देहरादून :उत्तराखण्ड में परिवारवाद के साये में राजनीती और क्या कार्यकर्ता सिर्फ दरी बिछायेगा ?
देहरादून :देवभूमि उत्तराखण्ड में आगामी विधानसभा चुनाव दस्तक दे चुके हैं ऐसे में राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो 70 विधानसभा सीटों में किसको और कैसे टिकट दिया गया है एक नजर डालते हैं.
देखा जाये तो परिवारवाद ज्यादा हावी रहा टिकट बंटवारे में. सत्ता पक्ष भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस. भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो पार्टी हमेशा विरोध करती आयी है परिवारवाद की. आज सत्ता के जिस शिखर पर आसीन है इसी परिवारवाद के नाम की घुट्टी पिला-पिला कर कार्यकर्ता और आम जनता को चार्ज करती रही है. अब जब खुद की बारी आयी तो राजनीतिक मजबूरियां, अडजस्मेंट, डैमेज कण्ट्रोल, रणनीति जैसे शब्द परोसे जा रहे हैं. कुछ सार्वजनिक बोल रहे हैं कुछ कमरे के अंदर सोफे में बैठ कर मन ही मन कोष रहे हैं. भाजपा की परिवारवाद की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र व् वर्तमान विधायक सौरभ बहुगुणा सितारगंज से दूसरी बार लड़ रहे हैं चुनाव. दलीप सिंह रावत जो लैंड्सडौन से चुनाव लड़ रहे हैं उनके पिता खुद बड़े नेता रहे हैं भरत सिंह रावत. पांच बार विधायक रहे हैं इस सीट से. पूर्व सीएम बीसी खंडूरी की बेटी ऋतू खंडूड़ी भूषण जो अब कोटद्वार से चुनाव लड़ रही हैं.यमकेश्वर से पिछली बार विधायक थी इस बात कोटद्वार पार्टी ने कोटद्वार भेज दिया.देहरादून कैंट से 8 बार के विधायक स्वर्गीय हरवंश कपूर की पत्नी सविता कपूर को टिकट दिया है इस बार. काशीपुर में वर्तमान विधायक हरभजन सिंह सीमा के बेटे त्रिलोक सिंह चीमा को टिकट दिया है भाजपा ने. जिनका काफी विरोध देखने को मिला है काशीपुर में.ऐसे में कार्यकर्ता क्या करेगा ? जिंदगी भर दरी बिछायेगा क्या ? भाजपा ने अपने ही सिद्धांतों की तिलांजलि दे दी.
अब बात करें तो कांग्रेस की, देश की सबसे पुरानी पार्टी जिसने इतने लम्बे समय तक देश में सरकारें चलायी. यहाँ पर भी यही हाल है. खुद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुत्री हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़ रहे हैं और हरीश रावत लालकुआं से इस बार. यशपाल आर्य खुद बाजपुर से और बीटा संजीव आर्या नैनीताल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. हरक सिंह रावत की घर वापसी हुई तो बहु अनुकृति गुंसाईं को टिकट दिलवा दिया लैंड्सडौन से. कुमाऊं क्षेत्र की सबसे चर्चित सीट हल्द्वानी की बात करें तो स्वर्गीय इंदिरा हृदयेश के बेटे सुमित हृदयेश इस चुनाव लड़ रहे हैं.
देहरादून जिले के बरिष्ठ पत्रकार हरीश तिवारी का कहना है “यह राजनीती के स्तर को नीचे ले जाता है और कार्यकर्ता ऐसे में मायूश हो जाता है. ऐसे में ऊपर से पैराशूट प्रत्याशी भी आ जाते हैं बीच में. फिर कार्यकर्ता मायूश. जो पांच साल मेहनत करता है पार्टी की रीती-नीति को सींचता है. अचानक उसके ऊपर परिवारवाद और पैराशूट की छत्रछाया कर दी जाती है. फिर कार्यकर्ता को शांत करा दिया जाता है. फिर वह झंडा लेकर सड़क, गली,मोहल्ले में चल देता है. आज का समय ऐसा आ गया जन प्रतिनिधि वे बनेंगे जिनकी पेंट शर्ट की क्रीज नहीं टूटती हैं और ऊँची और लम्बी गाड़ियों में सफ़ेद कपड़ों में निकलते हैं. ऐसे में लोकतंत्र की सुन्दर बयवस्था को कहीं न कहीं एक चुनौती मिलती है. वहीँ जनप्रतिनिधि के चुनाव लड़ने के अधिकारों का भी कहीं न कहीं हनन होता है”. Pic Credit: Internet