ऋषिकेश : सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों की सकुशल वापसी के लिए परमार्थ निकेतन में किया जा रहा है प्रतिदिन हवन

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ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन में उत्तराखंड सुरंग हादसा सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों की सकुशल वापसी के लिये प्रतिदिन विशेष हवन किया जा रहा है। उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों की सेफ्टी के लिये आज परमार्थ निकेतन में सभी ने मिलकर विशेष प्रार्थना की।उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिलक्यारा सुरंग के एक हिस्से के ढहने से उसमें फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिये उत्तराखंड सरकार और प्रशासन भरपूर प्रयास कर रहे हैं।

रेस्क्यू ऑपरेशन के लिये जो एजेंसियां काम कर रही है उन सभी का स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने धन्यवाद करते हुये कहा कि हमारे जवानों और इंजीनियर्स को शीघ्र ही इस समस्या का समाधान प्राप्त हो जायेगा और सभी सकुशल बाहर आ जायेंगे। अपने परिवार और पूरे राज्य के साथ दिपावली और ईगास मनायेंगे।परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने ईगास की शुभकामनायें देते हुये कहा कि अमावस्या के दिन लक्ष्मी जी जागृत होती हैं, इसलिए बग्वाल को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। हरिबोधनी एकादशी यानी इगास पर्व पर श्रीहरि शयनावस्था से जागृत होते हैं। उत्तराखंड में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से ही दीप पर्व शुरू हो जाता है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी हरिबोधनी एकादशी तक चलता है।

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम जी के वनवास से अयोध्या लौटने पर श्रद्धालुओं ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीये जलाकर उनका स्वागत किया था लेकिन, गढ़वाल क्षेत्र में श्री राम जी के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली। पहाड़ पर रहने वालों ने अपनी खुशी का उत्सव मनाते हुये एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया।मान्यता यह भी है कि गढ़वाल राज्य के सेनापति वीर भड़ माधो सिंह भंडारी जी जब दीपावली पर्व पर लड़ाई से वापस नहीं लौटे तो पहाड़ पर रहने वालों को काफी दुःख हुआ और उन्होंने उत्सव नहीं मनाया। कहा जाता है कि ग्यारह दिन बाद एकादशी को वह लड़ाई से लौटे। तब उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई। इस बार यह ईगास का पर्व वे सब जो सिलक्यारा सुरंग में फंसे हैं उनकी सेफ्टी और सुरक्षित घर लौटने की खुशी में मनाया जा रहा है ताकि सभी के घरों में खुशियों की दीपावली मनायी जा सके।

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