ऋषिकेश में भू कानून और मूल निवास को लेकर महारैली में हजारों लोगों ने भरी हुंकार…नेता दिखे चिन्तन मुद्रा में

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  • IDPL हॉकी ग्राउंड से त्रिवेणी घाट तक लोगों का हजारों की संख्या में दिखा हुजूम 
  • मूल निवास और भू कानून की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतरे 
  • सरकार और सरकार से जुड़े नेताओं के माथे पर रंग बदलते हाव भाव साफ़ दिखाए दिए 
  • ऋषिकेश में वर्षों के बाद इस तरह की रैली देखने को मिली, राज्य की सबसे बड़ी खबर बनी
  • सरकार अब बयान पर बयान जारी कर रही है या करवा रही है, दिखा असर 
  • ऋषिकेश में नेता, छुटभैये  स्कूटी में घूमते दिखे, कुछ कमरों में करवट बदलते मिले,  बदल सकती है रैली आने वाले समय में राजनीतिक परिद्रश्य 
  • समिति के हाथ लगा फोर्मुला, कितना आगे प्रयोग कर  पाती है यह  देखना होगा, समिति में कुछ  अनुभव की दरकार 
  • गैर राजनैतिक रैली बोला गया, तो फिर सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ नारे क्योँ ? सवाल बनता है 
  • UKD जैसा स्थानीय दल समर्थन में नहीं आया, हैरान करने वाली बात रही 

ऋषिकेश :राज्य में  मजबूत भू-कानून और मूल निवास 1950  की मांग को लेकर रविवार को उत्तराखंड की सबसे बड़ी खबर रही ऋषिकेश में  महारैली. रैली में कम से कम पांच हजार से ज्यादा लोग जुटे. ये लोगों की भावनाएं थी….इसमें कोई दो राय नहीं थी. मूल निवास और भू कानून समन्वय समिति की तरफ से यह रैली आयोजित की गयी थी. सुबह 10 बजे से IDPL हॉकी ग्राउंड में लोग एकत्रित होने शुरू हो गए थे. उसके बाद लगभग 2 घंटे वहां पर लोगों को संबोधित करने के बाद रैली शुरू हुई त्रिवेणी घाट के लिए रवाना. इस दौरान, IDPL सिटी गेट, काले की ढाल, कोयाल घाटी, जय राम चौक होते हुए त्रिवेणी घाट पहुंची. एक तरफ पूरी तरह से जाम था. हजारों लोग नारों, बैनर हाथ में लिए, दोल दमाऊ, नाचते गाते जा रहे थे. पैदल हलारों तो थे ही, साथ में चौपहिया वहाँ, दुपहिया वहां, ई रिक्शा, बसें इत्यादि से भी लोग  पहुंचे. कुछ लोग IDPL से वापस चले गए थे जिनमें बच्चों के साथ आई महिलायें और बुजुर्ग थे. या किसी ने जरुरी कहीं जाना था. बाकी लोग त्रिवेणी घाट पहुंचे.समन्वय समिति से जुड़े लोगों में संयोजक मोहित डिमरी ने संबोधन के दौरान कई चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उन पर आगे लड़ाई लड़ने का ऐलान किया. तो लोग हाथ उठाकर वक्ताओं के संबोधन को समर्थन देते दिखे. रैली ने शासन प्रशसन और सरकार की आँखें खोल कर रख दी हैं. इसमें कोई शक नहीं है. आपको बता दे, मजबूत भू कानून 24 साल से लटका के रखा गया है. राजनीतिक बे इच्छा से मुख्यमंत्री आये सरकारें चलाई लेकिन किसी ने जहमत नहीं उठाई इस मांग पर कुछ करें..हालाँकि वर्तमान में पुष्कर सिंह धामी ने इस पर काम जरुर किया है…जिसकी लोगों ने तारीफ भी की है. उम्मीद है जल्द भू कानून लागू हो जायेगा. क्यूंकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद इसकी घोषणा की है. रैली में इतने लोग जुट जायेंगे हर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. हजारों की भीड़ जुटना बड़ी बात है. इस रैली को गैर राजनीतिक रैली घोषित किया हुआ था…लेकिन संबोधन में नारों में वर्तमान सरकार, और मुख्यमंत्री को टारगेट करते हुए नारे सुनाई दिए. ऐसे में कई सत्ता पक्ष के लोग अपनी स्कूटी स्टार्ट कर गलियों में ओझल हो गए चिंतन और टेंशन   की मुद्रा में. लोगों ने सवाल भी उठाये, अगर गैर राजनीतिक रैली थी तो सरकार को या मुख्यमंत्री को टारगेट क्योँ कर रहे हैं ? प्रश्न  जायज था.रैली में बुजुर्ग, महिलायें, युवा सभी थे. रैली एक तरह से आम आदमी की रैली थी इसमें कोई शक नहीं. लेकिन बहुत लोग ऐसे थे जिनको सरकार या मुख्यमंत्री को टारगेट करना अखरा. ओवर आल रैली में भीड़ से ये बातें उभर कर नहीं आई. लेकिन आने वाले समय में इसका भी असर देखने को मिल सकता है. बाकी जो अन्य नेता थे कांग्रेस या UKD के या छुटभैया वे कुछ  दिखे लेकिन वे ओने कोने से आहें भरते रहे जनता को देखकर. समिति के लोगों ने दिन रात लोगों के बीच जाकर लोगों को बताया आपका क्या हक़ है ? क्या समस्या है ? आपको क्या करना है…तब जा कर लोग निकले घरों से हुजूम बनाकर. यह रैली इसलिए भी बड़ी कही जा सकती थी. यह राजधानी में न होकर एक तहसील में हो रही थी. इससे ऋषिकेश या कहिये राज्य के राजनीतिक परिद्रश्य बदलाव की और संकेत मिल रहे हैं. लेकिन समय चुनाव के समय बताएगा किस करवट बैठता है. दक्षिण साइड या बाएं  साइड. भू कानून को लेकर अधिक मुखर रहे लोग, मूल निवास 1950 को लेकर कम बात हुई. सरकार भी भू कानून को लेकर ही जवाब दे रही है…मूल निवास को लेकर सरकार भी साइलेंट जैसी  मुद्रा में है.

