(कविता) देवभूमि से नारी की आवाज उठी…
देवभूमि से नारी की आवाज उठी-
ईश्वर ने जिसे जननी बनाया है वह कमजोर नहीं , डरी हुई नही, जिसने अपनी कोख से ईश्वर के अवतार को जन्मा है, तू अबला नहीं,
अपने आप को पहचान, बहाने छोड़ उठ और बदल इस युग को,
न मांग किसी से सहारा,
अपने माता पिता की बुढ़ापे की लाठी बन,
अपने भाई – बहनों की सलाहकार बन,
जिससे डगमगाए न वो कभी भविष्य में,
ऐसी तू गुरु बन जिससे बने तेरी औलाद मिसाल इस डगर में ,
अपने पति की सुख और दुख की साथी बन,
दोस्तों की मददगार बन,
बेसहारों का सहारा बन,
तू अबला नहीं, अपने आप को पहचान, बहाने छोड़ उठ और बदल इस युग को,
दुनिया में जिन बुराइयों ने तुझको तुच्छ बना दिया है, सबको अपनी मां बहन बेटी अपनी लगती है लेकिन दूसरे की वस्तु मात्र दिखती है।
फैशन के आड़ में आज तुझको नुमाइश बना दिया, समझ इन दुनिया के चोंचलो को।
तू सीधी साधी, सादगी से ही भरी बड़ी खूबसूरत लगती है, तेरी खूबसूरती तेरे इस रूप में नहीं तेरे मन और बुद्धि में है।
खुद को निखार अपने ज्ञान से अपने हुनर से,
तू अबला नहीं, अपने आप को पहचान, बहाने छोड़ उठ और बदल इस युग को…
~रेखा भंडारी~