ऋषिकेश : “अंतराष्ट्रीय मां सबरी रामलीला महोत्सव”…परमार्थ में आज से, पीड़ा प्रेरणा बने भारत में :स्वामी चिदानंद सरस्वती



ऋषिकेश : (मनोज रौतेला) तीर्थ नगरी में माँ सबरी रामलीला महोत्सव आज से शुरू हो गया है। यह पहली बार हो रहा है। गंगा घाट पर पहली बार होगा इसका मंचन, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि क्षेत्र के आदिवासी कलाकार करेंगे प्रदर्शन। 20 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक होना है मंचन।सुरेंद्र बख्शी आरोग्य सेवा फाउंडेशन के तत्वाधान में हो रहा है यह महोत्सव।
आपको बता दें, परमार्थ निकेतन कुछ न कुछ नया ले कर आता है समाज के लिए। सबसे अहम बात है एक सन्देश छोड़ने में कामयाब होता है। माँ गंगा किनारे इस तरह के आयोजन से एक वर्ग को आगे आने का उसको पहचाने का और उसके योगदान को समझा जा सकेगा. गुरुवार को परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया, पहले बार इस तरह का आयोजन होने जा रहा है।स्वामी ने कहा, देश के हर कोने में रामलीला होती है लेकिन इस बाद प्रयोग किया है यहाँ हमने अनतर्राष्टीय मां सबरी रामलीला महोत्सव। उन्होंने कहा कई बार समाज के एक वर्ग की पीड़ा को समझ नहीं पाते हैं। जो यह पीड़ा है प्रेरणा बने समाज के लिए। यह नए भारत की यात्रा साथ चलने की। इसलिए उसको केंद्र में रख कर यह किया जा रहा है। सबरी का चरित्र पता लगे लोगों को। इसलिए आदिवासी कलाकारों द्वारा यह किया जा रहा है। दरारें भरें दिल जुड़े। नए भारत की यात्रा में हम सब शामिल हैं।
इस दौरान उनके साथ डॉ.शक्ति बक्शी मौजूद रहे जो इस आयोजन को करा रहे हैं। उन्होंने कहा तीर्थनगरी में माँ गंगा किनारे इस तरह के आयोजन से एक सन्देश जायेगा। पर्यावरण की दृष्टि से देखें तो आदिवासी सबसे पहले इसके संकरक्षक हैं आज भी। इस दौर में भी। आध्यात्म की बात करें तो, मां सबरी दयालु, अपनत्व, प्रेम, सहयोग, भक्ति, समर्पण, ईमानदारी जैसे कई शब्दों से बनी है। जिनका पूरी तरह से शब्दों में ब्याख्यान करना संभव नहीं है। इसको हम मंचन के द्वारा यहाँ कराने की कोशिश कर रहे हैं। उम्मीद लोगों को पसंद आएगा.
प्रख्यात सूफी गायक कैलाश खेर ने भी की तारीफ –
मां सबरी रामलीला महोत्सव का आयोजन कर परमार्थ निकेतन ने एक बार समाज को नयी दिशा देने का काम किया है। उम्मीद है देश में ही नहीं विदेश में भी यह आयोजन होगा आने वाले समय में। मुनि जी जहाँ जाते हैं एक अलख जगाते हैं लोगों के दिलों में। मैं यहीं की उत्पत्ति हूँ। यहीं कर्म काण्ड सीखने आया था। मुझे स्वंय जी में परमेश्वर दिखता है।
शबरी की कहानी क्या है?
पौराणिक कथा के अनुसार, शबरी भील समाज से थी. भील समाज में किसी भी शुभ अवसर पर पशुओं की बलि दी जाती थी, लेकिन शबरी को पशु-पक्षियों से बहुत स्नेह हुआ करता था. इसलिए पशुओं को बलि से बचाने के लिए शबरी ने विवाह नहीं किया और ऋषि मतंग की शिष्या बन गई और ऋषि मतंग से धर्म और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया.भगवान श्रीराम शबरी द्वारा श्रद्धापूर्वक भेंट किए हुए बेरों को बड़े ही प्रेम से खाते हैं और इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं. इसके बाद भगवान मां शबरी को नवधा भक्ति के बारे में कुछ तरह से बताते हैं, जिसे तुलसीदास जी ने अपनी चौपाई में लिखा है… नवधा भगति कहउं तोहि पाहीं, सावधान सुनु धरु मन माहीं।शबरी से कहां मिले भगवान राम? रामायण में भगवान राम और शबरी की मुलाकात का भी जिक्र है. शबरी धाम दक्षिण-पश्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा से 33 किलोमीटर और सापुतारा से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुबीर गांव के पास स्थित है. माना जाता है कि शबरी धाम वही जगह है जहां शबरी और भगवान राम की मुलाकात हुई थी.कहानी के अनुसार, राम की एक पवित्र भक्त शबरी, राम के दर्शन के लिए प्रतिदिन निष्ठापूर्वक प्रार्थना करती थी। वह हम्पी में उस स्थान पर अपने गुरु मतंग के आश्रम में रहती थीं जिसे अब मतंग पर्वत के नाम से जाना जाता है।शबरी का पिता जम्भ ने विवाह हिरण्यकशिपु से कर दिया।ग्रंथों में मिलने वाली कथा के अनुसार माता शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त थी। शबरी का असली नाम “श्रमणा” था। ये भील सामुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थीं इसी कारण कालांतर में उनका नाम शबरी हुआ। इनके पिता भीलों के मुखिया थे, उन्होंने श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय किया था। शबरी ने श्रीराम-लक्ष्मण का सत्कार कैसे किया? शबरी ने श्रीराम-लक्ष्मण का सत्कार उन्हें मीठे-मीठे बेर खिलाकर किया। शबरी राम की अकचक देख रही थी। राम ने शबरी के द्वारा दिए हुए राजभोग को खाया।