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ऋषिकेश के नेता करवट बदलते दिखे कमरों में कुछ गलियों में निकलते-घुसते  दिखे जिनका घर में मन विचलित हो गया था भीड़ देखकर-एक बात की तारीफ करनी पड़ेगी. उत्त्तराखण्ड में जब भी आन्दोलन हुए जनता ने बढ़ चढ़कर भागीदारी की. वही ऋषिकेश में भी देखने को मिला.  सुबह  रैली शुरू होने  तक सब सामान्य था. लेकिन जैसे ही भीड़ बढने लगी. नेता कमरों में करवट बदलते दिखाई दिए. कोई स्कूटी निककर इस गली से निकलता तो उस गली से बाहर होता हुआ दिखाई दिया. दो तीन नेता ऐसे मिले जो पेट्रोल पंप पर भरने के बहाने निकले…ठीक उसी टाइम जब रैली 72 सीढ़ी के पास पहुंची…कुछ फ़ोन करते दिखे  भाई साहब कहाँ पहुंचे करके ? लेकिन शामिल नहीं हो सकते थे. क्योँ की गैर राजनीतिक थी. सत्ता पक्ष से जुड़े लोग वैसे भी आज मन की बात और सदस्य बनाओ में मशगूल थे. कांग्रेस वाले जरुर कुछ शामिल थे रैली में पैदल चलते हुए दिखाई दिए. सुनते रहे वे भी …सुनाने की बारी  आई नहीं… अहम बात जो थी रैली की, समिति के लोगों ने लोगों के घरों पर जा कर जो तैयार किया लोगों को उसमें वे सफल हुए. हालाँकि रैली को  देखते हुए अनुभव की कमी दिखी. साथ ही कुछ वक्ता ले बद्ध नहीं थे. जो जनता को बाँध सके. ये सीधे और आम भावना से जुड़े थे इसलिए लोग चिपके रहे….जुटे रहे. समिति को एक फोर्मुला मिला जो उम्मीद है आगे भी जारी रखेंगे. यह बात अन्य जन प्रतिनिधियों को सीखने की जरुरत है….जो खास तौर पर 500 या 100 रुपये देकर टेम्पो/बस भर ले जाते हैं. उनमें से कई वे होते हैं जो सुबह उठकर मुंह भी नहीं धो पाते हैं ..उनके लिए मुद्दे क्या औकात रखते हैं … लेकिन सन्देश रैली दे गयी.सन्देश देने में कामयाब हो गयी.  ऋषिकेश से लेकर देहरादून तक. अब इस मुद्दों को लेकर गढ़वाल, कुमाऊं  के अन्य इलाकों में कितना असर डाल पाते हैं आने वाले समय में यह देखने वाली बात होगी…रैली को सफल बनाने के लिए ऋषिकेश टीम से जुड़े लोगों की अहम भूमिका  रही. उनकी रातों और दिनों की मेहनत कामयाब  रंग लायी. त्रिवेणी घाट पर कई पूर्व विधायक, मंत्री, छुट भैया भी टहलते मिले पेड़ की छाँव में. उन्हूने भी रैली का समर्थन किया. रैली में कुछ अनुभव और जुट जायेगा तो आने वाले समय में समिति प्रभाव डाल सकती है. समिति और परिपक्व होगी.  आगामी निकाय चुनाव आने वाले हैं अगर सरकार की नियति सही रही तो, उसमें समिति कैसे अपना स्टैंड रखती है ? भू कानून और मूल  निवास को लेकर खास तौर पर… कैसे लोगों के बीच जाएगी यह देखने वाली बात होगी.

