देहरादून : सरदार भगवान सिंह यूनिवर्सिटी (SBS) की बीएससी कृषि फाइनल ईयर की छात्राओं ने कुआंवाला स्थित अनुपम ऐग्रो से लिया एक हफ्ते का प्रशिक्षण
देहरादून :छात्राओं ने यह शैक्षिक दौरा कार्य क्रम प्रभारी अनिल पंवार एवं डा दीपिका चौहान के नेतृत्व में किया। यहां छात्राओं ने खुम्ब बीज (स्पॉन) को बनाने की विभिन्न प्रक्रिया को जाना। अनुपम ऐग्रो के संचालक एम एच मिश्रा जी ने छात्राओं को अनाज से खुम्ब बीज बनाने की प्रक्रिया समझाई जिसमे वे अलग अलग प्रकार के अनाजों का उपयोग करते हैं जैसे की गेहूँ, बाजरा एवं राई।मशरूम का बीज प्राय: गेंहू के दानों पर बनाया जाता है। गेहूं को उसके दोगुनी मात्रा में पानी डालकर 20 – 25 मिनट तक उबाला जाता है। इसके अतिरिक्त पानी निकालने के बाद उसे छाया में 2 – 3 घंटों तक सुखाया जाता है।
इसके पश्चात् इन दानों में 2 प्रतिशत जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट) तथा 0.5 प्रतिशत चॉक पाउडर (कैल्शियम कार्बोनेट) अच्छी तरह मिला देते हैं अब इन दानों को कांच की बोतलों में लगभग 300 ग्राम प्रति बोतल की दर से भर बंद कर दिया जाता है। इन बोतलों को जीवाणुरहित करने के लिए 22 पौंड प्रति वर्ग इंच के दबाव पर ऑटोक्लेव में डेढ़ से 2 घंटे के लिए रखा जाता है। ऑटोक्लेव सेन निकाल कर बोतलों को ठंडा होने के बाद पहले से तैयार शुद्ध कवक जाल संवर्धन को इन बोतलों में डाल देते हैं और 250 सेल्सियस पर ऊष्मायंत्र में रख दिया जाता है। इस प्रकार लगभग टी सप्ताह में मास्टर संवर्धन तैयार हो जाता है। बीजाई के लिए बीज बनाने हेतु गेहूं उबालने से लेकर रसायन मिलाने तक की प्रक्रिया समान ही होती है, परंतु कांच की बोतलों की जगह पॉलिप्रोपाइलिन की थैलियों का प्रयोग किया जाता है। इन थैलियों का प्रयोग किया जाता है। इन थैलियों में 500 ग्राम बीज भरकर मोटे प्लास्टिक के छल्लों में पिरो लिया जाता है और रूई के ढक्कन से थैलियों के मूंह को बंद कर दिया जता है। इसके बाद इन थैलियों को 22 पौंड प्रति वर्ग इंच के दबाव पर ऑटोक्लेव में डेढ़ घंटे तक जीवाणुरहित किया जाता है। ठंडा होने के बाद इन थैलियों को निजर्मीकृत कमरे में ले जाता है। पहले से बनाये गये मास्टर संवर्धन से लगभग 50 दाने प्रत्येक पॉलिप्रोपाइलिन की थैलियों में डाल दिए जाते हैं। इन थैलियों को 250 सेल्सियस तापमान पर ऊष्मायंत्र में 2 -3 सप्ताह के लिए रखा जाता है। यह शुद्ध संवर्धन अब बिजाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। खुम्ब बीज बनाने के लिये वे अन्य प्रकार के यंत्रों का प्रयोग करते हैं जैसे कैटल, औटोक्लएव आदि। उन्होने साथ साथ कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया का भी जिक्र करते हुए बताया कि इसको बनाने कि दो महत्वूर्ण दो विधियां है जिसको की संपूर्ण भारतवर्ष में किया उपयोग की जाती है। उन्होने छोटी एवं लम्बी अवधी की विधि को समझाया तथा उनसे होने वाले फायदे और नुकसान बताये। छोटी अवधी की प्रक्रिया का समय 15-20 दिन होता है जिसमे यंत्रो का उपयोग ज्यादा होता है जिसके कारण तापमान, आद्रता और कार्बन डाई ऑक्साइड को सुनिश्चित कर किसी भी सीज़न में उगायी जा सकती है उन्होने छोटी अवधी मे तयार होने वाली प्रक्रिया को लम्बी अवधी की प्रक्रिया से लाभदायक बताया। उन्होने कोल्ड स्टोर में स्पॉन को रखने का एक नियमित तापमान(4-8°c) बताया।उन्होने छोटी अवधी की प्रक्रिया को किसानों के लिये ज्यादा लाभदायक बताया। मिश्रा जी इससे पूर्व 15 साल तक प्रोडक्शन मैनेजर फ्लेक्स फूड कंपनी मे कार्यरत थे। इसके अलावा उन्होंने बताया कि एक किग्रा. गेहूं के सूखे भूसे से लगभग 700 से 800 ग्राम तक मशरूम की पैदावार ली जा सकती है।
एक किग्रा. स्पान से लगभग 10 थैल आसानी से भर जाते हैं। इस प्रकार इसकी खेती के लिए सूखा भूसा एवं गेहूं मुख्य सामग्री है। एक बार सभी आवश्यक सामग्री खरीदने के बाद मशरूम की खेती के लिए लागत एवं लाभ का अनुमान एक अनुपात दो से अधिक आता हैगांवों के छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए इसकी खेती रोजगार एवं आय का प्रमुख साधन हो सकती है, क्योंकि गांवों में विभिन्न कृषि अवशेष मुफ्त अथवा बहुत ही कम कीमत पर प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही गांवों के कच्चे मकान तुलनात्मक रूप से ठंडे होते हैं।