ऋषिकेश : हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनायें-परमार्थ सेवा टीम ने राजाजी नेशनल पार्क बाघखाला में किया रूद्राक्ष के पौधे का रोपण

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  • कांवडियों को वितरित किये तुलसी को पौधे
  • हरेला पर्व के अवसर पर यात्रा की याद में पौधों के रोपण का दिया संदेश
  • हरेला पर्व संस्कृति और प्रकृति का अनूठा संगम: स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश: परमार्थ निकेतन स्वास्थ्य एवं स्वच्छता जागरूकता शिविर बाघखाला, राजाजी नेशनल पार्क से परमार्थ निकेतन सेवा टीम ने कांविडयों को तुलसी के पौधों का वितरण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।परमार्थ निकेतन सेवा टीम और ऋषिकुमारों ने हरेला पर्व के अवसर पर बाघखाला, राजाजी नेशनल पार्क में रूद्राक्ष के पौधे का रोपण किया।

निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने विदेश की धरती से उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला की शुभकामनायें देते हुये कहा कि हरेला पर्व हरियाली संवर्द्धन, प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण का अनुपम सन्देश देता है। उत्तराखंड नैसर्गिक सौंदर्य और अपार जल राशियों से युक्त राज्य है, जो दुनिया भर के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां के कण-कण में प्रकृति अपने जीवंत रूप में विद्यमान है।

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उत्तराखंड जितना नैसर्गिक सौन्दर्य से युक्त है उतना ही यह लोकपरम्पराओं से भी समृद्ध है। यहां का प्रत्येक पर्व प्रकृति के साथ अटूट रिश्ते को दर्शाता है। उत्तराखण्ड के लोक पर्वो में नदियों, पहाड़ों, प्रकृति और पर्यावरण के साथ अटूट संबंध देखने को मिलता है। श्रावण के प्रथम दिन मनाये जाने वाला हरेला पर्व पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। हरेला का पर्व हमें नई ऋतु की शुरुआत का संदेश देता है। हरेला पर्व के नौ दिन पहले हरेले बोये जाते है तथा दसवें दिन अर्थात हरेला पर्व के अवसर पर उन्हें काटा जाता है। उसके बाद इसे देवता को समर्पित किया जाता है। हरेला पर्व सुख, समृद्धि और शान्ति का प्रतीक है। हरेले के साथ जुड़ी यह भी मान्यता है कि जिस वर्ष हरेला जितना बड़ा होगा फसलें भी उतनी अच्छी होगी। हरेला पर्व वास्तव में “पौधारोपण एवं प्रकृति संरक्षण” का पर्व है। हमारे पूर्वजों ने श्रावण मास के आरम्भ में हरेला पूजे जाने के उपरान्त एक पौधा निश्चित रुप से लगाने का संदेश दिया है ताकि मानव और प्रकृति के बीच जो अटूट संबंध है उसे और प्रगाढ़ बनाया जा सके।

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प्रकृति और पर्यावरण से ही जीवन और जीविका है; सम्पत्ति और संतति है इसलिये प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि संवर्द्धन करें। सांस्कृतिक गतिविधियों को पर्यावरण से जोड़कर शिक्षकों, स्कूली बच्चों और जनमानस के मध्य जन चेतना और जागरूता पैदा करने हेतु सभी मिलकर सहयोग प्रदान करें ताकि हरेला से हरियाली और खुशहाली की मुहिम को आगे बढ़ाया जा सके। आज हरेला पर्व के पावन अवसर पर हर घर, हर घट और हर तट पर मनायें हरेला पर्व इससे हरियाली भी होगी और खुशहाली भी होगी। आईये सभी मिलकर पौधारोपण करें और हर सांस का कर्ज चुकाएं तथा हरेला की इस अनमोल संस्कृति को आगे बढ़ाने में योगदान प्रदान करें।

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