देहरादूनी बासमती को बचाने की कवायद शुरू…भविष्य में मास्टर प्लान बनाने की रणनीति तैयार हुई
देहरादूनी बासमती चावल के संरक्षण एवं संवर्धन पर कार्यशाला हुई

देहरादून : उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड द्वारा देहरादूनी बासमती धान/चावल के संरक्षण और संवर्धन के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण कार्यशाला दिनक 19 जनवरी २०२४ को सभागार कक्ष जलागम प्रबन्धन निदेशायालय, देहरादून में आयोजित की गयी. कार्यशाला में किसानों, वैज्ञानिकों एवं व्यापारियों के समन्वय से देहरादूनी बासमती के संरक्षण के लिए भविष्य में मास्टर प्लान बनाने की रणनीति तैयार की गयी. जिससे देहरादूनी बासमती चावल की किस्मों की खेती को बढ़ावा देना और भविष्य में इस महत्वपूर्ण किस्म के विकास को बढ़ावा देना और इस महत्वपूर्ण प्रजाति को भविष्य में संरक्षित किया जाना बेहद जरूरी सिद्ध होगा. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वन, तकनीकी शिक्षा,भाषा, निर्वाचन एवं मंत्री सुबोध उनियाल थे.
डॉ. धनंजय मोहन, अध्यक्ष, उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड, आर.के. मिश्रा, सदस्य सचिव, उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड, सोनम गुप्ता, ब्लॉक विकास अधिकारी सहसपुर अर्पणा बहुगुणा, खंड विकास अधिकारी रायपुर, नीना ग्रेवाल, परियोजना निदेशक, जलागम प्रबंधन निदेशालय, उत्तराखंड एवं विभिन्न अनुसंधान इसमें संस्थानों के क्षेत्र वैज्ञानिकों और संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञ प्रतिनिधियों की भागीदारी थी। डॉ। जे. अरविंद कुमार भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, और आई. डी. पांडे जी. बी. पंत कृषि विश्वविद्यालय, देहरादून द्वारा बासमती से संबंधित विषयों पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रतिभाग कर प्रस्तुतिकरण दिया गया। मुख्य अतिथि सुबोध उनियाल, मंत्री वन भाषा, चुनाव एवं तकनीकी शिक्षा, द्वारा देहरादूनी बासमती के संरक्षण के लिए चिंता व्यक्त की गई. कहा गया बासमती सम्बंधित कृषि भूमि को संरक्षित किया जाए। बासमती चावल की खेती के लिए सिंचाई एवं विपणन की समुचित व्यवस्था पर बल दिया जाय। पहाड़ी इलाकों में बासमती चावल खेती को बढ़ावा देना चाहिए. उत्तरा रिसोर्स DEVLOPMENT संस्था द्वारा उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के सहयोग से देहरादूनी बासमती चावल टैप -3 के संरक्षण पर शोध कार्य किया गया. शोध कार्य की रिपोर्ट में पाया गया की वर्ष २०१८ में जहाँ ६८० किसोनों द्वरा ४१०.१८ हेक्टेयर भूमि में देहरादूनी बासमती चावल की खेती करते थे वहीँ वर्ष २०२२ में देहरादूनी बासमती चावल की खेती घट कर १५७.८३ हेक्टेयर रह गयी.