अमेरिका के प्रसिद्ध और विशाल गणेश टेम्पल में आदि शंकराचार्य जी की फिल्म की हुई स्क्रीनिंग, राजर्षि भूपेन्द्र मोदी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में स्वामी चिदानन्द सरस्वती मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित

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  • भजन सम्राट अनूप जलोटा  के भजनों ने किया गद्गद्
  • न्यूयार्क, अमेरिका के प्रसिद्ध और विशाल गणेश मन्दिर में विश्व विख्यात भजन सम्राट अनूप जलोटा का 70 वां जन्मदिवस मनाया 
  • भजनों के माध्यम से भीतरी और बाहरी पर्यावरण को शुद्ध और पवित्र बनाने का दिया संदेश
  • करगिल ऑपरेशन में शहीद जवानों के अदम्य साहस एवं बलिदान को नमन करते हुये उन्हें अर्पित की भावभीनी श्रद्धाजंलि

ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती ने न्यूयार्क, अमेरिका के प्रसिद्ध और विशाल गणेश टेम्पल में आयोजित आदि शंकराचार्य जी की फिल्म स्क्रीनिंग व भजन सम्राट अनूप जलोटा की भजन संध्या में मुख्य अतिथि के रूप में सहभाग कर भीतरी और बाहरी पर्यावरण को स्वच्छ और प्रदूषण बनाये रखने के लिये सभी को प्रेरित किया।

श्री गणेश टेम्पल के विशाल सभागार में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रही संस्थाओं के प्रतिनिधियों, श्रद्धालुओं और गणमान्य अतिथियों से खचाखच भरे सभागार में स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने राजर्षि भूपेन्द्र मोदी  को उनके सेवा कार्यो के लिये सम्मानित करते हुये कहा कि राजर्षि मोदी जी का पूरा परिवार भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिये सदैव अग्रणी रहा है। यह परिवार केवल उद्योग व व्यापार के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि संस्कारों के संवर्द्धन के लिये भी सदैव आगे हैं।

न्यूयार्क, अमेरिका के प्रसिद्ध और विशाल गणेश मन्दिर में विश्व विख्यात भजन सम्राट अनूप जलोटा  का 70 वां जन्मदिवस मनाया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने भजन सम्राट श्री अनूप जलोटा जी को अंगवस्त्र और रूद्राक्ष की माला पहना कर उनका अभिनन्दन करते हुये कहा कि अनूप जलोटा जी आध्यात्मिक संगीत और भजनों के माध्यम से जो सेवा कर रहे हैं वह अद्भुत है। ऐसी लागी लगन गीत के माध्यम से उन्होंने जनमानस के दिलों में अपनी एक अद्भुत छाप छोड़ी है।कारगिल विजय दिवस भारत के गौरवमय इतिहास, सेना के जवानों के शौर्य और वीरता की गाथा कहता है, जो 26 जुलाई, 1999 को लिखी गयी थी। यह भारत का अमर और अमिट इतिहास है। ऑपरेशन विजय जवानों ने अपने खून से लिखी अमिट इबारत है, जिसे हमेशा याद किया जायेगा। स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने सभी शहीद जवानों के अदम्य साहस एवं बलिदान को नमन करते हुये उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।

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स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने उद्बोधन में कहा कि सनातन धर्म के ज्योर्तिधर भारत की महान विभूति हिन्दू धर्म को आध्यात्मिक ऊँचाई, सागर सी गहराई और गंगा सी पावनता प्रदान करने वाले जगद्गुरू, शंकराचार्य जी ने अद्वैत परम्परा, सनातन धर्म और भारत के चारों दिशाओं में ज्योतिपीठ, शंृगेरी शारदा पीठ, द्वारिका पीठ, गोवर्धन पीठ आदि चार पीठों की गौरवमयी परम्परा को स्थापित कर सनातन संस्कृति को जीवंत व जागृत बनाने का अद्भुत कार्य किया। सेवा, साधना और साहित्य का अद्भुत संगम हैं ये दिव्य मठ।

उन्होंने अद्वैत रूपी अनमोल सिद्धान्त दिया अद्वैतवाद के सिद्धान्त से जितने भी वाद-विवाद हैं सब समाप्त किये जा सकते हंै। अद्वैत ऐसा मंत्र है जहां कोई गैर नहीं कोई भिन्न नहीं, कोई भेदभाव नहीं जो भारत ही नहीं पूरे विश्व को एक नई दिशा व नई ऊर्जा दे सकता हैं। अद्वैत एक ऐसा मंत्र है जहां मानव-मानव एक समान सब के भीतर है भगवान का दर्शन होता है। आदि गुरू शंकराचार्य जी ने छोटी सी उम्र में भारत का भ्रमण कर हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोने हेतु इन चारों पीठों की स्थापना की। तभी तो पूजा हेतु ‘केसर’ कश्मीर से तो नारियल केरल से मंगाया जाता है। जल गंगोत्री से और पूजा रामेश्वर धाम में, क्या अद्भुत दृष्टि है। कैसा अद्भुत सेतु बनाया समाज को जोड़ने का; भारत को एक रखने का और इसलिये उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक, दक्षिण से उत्तर तक, पूर्व से पश्चिम तक पूरे भारत का भ्रमण कर एकता का संदेश दिया।

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उनके संदेश का सार एकरूपता नहीं एकात्मकता है। भले ही एकरूपता हमारे भोजन में, हमारी पोशाक में न हो परन्तु हमारे बीच एकता जरूर बनी रहे, एकरूपता हो तो हमारे भावों में हो, विचारों में हो, देशभक्ति और देश प्रेम के लिये हो, ताकि हम सभी मिलकर रहें और अपने राष्ट्र को प्राथमिकता देते हुये देशप्रेम को दिलों में जागृत रखे। हमारे दिलों में देवभक्ति तो हो परन्तु देशभक्ति और देशप्रेम सर्वप्रथम हो, मतभेद भले हो पर मनभेद न हो। आपसी मतभेदों की सारी दीवारों को तोड़ने के लिये तथा नफरत की छोटी छोटी दरारों को भरने के लिये केरल से केदारनाथ तक और काश्मीर से कन्याकुमारी तक आदिगुरू शंकराचार्य जी ने पैदल यात्रा की, वो भी ऐसे समय जब कम्युनिकेशन और  ट्रांस्पोरर्टेशन  के कोई साधन नहीं थे।

ब्रह्म सत्यम्, जगन्मिथ्या का संदेश दिया। उन्होंने ’’ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया’’ का ब्रह्म वाक्य दिया। जो आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित है। ’’अहं ब्रह्मास्मि’’ अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और सर्वत्र हूँ । एकता और अभिन्नता का अद्भुत दर्शन है। सर्वत्र हूँ, सबमें हूँ के उद्घोष से चूंकि सब ब्रह्म है और सर्वत्र है तो प्राणीमात्र एवं प्रकृति की रक्षा का संदेश दिया। वैदिक धर्म और दर्शन को पुनः प्रतिष्ठित करने हेतु अथक प्रयास किये। तमाम विविधताओं से युक्त भारत को एक करने में अहम भूमिका निभायी। ऐसे परम तपस्वी, वीतराग, परिव्राजक, श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ सनातन धर्म के मूर्धन्य के जगद्गुरू शंकराचार्य को हम प्रणाम करते है।

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