ऋषिकेश : चंद्रेश्वर नगर स्थित ईशा इंटरनेशनल आश्रम में सन्यास दीक्षा समारोह का आयोजन किया गया

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ऋषिकेश :चंद्रेश्वर नगर स्थित ईशा इंटरनेशनल आश्रम में सन्यास दीक्षा समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह की अध्यक्षता स्वामी अपरोक्षानंद महाराज ने किया।सन्यास दीक्षा समारोह के अवसर पर परम पूज्य स्वामी अपरोक्षानंद सरस्वतीमहाराज के परम शिष्य ब्रह्मचारी चंद्रबल्लभम शास्त्री को पूज्य स्वामी जी द्वारा सन्यास जीवन में प्रवेश कराते हुए उनका नाम चिदरूपानंद सरस्वती नामकरण किया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में दूर दराज से आए संतों में देसीगौरक्षाशाला के संस्थापक अध्यक्ष महामंडलेश्वर ईश्वर दास  महाराज, स्वामी सुंदरानंद  महाराज, संत विदेह योगी कुरुक्षेत्र, स्वामी केवलानंद  महाराज माया कुंड , महंत महिमानंद जी अवधूत बड़ा आश्रम, स्वामी मेघानंद गिरी पूर्व कैबिनेट मंत्री यतिश्वरानंद जी महाराज ने प्रमुख रूप से प्रतिभाग किया।वक्ताओं ने संन्यास जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सन्यास का अर्थ सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर निष्काम भाव से प्रभु का निरन्तर स्मरण करते रहना। शास्त्रों में संन्यास को जीवन की सर्वोच्च अवस्था कहा गया है।सनातन धर्म में जीवन के चार भाग (आश्रम) किए गए हैं- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम। शास्त्रों में संन्यास को जीवन की सर्वोच्च अवस्था कहा गया है।

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संन्यास का व्रत धारण करने वाला संन्यासी कहलाता है। संन्यासी इस संसार में रहते हुए निर्लिप्त बने रहते हैं, अर्थात् ब्रह्मचिन्तन में लीन रहते हुए भौतिक आवश्यकताओं के प्रति उदासीन रहते हैं। सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर निष्काम भाव से प्रभु का निरन्तर स्मरण करते रहना। शास्त्रों में संन्यास को जीवन की सर्वोच्च अवस्था कहा गया है। संन्यास का व्रत धारण करने वाला संन्यासी कहलाता है। संन्यासी दो प्रकार के होते हैं। मायावादी संन्यासी सांख्यदर्शन के अध्ययन में लगे रहते हैं तथा वैष्णव संन्यासी वेदांत सूत्रों के यथार्थ भाष्य भागवत-दर्शन के अध्ययन में लगे रहते हैं। संन्यासी का परम कर्तव्य यह है कि उन्हें सब कुछ दान कर देना चाहिए। उनके पास कोई भी मोह माया तथा धन नहीं होना चाहिए। उनके पास क्रोध, हिंसा, लालच आदि अवगुण नहीं होना चाहिए। उनका परम कर्तव्य केवल अध्यात्म, क्षमादान तथा आत्मज्ञान प्राप्त करना है।

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सन्यास दीक्षा समारोह में प्रमुख रूप से स्वामी रमेश गिरी महाराज, स्वामी सुंदरानंद महाराज, महामंडलेश्वर वृंदावनदास महाराज, स्वामी नामदेव महाराज शास्त्री, स्वामी शरतचन्द्र महाराज, गणेश मनचंदा ,नानकचंद सोढ़ाणी, पवन मेहता, अनिल तिवारी, जितेंद्र सैनी, सुंदरलाल वर्मा, स्वामी हरि ओम नंदन, निर्भय, देवेंद्र गुलाटी, रागिनी, रेनू ,राजेंद्र बंसल सहित तमाम लोग शामिल थे।

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