हरिद्वार : 35 से 40 हजार मीट्रिक टन कूड़ा छोड़ गए कावड़िये 12 दिनों में, अब यह नगर निगम के लिए बड़ी चुनौती बना

हरिद्वार : (मनोज रौतेला) कावड़ मेला संपन्न हो गया है. लेकिन कावड़िये अभी भी आ-जा रहे हैं. ऐसे में पिछले 12 दिनों में सबसे ज्यादा चुनौती जो सामने आयी वह रही कूड़ा जो कावड़िये फेंक कर चले गए उसको साफ़ करना. अब देखा जाए तो 35 हजार टन से लेकर 40 हजार टन तक कूड़ा कावड़िये छोड़ गए हैं हर नगरी हरिद्वार में. हालाँकि नगर निगम हरिद्वार सफाई में जुट गया है लेकिन यह बड़ी चुनौती भी है उसके लिए. सफाई अभियान भी शुरू कर दिया है नगर निगम हरिद्वार ने.इतना कूड़ा बताया जा रहा है 3 से 4 महीने में एकत्रित होता है हरिद्वार में. इस बार 12 दिनों में हो गया.
आपको बता दें, कावड़ मेला चार जुलाई से शुरू हो गया था. ऐसे में आंकड़े की बात करें तो कांवड़ मेले में चार करोड़ से भी ऊपर कांवड़ यात्रियों ने प्रतिभाग किया. इन सभी ने हर की पैड़ी से जल भरा है. गंगा घाटों के साथ ही तमाम क्षेत्रों में जगह-जगह कूड़े और प्लास्टिक की पन्नी के ढेर लगे हैं. प्रेम नगर, ऋषिकुल मैदान, रोड़ीबेलवाला, पंतद्वीप, हर की पैड़ी क्षेत्र और गंगा किनारे फैली गंदगी की दुर्गंध से बुरा हाल है. आजकल हरिद्वार आप आएंगे तो आपको अलग ही नजारा दिखेगा. जो शायद किसी को पसंद न आये. इससे ने केवल पर्यावरण की दृष्टि से नुक्सान है बल्कि इससे संक्रामक बीमारियों के फैलने का भी डर लगा रहता है.
नगर आयुक्त दयानन्द सरस्वती ने बताया लगभग 35 से 40 मीट्रिक टन कूड़ा कावड़िये छोड़ गए हैं इस बार. जबकि पिछले वर्ष 30 हजार मीट्रिक टन कूड़ा छोड़ गए थे. इस बार ज्यादा है. जहाँ तक कावड़ियों की संख्या का सवाल है इस बारे प्रशासन कह रहा है चार करोड़ से जायदा कावड़िये हरिद्वार-ऋषिकेश आये. जिसका अनुमान लगा रहा था पहले से प्रशासन. हालाँकि पुलिस और प्रशासन दोनों ने काफी अच्छी तरह से मेले को सम्पन कराया. लेकिन हर बार इस तरह होगा तो कहीं न कहीं एक तरफ फायदा है तो दूसरी तरफ कई नुक्सान भी हैं. मसलन, स्थानीय लोगों की आवाजाही प्रभावित होती है. अन्य जगहों के लिए लोग आते हैं वे ऐसे समय में आ जा नहीं सकते इत्यादि.
बाकी पर्यावरणीय नुक्सान अलग से हैं. जहाँ तक मलीय अपशिष्ट की बात करें तो लगभग 10 हजार टन से जायदा गंगा नदी में गया है. क्योँकि काफी लोग खुले में शौच कर रहे थे. मोबाइल/स्थायी टॉयलेट कम प्रयोग कर रहे थे. जैसा की देखा गया है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी के निर्देश पर्यावरण को देखते हुए धरे के धरे रह गए या कहिये रह जाते हैं. ऐसे में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की कैपेसिटी की बात करें तो वह भी काफी नहीं है. ऐसे में गंगा नदी में कितना वेस्ट जा रहा है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
शासन प्रशासन को अगली बार के लिए सर्वे कर रिसर्च कर मेले को इन समस्याओं से पार पाना पड़ेगा. नहीं तो आने वाले समय में समस्या हो सकती है. खास तौर पर परवरीन दृष्टि से बात करें तो. जो हम लोगों को ही करना है.