आयुष एवं आयुष शिक्षा सचिव, उत्तराखंड, दीपेंद्र चैधरी (आईएएस) आये परमार्थ निकेतन

- अमर शहीद श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर परमार्थ निकेतन गंगा की आरती अर्पित कर श्रद्धा सुमन किये समर्पित
- आयुष एवं आयुष शिक्षा सचिव, उत्तराखंड, दीपेंद्र चैधरी (आईएएस) आये परमार्थ निकेतन
- स्वामी चिदानन्द सरस्वती से भेंट कर लिया आशीर्वाद
- उत्तराखंड को हैल्थ व वेलनेस राज्य के रूप में विकसित करने हेतु हुई विशद् चर्चा
- जनक्रांति के अग्रदूत, मातृभूमि के लिए अमर बलिदान का अनुपम उदाहरण है शहीद श्रीदेव सुमन देव
- सुमन केवल एक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि चेतना का स्थायी स्रोत–स्वामी चिदानन्द सरस्वती

राष्ट्र जनक्रांति के महानायक, स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर परमार्थ निकेतन में विशेष यज्ञ कर स्वामी चिदानन्द सरस्वती और परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने श्रद्धासुमन अर्पित किये।स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में आज की परमार्थ निकेतन गंगा की आरती उन्हें समर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि श्रीदेव सुमन एक विचार थे; वे चिंगारी थे, क्रांति की ज्वाला थे। उनका जीवन त्याग, तप, सत्य और स्वदेश के लिए समर्पण की अद्भुत मिसाल है। गांधी से प्रभावित होकर उन्होंने सत्याग्रह, असहयोग और अहिंसा को अपने जीवन का मार्ग बनाया। उन्होंने टिहरी राज्य की तानाशाही और अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद की। उन्होंने जनमानस को शिक्षित करने, संगठित करने और अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़े होने की शक्ति दी। अपने लेखों, भाषणों और आंदोलनों के माध्यम से उन्होंने उत्तराखंड की राजनीति में क्रांतिकारी चेतना का संचार किया।
1944 में टिहरी रियासत की जेल में बंद किए गए श्रीदेव सुमन ने जब जेल में अमानवीय व्यवहार और तानाशाही का विरोध किया, तो उन्हें यातनाएँ दी गईं। लेकिन उन्होंने झुकने से इनकार किया। उन्होंने 84 दिन तक आमरण अनशन किया। अंततः 25 जुलाई 1944 को उन्होंने अपना जीवन मातृभूमि के चरणों में अर्पित कर दिया। वे मर कर भी जनमानस में, चेतना में, और स्वतंत्र भारत के इतिहास में अमर हो गए। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आज की पीढ़ी को श्रीदेव सुमन जैसे अमर बलिदानियों से प्रेरणा लेनी होगी। जिन्होंने बताया कि एक अकेला व्यक्ति भी अन्याय के विरुद्ध क्रांति खड़ी कर सकता है। वे उत्तराखंड ही नहीं, संपूर्ण भारत के गौरव हैं।स्वामी ने कहा कि आज उनका नाम केवल इतिहास की किताबों में नहीं, बल्कि चेतना में, संस्कार में और उत्तराखंड की आत्मा में बसा है। वे उन दुर्लभ सेनानियों में थे, जिन्होंने सत्ता के सामने घुटने नहीं टेके, बल्कि सत्य और आत्मबल के सामने सत्ता को झुका दिया। उनकी पुण्यतिथि राष्ट्रीय चेतना को पुनः जागृत करने का दिन है। स्वामी ने कहा कि राष्ट्र से बड़ा कोई धर्म नहीं, और सेवा से बड़ी कोई साधना नहीं। आज जब समाज अनेक सामाजिक, नैतिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहा है, तब ऐसे समय में हमें उन वीर सपूतों की स्मृति और प्रेरणा की सर्वाधिक आवश्यकता है, जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से राष्ट्रहित में अपने प्राणों का बलिदान दिया। अमर शहीद श्रीदेव सुमन ऐसे ही युगनायक थे, जिनका जीवन संघर्ष, तप और त्याग की अनुपम गाथा है। श्रीदेव सुमन केवल एक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि चेतना का स्थायी स्रोत है। हमें उनके आदर्शों को आत्मसात कर एक जागरूक, सशक्त और सुसंस्कृत समाज की रचना करनी होगी। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।