ऋषिकेश : स्वामी चिदानन्द सरस्वती से आशीर्वाद लेकर हंसराज रघुवंशी और कोमल सकलानी रघुवंशी ने परमार्थ निकेतन से विदा ली

- प्रसिद्ध भक्ति गायक हंसराज रघुवंशी और उनकी जीवनसंगिनी कोमल रघुवंशी ने परमार्थ निकेतन में ऋषिकुमारों को भंडारा कराया
- परमार्थ निकेतन की यात्रा सेवा, भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण दिव्य क्षण–गायक हंसराज रघुवंशी
ऋषिकेश : प्रसिद्ध भक्ति गायक हंसराज रघुवंशी और उनकी जीवनसंगिनी कोमल रघुवंशी ने परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में तीन दिवसीय आध्यात्मिक प्रवास किया। इस प्रवास के दौरान उन्होंने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में साधना, सेवा और संस्कारों से ओतप्रोत अनमोल पल बिताए।तीनों दिनों तक परमार्थ निकेतन के पवित्र वातावरण में ऋषियों की परंपरा, गंगा की अविरल धारा और हिमालय की गोद में बसे इस तीर्थस्थल का आनंद लेते हुए हंसराज ने आत्मिक शांति प्राप्त की और भक्ति के नए अर्थों की अनुभूति की। अपने प्रवास के अंतिम दिन हंसराज रघुवंशी एवं कोमल रघुवंशी ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में संतों एवं ऋषिकुमारों को प्रेमपूर्वक भोजन कराया। इस सेवा कार्य के दौरान उन्होंने प्रेम, श्रद्धा और विनम्रता के साथ भारतीय संस्कृति की उस परंपरा को भी जीवंत किया जिसमें अतिथि, संत और ब्रह्मचारी परम पूजनीय होते हैं।
भंडारा सेवा के उपरांत उन्होंने स्वामी से आशीर्वाद प्राप्त कर विदा ली और अपनी इस यात्रा को जीवन की सबसे आत्मिक और प्रेरणादायक यात्राओं में से एक बताया।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हंसराज रघुवंशी भक्ति गीतों को गाते ही नहीं, जीवन की हर साँस में जीते भी हैं। जब संगीत सेवा बन जाए, जब स्वर समाधान बन जाए और जब गायन से जनजागरण हो तो समाज में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलता है।स्वामी ने हंसराज की गायन शैली, उनकी विनम्रता और भक्ति के प्रति समर्पण की प्रशंसा करते हुए उन्हें युवाओं के लिए एक “संगीतमय सन्देशवाहक” कहा जो अपने गीतों के माध्यम से समाज में सकारात्मकता और सनातन मूल्यों को जाग्रत कर रहे हैं।स्वामी ने कहा कि हंसराज जैसे युवा कलाकार जब अध्यात्म से जुड़ते हैं, तब संगीत साधना बनता है और साधना समाज का कल्याण करती है। उनका यह प्रवास युवाओं के लिए यह संदेश है कि भक्ति, जीवन को केवल संवारती नहीं, संपूर्ण रूप से निखारती है।
हंसराज ने परमार्थ निकेतन की विश्वप्रसिद्ध गंगा आरती में भी सहभाग किया। गंगा जी की आरती के दिव्य स्वर, मंत्रों की पवित्र गूंज और सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ बहती भक्ति की धारा ने उन्हें भावविभोर कर दिया। हंसराज रघुवंशी ने कहा कि मैं धन्य हूं कि मुझे आज इस पावन भूमि पर, पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज के चरणों में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह स्थान केवल तीर्थ नहीं, आत्मा की शांति का केंद्र है।यहाँ आकर मुझे यह अनुभूति हुई कि असली संगीत वही है जो आत्मा को छू जाए, और असली प्रसिद्धि वही है जो सेवा में लगे। परमार्थ निकेतन में बिताया हर क्षण मेरे लिए अमूल्य है। स्वामी ने हंसराज रघुवंशी को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।