हल्द्वानी में बाबा रामपाल के आश्रम को किया गया शील

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हल्द्वानी : नैनीताल जिले के हल्द्वानी में प्रशासन ने  बाबा रामपाल का  आश्रम हुआ सील कर दिया गया है. बतया जा रहा है  नियमों के  विरुद्केध  भवन का हो रहा था सञ्चालन.   हल्द्वानी कोतवाली इलाके के अंतर्गत का है मामला. सिटी मजिस्ट्रेट एवं प्राधिकरण   के संयुक्त सचिव अएपी बाजपेई के निर्देश के बाद सीलिंग की कार्रवाई की गयी.  कार्रवाई के दौरान भारी संख्या में पुलिस बल इस दौरान तैनात रहा. पुलिस बल डहरिया स्थित बाबा रामपाल के आश्रम पहुंची. इस दौरान सिटी मजिस्ट्रेट एवं प्राधिकरण के अधिकारी मौजूद रहे. एसपी सिटी प्रकाश चन्द्र, CO नितिन लोहनी एवं कोताल राजेश यादव समेत परिसर में पुलिस बल तैनात रहा. आश्रम को सील कर दिया है. अधकारियों के मुताबिक़, जिस भवन में आश्रम बना है, वह आवासीय नक्शा पास कराकर बनाया गया है. जो की प्राधिकरण के  बिल्डिंग  बायलौज के विरुद्ध है. बिल्डिंग में अलग अलग कमरे बनाये गए हैं. जिसको पूर्व में नोटिस भी दिया गया था…बतया गया, आश्रम में  काफी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं. ऐसे में जन सुविधा का ध्यान में  रखते हुए और जनहानि न हो इसका ध्यान   रखते हुए आज भवन को सील कर दिया गया है. बताया जा रहा है,   पूर्व में कुछ हिंदूवादी संगठनों ने शिकायतें भी की थी.

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कौन हैं बाबा राम पाल –

बाबा रामपाल, जो पहले एक सरकारी इंजीनियर थे, बाद में एक विवादित आध्यात्मिक नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 8 सितंबर 1951 को हरियाणा के सोनीपत जिले में हुआ था. उन्होंने हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर के रूप में नौकरी की, लेकिन बाद में वे संत रामदेवानंद के शिष्य बने और कबीर पंथ संप्रदाय से जुड़े. रामपाल की कहानी में कई विवाद हैं। 2006 में, आर्य समाज के साथ विवाद के बाद उनके आश्रम को कब्जे में ले लिया गया था, और उन्हें और उनके समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया था.  2013 में, आर्य समाजियों और रामपाल के समर्थकों के बीच एक और झड़प हुई, जिसमें कई लोगों की मौत हो गई. उस समय कई दिन तक काफी बवाल हुआ था. देश भर की मीडिया में उस समय सुर्ख़ियों में थे बाबा राम पाल. 2014 में, रामपाल को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में पेश होने के लिए गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था, लेकिन वे अदालत में पेश नहीं हुए. रामपाल के समर्थकों को उन्हें धरती पर भगवान का रूप मानते थे, और उनके आश्रम में उन्हें विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं.

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