दिल्ली : भारत व त्रिनिदाद की धरती की दो दिव्य विभूतियों का मिलन, स्वामी चिदानन्द सरस्वती और स्वामी ब्रह्मदेव की हुई दिव्य भेंटवार्ता

- भारत व त्रिनिदाद की धरती की दो दिव्य विभूतियों का मिलन
- स्वामी चिदानन्द सरस्वती और स्वामी ब्रह्मदेव की दिव्य भेंटवार्ता
- त्रिनिदाद, टोबैगो सहित विश्व के अन्य देशों में भारतीय संस्कृति का शंखनाद कर रहे हैं स्वामी ब्रह्मदेव
- स्वामी ब्रह्मदेव ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती को डिवाइन मदर और श्री गुरू गीता पुस्तक भेंट की
ऋषिकेश: परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और ब्रह्म विद्यापीठम के संस्थापक एवं वैदिक विश्वविद्यालय त्रिनिडाड एंड टौबेगो के कुलपति स्वामी ब्रह्मदेव की दिल्ली में दिव्य भेंटवार्ता हुई। इस आत्मिक भेंटवार्ता के दौरान स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने परमार्थ निकेतन का सद्साहित्य पीस, ड्राप्स ऑफ नेक्टर, बाय गाड्स ग्रेस, मदर गंगा और हॉलीवुड टू द हिमालयः ए जर्नी ऑफ हीलिंग एंड ट्रांसफॉर्मेशन भेंट की।
दोनों दिव्य विभूतियोें ने श्री राम मन्दिर निर्माण और श्री रामलला की प्राणप्रतिष्ठा पर अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा कि यह जो ऐतिहासिक अवसर हम सभी के जीवन में आया है यह हमारा सौभाग्य भी है यह उन करोड़ों आस्थावानों की आस्था, बलिदानियों का बलिदान, कारसेवकों का संघर्ष, वर्तमान की संस्कारी सरकार का समर्पण और माननीय न्यायालय और भारत की स्थिर न्याय व्यवस्था के बल पर ही सम्भव हो पाया। 500 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद रामलला अपने धाम में आ गये। इस स्वर्णिम युग को युगों-युगों तक याद किया जायेगा।
दोनों पूज्य संतों ने प्रभु श्री राम का चरित्र, आदर्श और भारतीय संस्कृति के दिव्य मूल्यों को युवाओं में स्थापित करने हेतु एक योजना बनायी ताकि वैश्विक स्तर पर सभी युवाओं को एक नई दिशा, सोच, विज़न और डिवाइन कनेक्शन मिल सके। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज से नहीं पिछले 50 वर्षों से अधिक समय में स्वामी ब्रह्मदेव त्रिनिदाद, टोबैगो सहित विश्व के अन्य देशों में ध्यान, भारतीय पूजन पद्धति, कर्मकांड और भारतीय संस्कारों को पश्चिम की धरती पर प्रचारित करने हेतु अपनी सेवायें दे रहे हैं। पश्चिम की धरती पर वे सभी पूज्य संतों व पुरोहितों को साथ लेकर भारत की स्वर्णिम संस्कृति को निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं। विश्व मंगल के सूत्र देने वाले सनातन धर्म के लिये सभी को साथ लेकर कार्य कर रहे हैं। स्वामी ब्रह्मदेव विदेश की धरती पर रहते है परन्तु उन्हें अपनी माटी, भारतीय संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों से अत्यंत लगाव है।
स्वामी ब्रह्मदेव ने विश्व में शान्ति बनी रहे इस हेतु अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। आज भी 80 वर्ष के ये संत उसी ऊर्जा के साथ कार्य कर रहे हैं। हम दोनों वर्षों से पश्चिम की धरती पर भारतीय संस्कृति व सूत्रों को प्रचारित करने के लिये मिलकर कार्य कर रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद् और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मर्यादाओं एवं समर्पण को अपने जीवन में लिये सिपाही संत के रूप में स्वामी ब्रह्मदेव कार्य कर रहे हैं।
उन्होंने शीघ्र ही भारत लौट कर आने की बात कहते हुये कहा कि सभी पूज्य संतों के साथ युवाओं के मार्गदर्शन के लिये क्या-क्या योजनायें बनायी जा सकती है इस पर भी शीघ्र कार्य करने हेतु चर्चा करते हुये स्वामी ब्रह्मदेव जी ने कहा कि स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज सनातन संस्कृति के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश निरंतर प्रसारित कर रहे हैं। वे सनातन के सूत्रों के माध्यम से पर्यवरण, प्रकृति व नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये अद्भुत कार्य कर रहे है जिसकी गूंज न केवल भारत की धरती पर है बल्कि पश्चिम की धरती पर सुनाई देती है। इस अवसर पर स्वामी ब्रह्मदेव के साथ आये कई भक्तों और अनुयायियों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती का सान्निध्य प्राप्त कर आशीर्वाद लिया।