(लेख) राजधर्म- सरकार! ये देवभूमि है?
राजधर्म-
सरकार! ये देवभूमि है?
~पार्थसारथि थपलियाल~
22 वर्षीय उत्तराखंड जवानी में पहुंच गया है। इस जवानी में 13 मुख्यमंत्री उत्तराखंड को मिल चुके हैं। 22 वर्षों में 13 मुख्यमंत्री। वैसे आइडिया बुरा भी नही है। उत्तराखंड के नागरिक समृद्ध और संपन्न कैसे बने? मुझे लगा कि अगर उत्तराखंड में सालाना मुख्यमंत्री हो तो क्या बुराई। हर साल 10-11 लोग मंत्री बनेंगे, कुछ को दर्जा मिलेगा कुछ को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनने का मौका भी मिलेगा। जिनको ऐसा नही मिलेगा उन्हें सलाहकार बनाया जा सकता है। मुझे लगता है राज्य में उपकृत्य करनेवाले पद 80 से 100 तो होंगे ही। कुछ लोग पंच-प्रधानी में हाथ धोते ही हैं। इस तरह प्रति वर्ष में 13 जिलों के कम से कम 1300 लोग देहरादून, हरिद्वार, कोटद्वार या हल्द्वानी में बस सकते हैं, कोठियाँ खड़ी कर सकते हैं। ऐसा करने में उन्हें आर्थिक बोझ भी महसूस नही होगा।
उत्तराखंड से जितना अधिक पलायन हो रहा है इसका सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अध्ययन करें तो लगता है वहां जितने कम लोग होंगे उतने ही कुछ लोगों के सम्पन्न होने के अवसर अधिक होंगे। पिछले 22 वर्षों में सरकारों की उपलब्धि को देखें तो पलायन अधिक हुआ है। इसीलिए उत्तराखंड में पलायन आयोग बना। जैसे किसान आयोग है उसका उद्देश्य किसानों की समस्या को समझना है, ऐसे में पलायन आयोग का उद्देश्य क्या समझा जाय। पलायन को रोकना या बढ़ाना। अगर पलायन को रोकना उद्देश्य है तो उसके लिए कार्यवाही क्या की गई,? स्थानीय रोजगार स्थानीय कृषि, स्थानीय पशुपालन में ऐसा क्या परिवर्तन हुआ है जिसे उत्तराखंड की कोई भी सरकार अपनी उपलब्धि बता सके। मेरा कटाक्ष किसी एक नेता या एक सरकार पर नही है। यह भी नही कह सकता कि कुछ नही हुआ। एक ही तो शब्द है जो पुराणों और कथानकों से हमे मिला है। जैसे किसी मंत्र को पढ़ने से पहले ॐ (प्रणव) का उच्चारण किया जाता है वैसे ही उत्तराखंड सरकार की कोई भी बात “देवभूमि उत्तराखंड” से ही शुरू होती है। इस देव भूमि के लगभग 3000 गांव जनविहीन हो गए। पौड़ी और अल्मोड़ा के बाद चमोली भी इस राह पर आगे बढ़ रहा है। रोहिंग्या .. उत्तराखंड की बहू बेटियों को बहला फुसलाकर धर्मांतरण करवा रहे हैं। अभी हाल ही में चौंदकोट क्षेत्र की 17 वर्षीय बेटी को रोहिंग्या मजदूर ले गया। ऐसी घटनाएं आये दिन देखने सुनने में आ रही हैं, आखिर इन लोगों को वहाँ रहने, जगह जगह पर मजार बनाने या व्यापार करने की सहूलियतें कैसे मिल रही हैं? सरकार की कोई नीति है? यही है देवभूमि?
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 481 लोगों को गुलदार ने मार दिया। 1700 लोग अधमरे हुए। औसतन प्रति वर्ष 60 लोगों की जान नरभक्षी जानवरों के कारण होती है। बाघ, चीता, भालू, आदि घरों से लोगों को उठा उठाकर मार रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए सरकारी नियम आड़े आते हैं। मृत व्यक्ति के परिवार को सरकार की आर्थिक सहायता नही मिल पाती क्योंकि कई बार इस बात का प्रमाण नही मिलता कि मृतक को बाघ ने मारा या किसी अन्य जानवर ने। भारत सरकार में बहुत उच्च पद पर रहे दिवाकर कुकरेती बता रहे थे कि उनके गांव पुन्डोरी के बगल में कांसदेव गांव (निकट कांसखेत) एक ऐसा ही मामला हुआ। डॉक्टर ने बाघ या तेंदुआ द्वारा मारे गए व्यक्ति की मृत्यु रिपोर्ट में लिखा किसी जंगली जानवर के काट खाने से मृत्यु। केवल जानवर लिख देने से सरकारी अनुतोष राशि नही मिल सकती है। क्या मरनेवाले और जंगली जानवर का फोटो लाना पड़ेगा? ऐसे दो मामले इसी क्षेत्र में हुए। अगर घूस दे दी जाती तो शेर के खाने से भी मृत्यु प्रमाणित हो जाती। बिना मुर्गीबाज़ी के कुछ भी संभव नही। अधिकारियों पर दायित्व थोपने से लीपापोती होनी है, इसलिए स्थानीय लोगों के हितों के अनुकूल नियम कानून बनाये जांय। राजनीति के नाम पर राजनीति का धंधेबाज चंद लोग रईस बन रहे हैं। विवाह हो या अंतिम संस्कार दारू के बिना कार्य संभव नहीं। नई पीढ़ी के युवा जो समृद्ध उत्तराखंड का सपना संजोए कुछ शुरू करना चाहते हैं, क्या बिना लिए दिए उन्हें पनपाने के लिए कोई रास्ता है? मुख्यमंत्री धामी बहुत गतिशील व प्रगतिशील युवा मुख्यमंत्री हैं क्या वे विचार करेंगे कि जिस देवभूमि की कल्पना की गई थी वह कहीं दिखाई देती है? क्या हम अपनी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं को बचा पाए हैं?
अपने ही खेतों में पनपाये पेड़ किसान अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नही काट सकता। वह जंगल मे अपने पशु नही चरा सकता। गांव की नदी पर, मिट्टी पर किसान का अधिकार नही रहा। माननीय देव भूमि में देवता रहें अच्छी बात है। शायद मजारों और रोहिंग्यों को देखकर वे भी कही और चले जांय लेकिन आम जनता के अनुरूप कानूनों और व्यवस्थाओं का न होना पलायन को रोक नही पायेगा तब बंद स्कूलों की मुंडेरों पर मुर्गीबाज़ लोग ऐश करेंगे। कोई बंगाल से, कोई बिहार से कोई नेपाल से और नजीबाबाद वाले तो चारधाम तक पसरे हुए है। हे देवभूमि के देवताओं! राजनीति की बजाय उत्तराखंड में लोकनीति की आवश्यकता है जागिये। माता भूमि पुत्रोहम पृथिव्या।।