ऋषिकेश: पंडित हरीश उनियाल, सुधा पुंडीर व अन्य ने ब्रह्मपुरी आश्रम में महाराजश्री से दीक्षा ग्रहण कर लिया आशीर्वाद

दो लोगों को दायित्व भी सौंपे गए अखिल भारतीय सीता राम परिवार की तरफ से

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  • ब्रह्मपुरी आश्रम में पंडित हरीश उनियाल और सुधा पुंडीर सहित 4 अन्य ने की महाराजश्री से  दीक्षा ग्रहण 
  • दीक्षा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द दक्ष से हुई है जिसका अर्थ है कुशल होना । समानार्थी अर्थ है – विस्तार। इसका दूसरा स्रोत दीक्ष शब्द है जिसका अर्थ है – समर्पण . अतः दीक्षा का सम्पूर्ण अर्थ हुआ – स्वयं का विस्तार
दीक्षा ग्रहण करने के बाद गुरु संग सभी शिष्य

ऋषिकेश :(मनोज रौतेला)  अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ अर्थात…..(जिन्होंने अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे मेरे नेत्रों को ज्ञान रूपी सलाई से खोल दिया, उस गुरु को मेरा नमन है)…इस मंत्र को हर कोई जो दीक्षा ग्रहण करता है वह अपने मन में रखता है और जाप करता है….गुरु शिष्य की परम्परा को आगे बढाते हुए दीक्षा देने की परंपरा भी भारतीय सनातन संस्कृति में अहम योगदान रखती है. इसी को चरितार्थ करते हुए,  सोमवार को ब्रह्मपुरी स्थित श्री राम तप स्थली आश्रम में नमामि नर्मदा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित हरीश उनियाल सहित पांच अन्य महिलाओं ने गुरु परंपरा के तहत दीक्षा ग्रहण की। ब्रह्मपुरी आश्रम में जगद्गुरु द्वाराचार्य स्वामी दयाराम देवानंदाचार्य महाराज ने सभी को एक एक कर दीक्षा दी। कहते हैं, गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र गुरुमंत्र कहलाता है. बशर्ते वह गुरु एक पारंगत और पूर्णरूपेण आध्यात्मिक जागृत होना चाहिए. क्यूंकि ऐसे गुरु के द्वारा दिया कोई भी शब्द, वाक्य एक ऊर्जा का भण्डार लिए हुए होता है. आश्रम में,  सभी ने महाराजश्री को जिंदगी भर के लिए गुरु मान कर आगे का जीवन पर्यावरण संरक्षण और समाज के लिए समर्पित करने की बात कही। इस अवसर पर विधि विधान से महाराजश्री ने दीक्षा देते हुए कहा,  “सभी को बधाई और शुभकामनायें मेरी तरफ से, और उन्हूने  कहा हर किसी को कोई न कोई गुरु बनाना चाहिए. जीवन में कोई रास्ता न भटके उसको उचित राह दिखाने के लिए गुरु द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना होता है. गुरु कभी अपने शिष्य से बुरा नहीं मानता है, बल्कि ढेर सारा आशीर्वाद देता है.” दीक्षा ग्रहण करने के बाद,  पंडित हरीश उनियाल ने कहा काफी समय से मैं सोच रहा था। आज दिन आया। मेरा सौभाग्य है मुझे महाराजश्री जैसा गुरु मिला । हम  पर्यावरण संरक्षण, संवर्धन और  नदियों के लिए काम करते हैं. हमें और ऊर्जा मिलेगी दीक्षा ग्रहण करने के बाद. 

ऋषिकेश की  शिक्षाविद सुधा पुंडीर ने कहा गुरु आज के समय में बहुत जरूरी है। महाराजश्री के बताए मार्ग पर  चलने से जीवन में जरूर सकारात्मक बदलाव आएगा। ऐसा मुझे उम्मीद है।क्यूंकि एक गुरु ही होता है जो सही मार्ग पर चलने कल के लिए प्रेरणा देता है. अपने शिष्य को मझदार में नहीं छोड़ता है.  इसके अलावा चार महिलाओं जिनमें   ढालवाला निवासी,
  1. सरिता उनियाल,
  2. मंजू कुड़ियाल,
  3. बृहस्पति रतूड़ी और 
  4. लक्ष्मी  लेखवार ने भी दीक्षा  ग्रहण की। दीक्षा ग्रहण करने के बाद  सभी ने कहा हमें खुशी है । हमने इस पवन जगह पर  गुरु जी से दीक्षा ग्रहण की है। यह हमारा सौभग्य है। हम गुरु जी के बताये मार्ग चलेंगे. इस दौरान सभी महिलाएं पारंपरिक परिधान में नजर आई. दीक्षा ग्रहण करने के बाद भव्य भंडारा भी आयोजित किया गया. जिसमें सभी भंडारा  प्रसाद ग्रहण किया.इस अवसर पर अखिल भारतीय सीता राम परिवार की प्रदेश अध्यक्ष सुशीला सेमवाल ने जानकारी देते हुए बताया, दो लोगों को अखिल भारतीय सीता राम परिवार से जोड़ा गया है। पंडित हरीश उनियाल को अखिल भारतीय सीता राम परिवार की तरफ से  केंद्रीय महामंत्री,  और शिक्षाविद सुधा पुंडीर को प्रदेश महामंत्री, उत्त्तराखण्ड का दायित्व दिया गया है। दीक्षा ग्रहण करने के बाद सभी ने मां गंगा को प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त किया. कार्यक्रम में महावीर दास, प्रमोद दास, गंगा राम दास, जगदीश दास,योगाचार्य सुदीप भट्ट शिवम, हरिओम, गुंजन पुंडीर, सरिता उनियाल, मंजू कुड़ियाल, बृहस्पति रतूड़ी,  सरस्वती लेखवार व अन्य लोग मौजूद रहे।
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दीक्षा का अर्थ है गुरु द्वारा शिष्य को आध्यात्मिक दीक्षा देना या किसी विशेष ज्ञानगुरु द्वारा शिष्य को आध्यात्मिक दीक्षा दे”ना या किसी विशेष ज्ञान की शिक्षा देना, जिसमें शिष्य अपने मन और कार्यों को गुरु के प्रति समर्पित कर देता है। यह एक धार्मिक या आध्यात्मिक समारोह है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास के लिए तैयार करता है, ज्ञान प्रदान करता है, और व्यक्ति के मन से अज्ञान और पाप कर्मों का नाश करता है। यह एक गुरु-शिष्य परंपरा का हिस्सा है, जिसमें गुरु शिष्य को नया जन्म और एक नया नाम भी दे सकते हैं।
दीक्षा के मुख्य पहलू:
  • अध्यात्मिक दीक्षा: गुरु द्वारा शिष्य को दिए जाने वाले मंत्र या ज्ञान के माध्यम से आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना।
  • समर्पण: शिष्य का अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और उनके आदेशों का पालन करने की इच्छा।
  • नया जन्म: दीक्षा के बाद व्यक्ति को एक नया नाम दिया जा सकता है और यह एक आध्यात्मिक पुनर्जन्म की तरह है, जिसमें पुराने कर्मों का नाश होता है।
  • ज्ञान और पात्रता: दीक्षा से व्यक्ति को दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है और वह किसी विशेष पूजा या साधना के लिए पात्र बन जाता है।
  • गुरु का महत्व: दीक्षा में गुरु एक मार्गदर्शक और उद्धारकर्ता के रूप में कार्य करता है, जो शिष्य को भवसागर से निकालने और भगवान से मिलाने में मदद करता है।
  • अन्य संदर्भ: दीक्षा का उपयोग किसी छात्र को योगाभ्यास जैसे किसी विशेष कार्य या अभ्यास से परिचित कराने के लिए भी किया जा सकता है, जैसे कि क्रिया योग में दीक्षा देना।

