(लेख) देवभूमि में गिरती राजनीति की नैतिकता     

ख़बर शेयर करें -
  देवभूमि में गिरती राजनीति की नैतिकता         
           ~पार्थसारथि थपलियाल~
बचपन मे गुरुजनों से जो नीति की बातें सुनते थे, वे अब तक भी याद हैं। बहुत सी बातें तभी दिमाग मे उभरती हैं जब कोई घटना विशेष हो जाती है। जैसे-
जननी जने तो भक्तजन, या दाता या शूर
नही तो जननी बांझ रहे, कहे गंवाए नूर।।
इस देश मे एक माँ हुई, जिनके सुपुत्र का नाम नरेंद्र दत्त था। जो स्वामी विवेकानंद नाम से विख्यात हुए। उन्होंने शिकागो विश्वधर्म सम्मेलन में (सितंबर 1893 में) भारत के वेदांत दर्शन का परिचय जब दुनिया को कराया तो सनातन संस्कृति जिसे अरबों, तुर्कों, मुगलों और अंग्रेजों ने तहस नहस कर दिया था। जिस संस्कृति को मलेच्छों ने विकृत कर दिया था, उसी संस्कृति को विश्वभर में ख्याति दिला दी थी। स्वामी विवेकानंद का उत्तराखंड से विशेष लगाव था।  वे कम से कम चार बार उत्तराखंड यात्रा पर आए। एक जगह उन्होंने लिखा ” महान हिमालय प्रकृति के काफी निकट है.. यहां अनेक देवी देवता निवास करते हैं…हिमालय देवभूमि है। ” हल्द्वानी-अल्मोड़ा मार्ग पर काकड़ी घाट के पास पीपल के एक पेड़ के नीचे स्वामी विवेकानंद को आध्यात्मिक ज्ञान हुआ था। इस प्रज्ञान के बाद ही वे शिकागो गए थे। शिकागो में उन्होंने सनातन धर्म पर जो व्याख्यान दिए उनके कारण आज तक उस धर्म सम्मेलन का मर्म विश्व मे गुंजायमान है।
उत्तराखंड की देवभूमि में भी एक रत्न ने जन्म ने जन्म लिया। वे दिल्ली में चरणवंदना के लिए जाने जाते हैं। चरणवंदना भी करनी चाहिए। जैसे संतों के चरण, त्यागियों, तपस्वियों के चरण, साधु सन्यासियों के चरण। इनके चरण छूने से पुण्य प्राप्त होता है। मेरे एक मित्र हैं सुरेश जखमोला, दिल्ली पुलिस में वरिष्ठ पद  से सेवानिवृत्त हैं, एक बार उन्होंने किसी संदर्भ में हरिवंशराय बच्चन जी की पुस्तक दशाद्वार से सोपान तक का एक उद्धरण सुनाया था- गुलामी का संस्कार 7 पीढ़ियों तक जाता है। झुकने का भी एक संस्कार होता है। कहते हैं-
वह दर दर नही जो हर सर को झुका न सके
वह सर सर नही जो हर दर पे जा के झुके।।
इस दौर में बहुत से लोगों को बिना रीढ़ की हड्डी के देखा है। उत्तराखंड में विधानसभा के लिए चुनाव प्रक्रिया प्रगति पर है। कोई आंसू बहा रहा है कि 21 साल में उत्तराखंड में कुछ नहीं हुआ इसलिए मुझे मौका दो। मैं देवभूमि को स्वर्ग बना दूंगा। कोई इनसे ये क्यों नही पूछता – नालायक ! अपना घर भरते रहे वरना तुम्हे खूब मौका मिला। धिक्कार है इस लुटेरी मानसिकता को। कमीशन खाने और ऐयासी के अलावा कोई चर्चे सुनाई नही दिए। समाज के ताने बाने  को विकृत करने का धूर्त काम उन्होंने किया जिन्होंने जनता की गाढ़ी कमाई की मलाई खाई। आज दिल्ली, या लखनऊ, कोटवार, हरिद्वार और देहरादून में आलीशान कोठियां बनी हैं। देवभूमि को भ्रष्ट करने में उत्तराखंड की राजनीति के कुछ ठेकेदार हैं। ये सीता को कपटपूर्ण ढंग से छलनेवाले हैं। एक राजनीतिक दल के नेता जो पहले भी रोहिंग्यों को बसाने और देवभूमि उत्तराखंड में गज़वा ए हिन्द के लिए लालायित हैं, मुख्यमंत्री बनते ही देवभूमि उत्तराखंड में इस्लामी विश्वविद्यालय बनाने का वादा सहसपुर, देहरादून के मुस्लिम समाज के साथ कर चुके हैं। इन प्रयासों से वह दिन दूर नही जब बदरीनाथ में रावल और पुजारी इस्लामी यूनिवर्सिटी का कोई मौलवी न हो। यह घोर निराशा का विषय है। कितना क्षुद्र लक्ष्य है।
आदमी कई बार ठोकर लगने से,असंतुलन के कारण, कभी कमजोरी के कारण, कभी भ्रमित होने के कारण और कभी धक्का पाने से भी गिरता है। कोई व्यक्ति अपनी संस्कृति और चरित्र से गिर जाय, फिर उसे क्यों चुना जाय। चुनावों में थोड़ा बहुत संघर्ष तो होता है, लेकिन एक दिन पहले तक एक पार्टी का जयकारा लगानेवाला रात खुलते ही दूसरी पार्टी का जयकारा लगाता है। ये क्या चरित्र प्रकट करता है। कोई “आप का है न बाप का” उत्तराखंड को गर्त में डालने का प्रयास दिल्ली से पहुँची “खांसी” भी कर रही है।
एक तरफ वे संताने हैं जो देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं। वे संताने भी हैं जो केंद्र सरकार में अद्वितीय कार्य कर रहे हैं। मेहनत मजदूरी वाले भी स्वाभिमान से जी रहे हैं। लोकतंत्र के प्रादेशिक मंदिर में जाने के लिए तैयार उन संतानों को परखने के वक्त नागरिकों के पास है। क्या मतदाता इन मुद्दों पर गौर करेंगे। इस चुनावों में किसी भी दल का कोई भी प्रत्यासी जो उत्तराखंड को पाकिस्तान बनाने वाली सोच को बढ़ावा देने वाला दिखाई दे, उसे अपना मत न दें। जनता प्रदेश का भाग्य सुधारने के लिए प्रतिनिधि चुनती है। सेवा का अवसर मिलता है, उसके लिए मन की पवित्रता आवश्यक है।Image Source-Internet
उगटा वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल।
हरि का सुमिरन छाँड़ि कै, भरि लै आया माल।।
    ।।  जय उत्तराखंड।।

Related Articles

हिन्दी English