नहीं रहे जाने-माने रंगकर्मी केपी ढौंडियाल, सुप्रसिद्ध गढ़वाली फिल्म घरजवें, कौथिक, बडांग से भी जुड़े रहे थे केपी
रायवाला : जाने-माने रंग कर्मी व फिल्मकार कान्ता प्रसाद ढौंडियाल का 67 वर्ष की उम्र में बीते रविवार को रायवाला के प्रतीत नगर में निधन हो गया। उन्होने उत्तराखंड से जुड़े विभिन्न विषयों पर 150 से अधिक डाक्युमेंट्री तैयार की। उत्तरांचल का जनांदोलन, नन्दा राजजात, जौनसार भावर जैसी डाक्युमेंट्री खूब पसंद की गई। परिवार मुंबई में रहता है. यहाँ पर उनके भाई व् अन्य रिश्तेदार रहते हैं. पांच सितंबर 1955 को ग्राम बीणा, पोखड़ा ब्लॉक जिला पौड़ी गढ़वाल में जन्मे कान्ता प्रसाद ढौंडियाल ने नव युवक रंग मंच के माध्यम से 1984 तक मुंबई में कई थियेटर निर्देशन किए। उसके बाद उनका गढ़वाली भाषा की फिल्मों की ओर उनका रुझान हुआ। सुप्रसिद्ध गढ़वाली फिल्म घरजवें, कौथिक, बडांग में भी उन्होंने निर्देशन में अपना सहयोग दिया. 27 वर्ष तक लगातार मुंबई में रहकर सिनेमा जगत में कार्य किया और वर्ष 2000 में उत्तराखंड लौट आए। यहां उन्होंने राज्य की फिल्म नीति बनाने की पुरजोर वकालत की और विभिन्न मंचों के माध्यम से आवाज उठाई। निर्मला आर्ट मुंबई की टेलीफ़िल्म जौनसारी जनजाति, हिस्ट्री आफ हिमाल्याज, ब्रहद्रथ नगर, बद्रीनाथ धाम, चौसिंघाखाडू, टपकेश्वर महादेव, पंचप्रयाग, आओ चलें उत्तरांचल आदि प्रमुख हैं। उनको विभिन्न संस्थाओं की ओर से सम्मानित भी किया गया जिनमे महाराष्ट्र स्टेट कल्चरल फोरम के द्वारा एवं चित्रपट प्रमाण पत्र उत्तराखंड एजुकेशन सोसाइटी द्वारा अखिल भारतीय उत्तराखंड संस्थान द्वारा फिल्म पुरस्कार तथा स्पोर्ट्स क्लब द्वारा दिया गया देहरादून कला शिरोमणि पुरस्कार तत्कालीन उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी द्वारा प्रदान किया गया।