एम्स ऋषिकेश के 11 संविदा कर्मचारियों को न्यायालय से राहत, हाईकोर्ट ने जताई सख्ती

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नैनीताल/ऋषिकेश :  उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश  जी. नरेन्द्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की डिवीजन बेंच ने शुक्रवार को एम्स ऋषिकेश द्वारा 11 संविदा कर्मचारियों की सेवा समाप्त करने के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए एम्स प्रशासन को फटकार लगाई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रिब्यूनल न्यायालय के आदेशों की अवमानना गंभीर विषय है और कर्मचारियों को वहीं से पुनः बहाल किया जाना चाहिए, जहां से उन्हें हटाया गया था।कोर्ट में सुनवाई के दौरान एम्स के अधिवक्ता ने यह दलील दी कि टिब्यूनल कोर्ट ने कार्यकारी निदेशक को जवाब देने के लिए उपस्थित होने लिए कहा है, जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा
मुख्य न्यायाधीश ने कहा –
“यदि न्यायालय ने कोई आदेश दिया है, तो उसका पालन अनिवार्य है। केवल निदेशक होने के नाते आप आदेशों की अनदेखी नहीं कर सकते। कर्मचारियों की पुनः नियुक्ति वहीं से होनी चाहिए थी, जहां से सेवा समाप्त की गई थी। नया नियुक्ति पत्र देना न्यायालय के आदेशों के विरुद्ध है।” एम्स ऋषिकेश ने ट्रिब्यूनल कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद कर्मचारियों को कार्य पर नहीं लिया, जिससे यह मामला न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आया। कोर्ट ने कहा कि यह कर्मचारियों का सीधा उत्पीड़न है और कार्यकारी निदेशक द्वारा जानबूझकर आदेशों की अवहेलना की जा रही है।
संविदा कर्मचारी अनुराग पंत ने अदालत के आदेश के बाद प्रतिक्रिया देते हुए कहा,  “हमें हमारी न्यायपालिका पर पूरा विश्वास था कि हमें न्याय मिलेगा। आज का आदेश हमारे लिए राहत भरा है और हम सभी कर्मचारियों में खुशी की लहर है।”उन्होंने बताया कि एम्स प्रशासन की मनमानी के चलते न केवल कर्मचारियों को मानसिक कष्ट झेलना पड़ा, बल्कि उनके पिछले महीनों का वेतन भी लंबित है। अभी तक उन्हें कार्यकाल विस्तार का कोई लिखित आदेश नहीं दिया गया है, जिससे उनका आर्थिक शोषण हो रहा है।
कर्मचारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एम. सी. पंत ने पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों का हवाला दिया, जिनमें दुसरे संस्थानों के संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों को नियमित किए जाने के निर्देश दिए गए हैं।इस मामले में उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद अब एम्स ऋषिकेश पर अपने कदम सुधारने और कर्मचारियों को न्याय दिलाने की ज़िम्मेदारी आ गई है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में एम्स प्रशासन न्यायालय के आदेशों का पालन कितनी गंभीरता से करता है।

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