विश्व दिव्यांग दिवस…परमार्थ विजय पब्लिक स्कूल, उत्तरकाशी के नन्हें-नन्हें दिव्यांग बच्चों ने निकाली दिव्यांग जागरूकता रैली
- परमार्थ निकेतन और महावीर सेवा सदन की उत्कृष्ट पहल ’’दिव्यांगता मुक्त भारत
- उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, लेह लद्दाख आदि पहाड़ी क्षेत्रों के दिव्यांगजनों तक कृत्रिम अंगों की सुविधा पहुंचाने हेतु विशेष वाहन फैक्ट्री का निर्माण
- परमार्थ निकेतन और महावीर सेवा सदन ने वर्ष 2012 से वृहद स्तर पर शुरू किया दिव्यांगता मुक्त राष्ट्र अभियान
- दिव्यांग जनों को कृत्रिम व सहायक अंग, कैलिपर्स, कृत्रिम हाथ व पैर, संशोधित जूते, बैसाखी और वाॅकर आदि का निःशुल्क वितरण विगत 47 वर्षों से
- दिव्यांगता मुक्त भारत एक स्वप्न नहीं संकल्प-स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश : #परमार्थ विजय पब्लिक स्कूल, #उत्तरकाशी के नन्हें-नन्हें दिव्यांग बच्चों ने आज #विश्व #दिव्यांग #दिवस के अवसर पर एक अद्भुत जागरूकता रैली निकालकर समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। इस रैली के माध्यम से, उन्होंने न केवल समाज में दिव्यांगता के प्रति जागरूकता बढ़ाई है, बल्कि यह संदेश भी दिया कि सही दिशा और समर्थन मिलने पर उनके जीवन में भी विशेष बदलाव आ सकता हैै।दिव्यांगता मुक्त भारत का सपना केवल दिव्यांगजनों व उनके परिवार वालों का नहीं बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है; एक सामूहिक जिम्मेदारी है। समाज के हर वर्ग को इस अभियान में अपना योगदान देना होगा चाहे वह आर्थिक सहयोग हो, जागरूकता फैलाना हो, या दिव्यांगजनों के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना हो क्योंकि यही एक माध्यम है जब हम समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि दिव्यांगता मुक्त भारत अभियान न केवल दिव्यांगजनों के जीवन को बेहतर बना रहा है, बल्कि समाज में उनके प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति बढ़ाने का कार्य भी कर रहा है। इस अभियान के अन्तर्गत न केवल कृत्रिम उपकरणों का वितरण किया जा रहा है, बल्कि दिव्यांगजनों के जीवन में आत्मनिर्भरता और सम्मान का पुनसर््थापन भी किया जा रहा है। इस पहल से पहाड़ी क्षेत्रों में रह रहे दिव्यांगजनों को उनकी जरूरतों के मुताबिक सहायक उपकरण आसानी से उपलब्ध कराए जा रहे हैं। कृत्रिम अंग और सहायक उपकरण केवल शारीरिक सहारा ही नहीं प्रदान करते, बल्कि दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनने का अवसर भी देते हैं। इस अभियान के माध्यम से, दिव्यांगजन न केवल सामान्य जीवन जीने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं।दिव्यांगता मुक्त भारत अभियान का विधिवत शुभारंभ वर्ष 2012 में परमार्थ निकेतन और महावीर सेवा सदन ने संयुक्त रूप से किया था। इस अभियान का उद्देश्य दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करना है। इसके अंतर्गत, कृत्रिम अंग, कैलिपर्स, कृत्रिम हाथ और पैर, बैसाखी, वॉकर, संशोधित जूते आदि सहायक उपकरण निःशुल्क वितरित किए जाते हैं।
उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, लेह-लद्दाख जैसे दूरदराज और पहाड़ी क्षेत्रों में दिव्यांगजनों तक कृत्रिम अंगों और सहायक उपकरणों की सुविधाएं पहुंचाने के लिए विशेष वाहन फैक्ट्री का निर्माण एक प्रेरणादायक पहल है क्योंकि दुर्गम पहाड़ी इलाकों में दिव्यांगजनों तक सहायक उपकरण पहुंचाना हमेशा से एक चुनौती रही है। इसे ध्यान में रखते हुए, परमार्थ निकेतन और महावीर सेवा सदन ने विशेष वाहन फैक्ट्री का निर्माण किया है। ये वाहन न केवल उपकरण पहुंचाने में सहायक होंगे, बल्कि मौके पर ही उपकरणों को तैयार और फिट करने की सुविधा भी प्रदान करते हैं।महावीर सेवा सदन विगत 47 वर्षों से दिव्यांगजनों को निःशुल्क सहायक उपकरण उपलब्ध कराने का कार्य कर रहा है। अब तक लाखों दिव्यांगजन इस सेवा से लाभान्वित हो चुके हैं।इस वर्ष परमार्थ विजय पब्लिक स्कूल के दिव्यांग बच्चों द्वारा निकाली गई जागरूकता रैली ने दिव्यांगजनों के प्रति समाज में एक नई सोच पैदा की है। बच्चों ने अपनी रैली के दौरान नारे और संदेशों के माध्यम से बताया कि दिव्यांगता कोई अभिशाप नहीं, बल्कि एक ऐसी स्थिति है जिसे समाज के सहयोग से बेहतर बनाया जा सकता है।
स्वामी ने सभी का आह्वान करते हुये कहा कि आइए, हम सब मिलकर इस मिशन का हिस्सा बनें और दिव्यांगजनों को एक सम्मानजनक और आत्मनिर्भर जीवन प्रदान करने में सहयोग करें।परमार्थ निकेतन द्वारा शुरू किये दिव्यांगता मुक्त भारत अभियान को परम आधुनिक वैज्ञानिक, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, राष्ट्रऋषि डा मोहन भागवत, भारत की राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मु, 14 वें राष्ट्रपति भारत रामनाथ कोंविद, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड पुष्कर सिंह धामी, माननीय मंत्री धनसिंह रावत और अनेक विभूतियों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और इस पहल की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की।आज भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस की जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये स्वामी ने डा राजेन्द्र प्रसाद जीको विशेष रूप से याद करते हुये कहा कि वे पहली बार परमार्थ निकेतन में 1954 में आयें, रात्रिविश्राम किया और परमार्थ निकेतन की विख्यात प्रार्थना में उन्होंने सहभाग किया। सीताराम सीताराम कहिए जाही विधि राखे राम ताहि विधि रहिये प्रार्थना ने उनके दिल को छू लिया, उस प्रार्थना की उन्होंने चर्चा की। अभी भी प्रतिदिन परमार्थ निकेतन में यह प्रार्थना रोज होती हैं। उसके पश्चात माननीय राष्ट्रपति राधाकृष्णन, माननीय रामनाथ कोंविद , वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु स्वयं यहां पर आयें और किसी न किसी रूप से विशिष्ट विभूतियों बराबर सम्पर्क बना रहा।आज परमार्थ निकेतन में विश्व शान्ति यज्ञ में राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस को विशेष आहुतियाँ समर्पित की।