ऋषिकेश : झारखण्ड में “श्री सम्मेद शिखरजी” को पर्यटन स्थल बनाने को लेकर तीर्थनगरी से जैन समाज के लोगों का आक्रोश, सौंपा SDM को ज्ञापन राष्ट्रपति के नाम

ख़बर शेयर करें -

मनोज रौतेला की रिपोर्ट-

ऋषिकेश : झारखण्ड में जैन समुदाय के प्रसिद्द तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल बनाने के सरकारों के फ़ासिले के खिलाफ तीर्थनगरी ऋषिकेश से जोरदार आवाज उठी है. गुरूवार को ऋषिकेश तहसील में जैन समुदाय के लोग एकत्रित हुए और एक ज्ञापन सौंपा गया एसडीएम ऋषिकेश ननदन कुमार को. ज्ञापन राष्ट्रपति के नाम प्रेषित किया गया है. झारखण्ड सरकार के फैसले और केंद्र सरकार के फैसले के विरोध में यह ज्ञापन सौंपा गया. जैन समाज का कहना है उनकी भावनाएं आहत हुई है उनके पवित्र तीर्थ स्थल को पर्यटन केंद्र की केटेगरी में न डाला जाये. ऐसे में वहां की पवित्रता ख़म हो होगी.जिसे हम कदापि स्वीकार नहीं करेंगे.

दरअसल, जैन समाज के अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल श्री सम्मेद शिखरजी को केंद्र सरकार एवं झारखंड सरकार के द्वारा पर्यटक स्थल घोषित किए जाने के विरोध स्वरूप गुरूवार को सकल जैन समाज ऋषिकेश की ओर से राष्ट्रपति महोदय द्रौपदी मुर्मू को SDM ऋषिकेश के माध्यम से एक ज्ञापन प्रेषित किया गया.सम्बंधित मामले में जैन समाज ने एक जुलूस के रूप में एकत्र होकर इस बात पर विरोध दर्ज कराया।जैन समाज की मांग है कि तुरंत इस प्रस्ताव को वापस लेकर श्री सम्मेद शिखरजी पारसनाथ पर्वत राज्य को मांस मदिरा बिक्री मुक्त पवित्र जैन तीर्थ स्थल पुनः घोषित किया जाए । विरोध प्रदर्शन के दौरान मुख्य संयोजक पूर्व पार्षद रवि कुमार जैन, संयोजक प्रदीप कुमार जैन, दिगंबर जैन समाज के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रमोद कुमार जैन, शांति नगर जैन समाज के अध्यक्ष बलबीर जैन, श्यामपुर जैन समाज के अध्यक्ष मुकेश जैन, श्वेतांबर जैन समाज के अध्यक्ष चंद्र मोहन जैन सहित रमेश कुमार जैन, सुरेश कुमार जैन, अरविंद जैन, बजरंग जैन, अशोक कुमार जैन, कमलेश जैन, पार्षद नीता जैन, आशा जैन, पूनम जैन, मृदुला जैन, दीपा जैन, अतुल जैन, आशू जैन, संजीव जैन, चंद्रशेखर जैन, राजीव जैन, कृष्णा जैन, शैलेंद्र कुमार जैन, महेश जैन, अक्षत जैन, रमेश चंद जैन, सचिन जैन, लोकेश जैन, प्रियांशी जैन, रूपा जैन, रजनीश जैन, आशीष जैन, विधि जैन, रिशु जैन, मंजू जैन, विकास जैन, कृष्णा जैन आदि सैकड़ों जैन बंधु एवं मातृशक्ति उपस्थित रहे.

ALSO READ:  सड़क पर सरेआम स्कार्पियो कार चालक द्वारा हूटर बजाकर कार चलाने पर रायवाला पुलिस द्वारा की गयी स्कार्पियो कार  सीज 

श्री सम्मेद शिखर तीर्थ के बारे में जानिए-
शिखरजी या श्री शिखरजी या पारसनाथ पर्वत भारत के झारखंड राज्य के गिरिडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है जो विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल भी है। ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ के रूप में चर्चित इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहीं 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। माना जाता है कि 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों ने यहां पर मोक्ष प्राप्त किया था। 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊँचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है।

शिखरजी जैन धर्म के अनुयायिओं के लिए एक महतवपूर्ण तीर्थ स्थल है। पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ हर साल लाखों जैन धर्मावलंबियों आते है, साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरूरी समझते हैं। गिरिडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक क्रमशः 14 और 18 मील है। पहाड़ की चढ़ाई उतराई तथा यात्रा करीब 18 मील की है। सम्मेद शिखर जैन धर्म को मानने वालों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों व मुनियों ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात् ‘तीर्थों का राजा’ कहा जाता है। यह तीर्थ भारत के झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है। यह जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है। इसे ‘पारसनाथ पर्वत’ के नाम से भी जाना जाता है।

जैन ग्रंथों के अनुसार सम्मेद शिखर और अयोध्या, इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको ‘शाश्वत’ माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में यहाँ पर तीर्थंकरों और तपस्वी संतों ने कठोर तपस्या और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थयात्रा शुरू होती है तो हर तीर्थयात्री का मन तीर्थंकरों का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, उत्साह और खुशी से भरा होता है।

जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेद शिखर तीर्थ की एक बार भावपूर्ण यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है और इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक मुक्त वह रहता है। यह सब तभी संभव होता है, जब यहाँ पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें। इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहाँ पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता। इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं। संभवत: इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्यों, भट्टारक, श्रावकों ने आत्म-कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहाँ आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया.

जैन नीति शास्त्रों में वर्णन है कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान ‘आदिनाथ’ अर्थात् भगवान ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर, 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चंपापुरी, 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ ने गिरनार पर्वत और 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया। शेष 20 तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर में मोक्ष प्राप्त किया। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी इसी तीर्थ में कठोर तप और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया था। अत: भगवान पार्श्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है। पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है

Related Articles

हिन्दी English