CDS अनिल चौहान पहुंचे परमार्थ निकेतन, गंगा आरती कर लिया माँ गंगा का आशीर्वाद, बोले पहले क्योँ नहीं आया मैं ऋषिकेश
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- परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में विश्व विख्यात गंगा की आरती में किया सहभाग
- देव भक्ति व देश भक्ति का अनुपम संगम परमार्थ गंगा आरती
- देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी धर्मपत्नी मधुलिका को अर्पित की भावभीनी श्रद्धाजंलि
- जनरल बिपिन रावत का बलिदान देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा- CDS
- जनरल बिपिन का असमय जाना पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति- CDS
- युवाओं को देशभक्ति के रंग में रंगने पर हुई चर्चा
- महाकुम्भ प्रयागराज-2025 में सहभाग हेतु किया आमंत्रित
ऋषिकेश, 8 दिसम्बर। परमार्थ निकेेतन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चैहान पधारे। उन्होंने स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती में सहभाग किया। रात्रिविश्राम परमार्थ निकेतन के दिव्य आध्यात्मिक वातावरण में किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चैहान , परमार्थ निकेतन परिवार के सदस्य और विश्व के कई देशों से आये श्रद्धालुओं ने देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी धर्मपत्नी मधुलिका को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की। जनरल बिपिन रावत का बलिदान देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। उनका असमय जाना पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति है।
स्वामी ने सीडीएस अनिल चैहान को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर पूरी भारतीय सेना का अभिनन्दन किया। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान सपरिवार आये परमार्थ निकेतन”चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने कहा कि यह पहला मौका है जब एक आध्यात्मिक कार्यक्रम में सहभाग करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह ऋषिकेश की मेरी पहली यात्रा है। यहां आकर ऐसा लग रहा है कि मैं पहले क्यों नहीं आया। परमार्थ गंगा आरती वास्तव में एक स्पिरिचुअल हैप्पी आवर है। वास्तव में इसमें पहले शरीक होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सुरक्षा और शांति का अटूट संबंध है।”चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चैहान ने कहा कि परमार्थ निकेतन, गंगा के तट पर स्थित एक दिव्य आध्यात्मिक केंद्र है, जो देश-विदेश से आने वाले भक्तों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां की गंगा आरती न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, आध्यात्मिक जागरूकता और सामाजिक सेवा का प्रतीक भी है। हमें गर्व है कि पूज्य स्वामी विदेश की धरती पर भारतीय संस्कृति की धर्म ध्वजा फहरा रहे हैं और गंगा के तट से प्रतिदिन सनातन संस्कृति की पताक लहरा रहे हैं।उन्होंने कहा कि गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, यह हमारी संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक है। हमारी सेना का प्रत्येक जवान भी गंगा की तरह ही अपने राष्ट्र की सेवा में समर्पित है।सीडीएस अनिल चैहान ने युवाओं से देशभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी का पालन करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, युवाओं के पास भारत के भविष्य को आकार देने की शक्ति है, वे इसे नैतिकता, ईमानदारी और साहस के साथ कर सकते हैं। युवाओं में देशभक्ति का भाव जगाना और उन्हें राष्ट्रहित में प्रेरित करना समय की मांग है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि संत अपनी संस्कृति की रक्षा करते हैं और सैनिक अपनी सीमाओं की सुरक्षा करते हैं। हमारी सेना न केवल सीमाओं की रक्षा करती है, बल्कि जब भी देश पर कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो हमारी सेना के जवान प्रकृति और समाज की रक्षा के लिए भी तत्पर रहते हैं। संत और सैनिक दोनों ही समाज की अनमोल धरोहर हैं, जो अपनी-अपनी भूमिकाओं में राष्ट्र और समाज की सुरक्षा और उन्नति सुनिश्चित करते हैं। जहां संत अपनी आध्यात्मिकता, धर्म और संस्कृति के माध्यम से समाज को सही दिशा प्रदान करते हैं, वहीं सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा कर भारत को सुरक्षित रखते हैं। इन दोनों के योगदान के बिना समाज और राष्ट्र की स्थिरता की कल्पना करना असंभव है।संतों का जीवन समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है। वे अपनी साधना, ज्ञान और सेवा के माध्यम से लोगों को धर्म, नैतिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व का महत्व समझाते हैं। संतों का उद्देश्य न केवल व्यक्ति के आध्यात्मिक उत्थान में योगदान देना है, बल्कि समाज को उसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ों से जोड़े रखना भी है।भारतीय संस्कृति, जो विश्व की सबसे प्राचीन और समृद्ध संस्कृतियों में से एक है, संतों के योगदान के कारण ही जीवंत व जागृत है। संतों ने सदैव समाज को यह संदेश दिया कि संस्कृति हमारी पहचान है और इसे संरक्षित करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है और सैनिक तो देश के वास्तविक नायक हैं। वे दिन-रात सीमाओं पर अपनी जान जोखिम में डालकर देशवासियों को सुरक्षित रखते हैं। उनकी सेवा और बलिदान के कारण ही हम अपने घरों में चैन और शांति से रह पाते हैं।
चाहे बाढ़ हो, भूकंप हो, या कोई अन्य आपदा, भारतीय सेना के जवान अपनी वीरता और कर्तव्यनिष्ठा से हर बार यह साबित करते हैं कि वे केवल सीमाओं के ही नहीं, बल्कि समाज के भी रक्षक हैं। उनकी तत्परता और समर्पण हर नागरिक के लिए प्रेरणा का स्रोत है। अब समय आ गया है कि सैनिकों की तरह, प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रहित के लिए व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचना होगा। स्वामी ने कहा कि संत, समाज की आत्मा को पोषण देते हैं, जबकि सैनिक देश के शरीर को सुरक्षित रखते हैं। दोनों के बीच यह सामंजस्य राष्ट्र की स्थिरता और प्रगति के लिए आवश्यक है।