया कि यदि सर्जरी में विलंम्ब होता तो रोगी की मानसिक चेतना में परिवर्तन होने के अलावा बेहोशी के कारण नीचे गिरने पर उसे कभी भी कार्डियक डेथ होने का खतरा बना था। सर्जरी करने वाली डाॅक्टरों की टीम में डाॅ0 बरूण कुमार के अलावा डाॅ. कनिका कुकरेजा, डॉ किशन, डॉ रूपेंद्र नाथ साहा और काॅर्डियोलाॅजी विभाग के डॉ आकाश आदि शामिल थे।
लीडलैस पेसमेकर के लाभ-
कोई लीड नहीं होने से संक्रमण और जटिलताओं का कम खतरा, तेजी से रिकवरी के साथ न्यूनतम आक्रामक और सिंगल-चेंबर ब्रैडीकार्डिया वाले रोगियों के लिए उपयुक्त, छोटा चीरा, लंबी बैटरी लाइफ (10-15 वर्ष), जटिल पेसिंग आवश्यकताओं (एकल या दोहरे कक्ष) के लिए अधिक बहुमुखी और पल्स जनरेटर के लिए त्वचा के नीचे मात्र एक जेब की आवश्यकता।
’’ कार्डियोलाॅजी विभाग के डाॅक्टरों का यह कार्य प्रशंसनीय है। असामान्य धड़कन वाले हृदयरोगियों के लिए बिना तार वाले पेसमेकर को प्रत्यारोपित करना एक क्रांतिकारी इलाज है। पारंपरिक पेसमेकर्स के विपरीत यह छोटे उपकरण सीधे दिल में प्रत्यारोपित किए जाते हैं। हृदय रोगियों के बेहतर इलाज के लिए एम्स में विश्व स्तरीय तकनीक आधारित कैथ लेब की सुविधा भी है। हृदय रोग से ग्रसित रोगियों को एम्स की इस सुविधा का लाभ उठाना चाहिए।’’
——— प्रो. मीनू सिंह, कार्यकारी निदेशक, एम्स ऋषिकेश।