हरिद्वार : अन्तर्राष्ट्रीय योग शिखर सम्मेलन-परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने देव संस्कृति विश्व विद्यालय में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय योग शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में किया सहभाग

वाइस चांसलर देव संस्कृति विश्व विद्यालय डा चिन्मय पण्ड्या  के नेतृत्व में अन्तर्राष्ट्रीय योग शिखर सम्मेलन का आयोजन

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  • स्वामी चिदानन्द सरस्वती, अध्यक्ष परमार्थ निकेतन, श्री श्री रविशंकर, संस्थापक एवं प्रमुख आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन (ऑनलाइन), डा हंसा योगेन्द्र, निदेशक योग संस्थान, डा एच आर नागेन्द्र, अध्यक्ष विवेकानन्द योग अनुसंधान संस्थान, पद्मश्री भारत भूषण, डा सुबोध तिवारी  सहित अन्य विशिष्ट अतिथियों ने किया सहभाग

ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने देव संस्कृति विश्व विद्यालय, हरिद्वार में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय योग शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में सहभाग कर कहा कि जो कहता है युद्ध नहीं ’योग’ वही सनातन है। वर्तमान समय में हमें सनातन योग की आवश्यकता है, जो सब को जोडं़े, दरारों को भरे और दिलों को जोड़ें, जो नफरत, जात-पात, छुआछूत, ऊँच-नीच की सारी दीवारों को हटायें क्योंकि योग तो जोड़ने का कार्य करता है। आज पूरे विश्व को एकात्म योग की जरूरत है।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्दद सरस्वती ने कहा कि योग की साधना स्वयं को साधना है, खुद से खुद को साधना है। उन्होंने कपड़ों से कर्मों की यात्रा पर जोर दिया, वस्त्रों पर नहीं विचारों पर जोर दिया। स्वामी जी ने कहा कि शान्तिकुंज साधकों को संजीवनी बनाने का केन्द्र है, यह एक संस्था नहीं संस्कार है। वाइस चांसलर देव संस्कृति विश्व विद्यालय डा चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि मनुष्य के जीवन में दो सम्भावनायें सदैव ही बनी रहती है। एक जब जीवन पतन की ओर जायें और दूसरा जब जीवन उत्थान की ओर बढ़े। जब जीवन में चिंतन आलोकित हो, भावनायें उदार हो, व्यक्तित्व परिष्कृत हो तो वे संत व महापुरूष हो जाते हैं। हमारे जीवन का, चेतना का, भावना का, दृष्टिकोण का रूपांतरण इस प्रकार हो कि मनुष्य के अन्दर देवत्व का अवतरण हो इसी भाव को जगाने का मंत्र गायत्री महामंत्र है।

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उन्होंने कहा कि हरिद्वार वह पावन भूमि है जहां पर सारी की सारी नदियां आध्यात्मिक प्रवाह देती नजर आती है। यह संतों, साधकों, नर व नारायण की तपस्या की भूमि है। उन्होंने कहा कि भगवान सोने के मन्दिर में नहीं बल्कि जनसमुदाय के दिलों में बैठंे यह जरूरी है। आज इस सभागार में योग के शिखर एक साथ उपस्थित है उन्होंने सभी का दिव्यता से अभिनन्दन किया।आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन के अध्यक्ष श्री श्री रविशंकर ने ऑनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से जुड़कर कहा कि ‘योग, कर्म की कुशलता को निखारता है; सतोगुणी कर्म को बढ़ाता है। ज्ञान, कर्म और भक्ति के संगम का नाम है योग। उन्होंने कहा कि भारतीयता का विश्व मानवता के साथ सामंजस्य रखने का नाम योग है।

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उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है और हर चार में से एक व्यक्ति अवसाद से पीड़ित है इस स्थिति में योग ही समाधान है। हमें मिलकर योग की प्रामाणिकता का संरक्षण करना चाहिये।निदेशक योग संस्थान डा हंसा योगेन्द्र जी ने कहा कि योग जीवन जीने का विज्ञान है इसलिये हमें साधना व कर्म दोनों पर ध्यान देना होगा। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में यूनिक है इसलिये सबसे पहली साधना है स्वयं को साधना, खुद के मन को सदैव सही स्थिति में रखना, समत्व स्थिति में रखना बहुत जरूरी है।योग अनुशासन का विज्ञान है। स्व को नियंत्रित करना अत्यंत आवश्यक है। दूसरों के दर्द को समझना ही जीवन है। हम सभी भगवान के दोस्त बनें।

अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि युगऋषि पं श्रीराम शर्मा  कहते रहे हैं कि समस्त समाज मिलकर रहें, सभी एक दूसरे के सकारात्मक कार्यों में सहयोग करें। शांतिकंुज के रचनात्मक प्रकल्पों से सभी लाभान्वित हों। उन्होंने कहा कि समाजोत्थान सहित योग के क्षेत्र में चलाये जा रहे अभियानों में शांतिकुंज, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय सदैव प्रमुख भूमिका निभायेगा।स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी एकात्म योग का संदेश देते हुये सभी विशिष्ट अतिथियों को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट किया।

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