कार्यक्रम के दौरान,पंजाब सिंध क्षेत्र महाविद्यालय ऋषिकेश के योग साधक भी पहुंचे थे.  जिन्हें नमामि नर्मदा संघ  के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित हरीश उनियाल और अखिल भारतीय सीता राम परिवार की प्रदेश अध्यक्ष सुशीला सेमवाल और प्रदेश महामंत्री सुधा पुंडीर ने साधकों को  कॉपी और पेन वितरित किये. इस दौरान योगाचार्य सुदीप भट्ट के सानिध्य में योग साधकों ने आश्रम के प्रांगण में योग की भिन्न भिन्न मुद्राएँ कर योग को अपने जीवन में अपनाने और  स्वस्थ रहने का सन्देश भी दिया.

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दीक्षा ग्रहण करने के बाद मां गंगा तट पर सभी
योग साधकों को कॉपी और पेन वितरित करते हुए

आपको बता दें,  दीक्षा योग्य गुरु द्वारा कई तरीकों से दी जाती है।कोई गुरु शक्तिपात शांभवी मुद्रा से करके दीक्षित करते है।तो कोई गुरु आज्ञा चक्र पर शक्ति पात करते है।कोई गुरु एक बार नीचे से ऊपर तक का पूरा रास्ता सुषुम्ना से दिखा देते है फिर शिष्य को अपनी साधना से उस रास्ते से अपनी यात्रा करना होता है।लेकिन कई गुरु मंत्र दीक्षा भी देते है।ये प्रश्न मंत्र दीक्षा से संबंधित है।इसमें गुरु शिष्य की योग्यता,उसका इष्ट ,वगेरह अन्य बबटो को ध्यान में रखते हुए उसे सम्बन्धित मंत्र प्रदान करते है।ये मंत्र पूरी तरह गोपनीय होता है।इस मंत्र को मरते।दम तक किसी कोभी बताने की अनुमति नहीं होती है।ये।मंत्र पूर्णतया जाग्रत मंत्र होते है,जिन्हें गुरु ने चेतन्य किया हुआ होता है।इसीलिए ये मंत्र गुरु शिष्य के कान में सुनाते हुए शिष्य से साथ साथ उसका सही उच्चारण भी करवाते है।बाद में मंत्र के जाप सम्बन्धी अन्य जानकारी शिष्य को देते है।शिष्य को दिया।गया ये मंत्र गुरु मंत्र कहलाता है।इस मंत्र की कुछ कम से कम निश्चित संख्या में शिष्य को प्रतिदिन जाप करना अनिवार्य होता है।शिष्य चाहे तो उस निश्चित संख्या से अधिक जाप कर सकता है।गुरु के निर्देशानुसार जाप करने से।गुरु मंत्र प्रभाव दिखाना शुरू कर देता है।गुरु द्वारा निश्चित किया गया जप का लक्ष्य पूर्ण होने गुरु मंत्र आपके लिए चेतन्य हो जाता है।इस संबंध से आगे कुछ कहने ज्यादा कोई अर्थ नहीं है,क्योंकि ये खुद के।अनुभव की बात है।फिर दूसरी बात हर व्यक्ति के अनुभव एक जैसे नहीं होते है। इसी मंत्र दीक्षा को कान फुकना कहते है।आज कल शक्ति पात करना हर किसी के लिए संभव नहीं है।उसके लिए सक्षम गुरु चाहिए।इसीलिए मंत्र दीक्षा आजकल अधिक प्रचलन में है।शैव,शक्ति, वैष्णव संप्रदाय ,वगेरह अन्य जगहों पर ये कान फूंकना प्रचलन में है।

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