दिल्ली : राजधानी में पहाड़ी रामलीला की प्रस्तुति…पुराने राग, तर्ज़ (ट्यून), अवधी गायन पर आधारित दो दिवसीय रामलीला 28, 29 अक्टूबर को होगी आयोजित

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  • आज की पीढ़ी से अवगत कराने के लिए रामसेवक पर्वतीय कला मंच द्वारा दिल्ली के प्यारेलाल भवन में 28 एवं 29 अक्टूबर 2023 को दो दिवसीय रामलीला का आयोजन किया जा रहा है: राजेंद्र जोशी

नई दिल्ली : पहाड़ की प्रसिद्द रामलीला अब राजधानी दिल्ली में भी आयोजित होगी। एक बड़ा तबका पहाड़ का राजधानी में रहता है। ऐसे में लोगों को पहाड़ की रामलीला अब राजधानी में देखने को मिलेगी। इसके लिए अभ्यास शुरू हो चुका है।

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र पोखरी (गंगोलीहाट), पिथौरागढ़, चंपावत बागेश्वर, अल्मोड़ा, रानीखेत आदि इलाकों में आज से 50/ 55 वर्ष पूर्व जिस राग, धुन और तर्ज पर रामलीला का आयोजन किया जाता था उसको आज की पीढ़ी से अवगत कराने के लिए रामसेवक पर्वतीय कला मंच द्वारा दिल्ली के प्यारेलाल भवन में 28 एवं 29 अक्टूबर 2023 को दो दिवसीय रामलीला का आयोजन किया जा रहा है।रामसेवक कला मंच के अध्यक्ष राजेन्द्र जोशी बताते हैं कि इसमें भाग लेने वाले सभी पात्र (कलाकार) नई पीढ़ी के ही हैं लेकिन उनके द्वारा प्रस्तुति, गायन उत्तराखण्ड की प्राचीन शैली पर आधरित है। इसमें चौपाइयों, रागनी आदि प्राचीन धुन, (ट्यून) तर्ज़ पर ही हैं। इनमें अधिकतर कलाकार पहली बार ही अभिनय करने जा रहे हैं।

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इन कलाकारों को पिछले दो माह से प्रत्येक शनिवार/रविवार को संजय जोशी, महेश जोशी, राकेश जोशी और चंद्रेश पंत, के निर्देशन में अभ्यास (तालीम) कराया जा रहा है। इस अभ्यास का कार्य हमारे बरिष्ठ सदस्य पूरन चंद्र तिवारी के संरक्षण और अन्य वरिष्ठ सदस्य जिन्होंने आज से 50/55 वर्ष पूर्व रामलीला में अभिनय या निर्देशन किया था उनके सहयोग से किया जा रहा है। इस कार्य में लक्ष्मी रंजन पंत, प्रकाश चंद्र जोशी, कैलाश पाण्डे, नीरज लोहानी, योगेश ओली, गिरिजा जोशी अहम भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।अपनी प्राचीन संस्कृति को संजोए रखने के उद्देश्य से पहली बार इस प्रकार की रामलीला का आयोजन दिल्ली जैसे महानगर में किया जा रहा है। इसके लिए दिल्ली और एनसीआर में रहने वाले समस्त उत्तराखंड के लोगों से बहुत ही उत्साह वर्धक सहयोग मिल रहा है यहां तक की शनिवार और रविवार के अभ्यास (तालीम) में बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं और अभ्यास का भी आनंद ले रहे हैं।

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संस्था के अध्यक्ष राजेंद्र जोशी बताते हैं कि हम अपनी प्राचीन संस्कृति को बढ़ावा देने और अधिक से अधिक पर्वतीय लोगों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं ताकि लोग इस राम कार्य से जुड़ें और अपने पूर्वजों की धरोहर से परिचित हो सकें।

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