अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती के सान्निध्य में सत्संग का लाभ लिया
सत्संग की महिमा..ऋषियों ने प्रदान की विचारों की वैक्सीन..सत्संग वह दर्पण है जो परमात्मा के साथ स्वयं के भी दर्शन कराता है :स्वामी चिदानन्द सरस्वती

- मिसाइल मैन, पूर्व राष्ट्रपति डा ए पी जे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धाजंलि
ऋषिकेश : न्यूयार्क, अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती के सान्निध्य में सत्संग का लाभ लिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारे ऋषियों ने वर्षो की तपस्या के पश्चात हमें विचारों की वैक्सीन प्रदान कि है जो हमें तन, मन और धन से स्वस्थ और समृद्ध बनाये रखती है। यह वैक्सीन व्यस्त रहते हुये भी स्वस्थ और मस्त बनाये रखने की क्षमता रखती है।स्वामी ने कहा कि अपने जीवन को व्यवस्थित रखने के लिये हमारी प्रतिदिन की एक समय सारणी हो जिसमें योग, प्राणायाम, ध्यान, मौन, साधना और सेवा के लिये विशेष स्थान हो। अपनी बैंलेस शीट बनाओ, क्योंकि हमारी बुद्धि हर समय विचारों में उलझी रहती है मन भावना जगत से जुड़ा रहता है, शरीर और इंद्रियाँ, विषयों में उलझी रहती हैं इसलिये सत्संग अत्यंत आवश्यक है।
सत्संग के माध्यम से ऋषियों ने ऐसी संस्कृति और संस्कार दिए हैं जो सदियों तक जिंदा रहे और आज भी जिंदा है। उन्होंने हमें बताया कि हमारा मन कैसा हो? तन में मनः शिव संकल्पम् अस्तु, मन शिव संकल्प करने वाला हो। न हमारी दोष दृष्टि हो और न द्वेष दृष्टि हो। किसी से बेहतर करूं क्या फर्क पड़ता है, किसी का बेहतर करू बहुत फर्क पड़ता है यह विचार हो। यही मानवता है; यही प्रेम है। जीवन का अर्थ ही है देना और देते चले जाना। ‘‘अपने लिये जिये तो क्या जिये’’ केवल अपने लिये नहीं, अपनों के लिये और उन अपनों में भी पूरे विश्व को समेट लें, इस तरह का भाव सत्संग के माध्यम से जीवन में आता है। आप सभी साथ मिलकर सत्संग के माध्यम से आप खुद को तराशते हैं तो दुनिया आपको तलाशती है।
स्वामी ने कहा कि जीवन अहंकार से स्वीकार की यात्रा है। सत्संग से जीवन, प्रेममय हो जाता है, फिर कहां द्वेष और कहां दोष, प्रेम जब अनंत हो गया, रोम रोम संत हो गया. देवालय हो गया बदन हृदय तो महंत हो गया। सत्संग के माध्यम से दृष्टि ही बदल जाती है, सृष्टि ही बदल जाती हैं। जीवन प्रेममय हो जाता है, ध्यानमय हो जाता है। स्वामी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान प्रवासी भारतीयों को अपनी संस्कृति, संस्कारों और अध्यात्म से जुड़ने के साथ ही मन्दिरों और प्रार्थना स्थलों के निर्माण हेतु प्रेरित करते हुये कहा कि भारतीय परिवार आपस में मिलकर प्रार्थना के साथ भारतीय संस्कृति और संस्कारों पर चर्चा करें, जिससे बच्चों को संस्कार भी मिलेगे, आपसी मेलजोल भी बढ़ेगा और रिश्ते भी मजबूत होंगे। साथ ही सभी आपस में जुड़ सकेंगे और दूसरों को भी जोड़ सकते हैं। इससे अपनी संस्कृति भी बचेगी, संस्कार भी बचेंगे तथा भावी पीढ़ी भी संस्कारवान होगी।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सभी को प्रकृति और पर्यावरण कर रक्षा का संकल्प कराया।