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नहीं दिखे कुछ खास जो वर्षों से रह रहे हैं ऋषिकेश में  अन्य राज्यों  के वासी, समिति के लिए कड़ी कर सकते हैं चुनौती-

पहाड़ मूल का सबसे अधिक ब्यक्ति दिखा रैली में. बाकि जो वर्षों से रह रहे हैं यहाँ पर, यहाँ नौकरी कर रहे हैं, काम धंधा कर रहे हैं वे रैली में नहीं दिखाई दिए. वे घरों से नहीं निकले. दुकानों में गेट पर आकर फिर अन्दर भाग लिए जैसे उनको काट खाने को कोई आ रहा है. न वे छुट भैये नेता दिखे जो उनके कंधे पर अपनी   राजनीती गर्म करके  के रखते हैं.  वैसे तो  वे कहते हैं हम उत्तराखंड के हैं. दस्तावेज सब मिलेंगे. अपना हक मागने के लिए सबसे लाइन में खड़े मिलेंगे..लेकिन अगर भू कानून, मूल निवास को लेकर उनसे बात की तो चेहरे के हाव भाव हिलने लगते. इसका उन्हें भी जवाब देना होगा आने वाले समय में.

इनका भी अहम् योगदान रहा रैली में –

उत्तराखंड नर्सिंग महासंघ से जुड़े मेडिकल टीम भी पहुंची थी आम जन की मदद के लिए. जिसमें डॉक्टर्स, नर्सिंग अधिकारी, फार्मेसिस्ट लोग शामिल थे. 25 लोगों की टीम मौजूद रही रैली में. अपने अलग टी शर्ट पहने जिसमें मेडिकल टीम लिखा हुआ था. आम जन की सेवा में वे तत्पर दिखे. नर्सिंग महासंघ अध्यक्ष हर्ष व्यास ने जानकारी देते हुए बताया, हम लोग ब्यक्ति गत तौर पर भू कानून और मूल निवास के समर्थन में है, लेकिन मेडिकल एक्सपर्ट होने के नाते हमने भी सेवा के मार्फ़त अभी भागीदारी की. जिसकी हमें ख़ुशी है.

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हर्ष व्यास, अध्यक्ष, नर्सिंग महासंघ

कुछ जनप्रतिनिधियों ने छुप छुप कर की मदद –

किसी ने गाड़ियाँ दी तो किसी ने ई रिक्शा किसी ने लोगों को  रैली में जाने के लिए ब्यक्तिगत तौर पर कहा. लेकिन खुद नहीं आये. उन पर नजर थी संगठन का जासूसों की.  हालाँकि सरकार ने अगले बजट  सत्र तक कहा है. लेकिन यह लम्बा समय है. पहले कर सकती थी. खैर अगर हो जाता है तो अच्छी बात है राज्य के हित के लिए. थोड़ी बहुत जमीनें बची हैं वे रुक पाएंगी. वरना प्रॉपर्टी डीलर तो दो दिन से सोये भी नहीं हैं राज्य में. खास तौर पर 250 वर्ग मीटर चर्चा का विषय रहा.

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