(लेख) राष्ट्रप्रथम- माननीयों की शपथ से विपथ नैतिकता

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राष्ट्रप्रथम- माननीयों की शपथ से विपथ नैतिकता
– पार्थसारथि थपलियाल-

जब नैतिकता का अंत होता है तब परंपराएं बकरी के गले मे लटकते थन से अधिक कुछ नही होते, उन्हें बकरी मजबूरी में ढोती है। लोकजीवन में जब व्यक्ति मंच पर कुछ बोलता है और लांच पर कुछ और तब नैतिकता खानापूर्ति से अधिक कुछ नही होती।

यह खानापूर्ति तब अधिक दिखाई देती है जब विभिन्न पदों पर आसीन होने से पहले किसी व्यक्ति को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है, लेकिन उसके व्यवहार में दिखाई नही देती।भारतीय संविधान के सोलहवें संशोधन में पद और गोपनीयता अधिनियम 1963 की धारा 5 प्रतिस्थापित प्रारूप 3 के अनुसार शपथ लेने व्यवस्था है। भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्यन्यायधीश, प्रधानमंत्री, राज्यपाल/उपराज्यपाल, लेखानियंत्रक, मुख्यमंत्री, व अन्य मंत्री पद ग्रहण करने से पहले पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं। इसकी प्रक्रिया अलग अलग है।लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनकी बात करनी ज्यादा महत्वपूर्ण है जो शासन के लिए सीधे उत्तरदायी होते हैं। इनमे वे लोग शामिल हैं जो सरकारें चलाते हैं। इनमें कार्यपालिका प्रमुख है।

जो लोग मंत्रीपद की शपथ लेते हैं वे दो प्रकार की शपथ लेते है। पहली शपथ पद की होती है जिसमे सत्य निष्ठा से, बिना भेदभाव के दायित्व निर्वहन की बात होती है, दूसरी शपथ गोपनीयता की होती है, कि वे अपने पद से संबंधी गोपनीय बातों को किसी को नही बताएंगे। वास्तविकता यह है कि यह एक औपचारिकता रह गई है। होता इसकके विपरीत है। पद पर बैठते ही व्यक्ति भेदभावपूर्ण रवैये से काम करना शुरू करता है, सत्य और निष्ठा सिर्फ अपने लिए अपने ही अपनायी जाती है। गोपनीय सिर्फ अपना भ्रष्टाचार रखा जाता है।

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भारतीय राजनीति के कुछ अभद्र चेहरे जिन्होंने संविधान की शपथ खायी और भ्रष्ट्राचार में दोषी पाए गए। बिहार केपूर्व- मुख्यमंत्री लालू यादव और जगन्नाथ मिश्र, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला हज़ारों लोगों को अवैध ढंग से सरकारी नौकरियों पर लगाना और पैसा कमाना, रशीद मसूद केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री (MBBS एडमिशन में घोटाला), पूर्व संचारमंत्री सुखराम, माया कोडनानी-मंत्री गुजरात (गुजरात दंगों में दोषी), शिब्बू सोरेन,बूटा सिंह, मधु कोड़ा आदि ने भी संविधान की शपथ ली थी। महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख, और अब नवाब मलिक भी प्रवर्तन निदेशालय के दायरे में दिखाई दे रहे हैं। शपथ इन्होंने भी ली थी। यूपीए सरकार के दर्जनभर मंत्री जिन्होंने जमकर भ्रष्टाचार किया था, शपथ उन्होंने भी ली थी। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नाम पर अन्ना हज़ारे को धोखा देकर, सरकार बनाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल ने भी शपथ ली थी।

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उन्होंने तो समाज को ही भ्रष्ट और निकम्मा बना दिया।मुफ्तखोरी और घर घर शराब की पहुंच के माध्यम से नागरिकों को बर्बाद किया जा रहा है। डीजल पेट्रोल के दामों में बढोत्तरी को महंगाई का कारण बताने वाले दारू की एक बोतल पर एक फ्री, सौ रुपये में 3 पाउच देकर पूरे समाज को नशेड़ी बनाने में लगे हैं। जो ठेके पर जाते लड़खड़ा रहे हों उन्हें होम डिलीवरी सेवा। इस अनैतिकता से लोग सरकार का वह राजस्व घाटा पूरा कर रहे हैं, जो बिजली पानी तथाकथित मुफ्त में मिलता है।

ये हैं हमारे माननीय। क्या ऐसा नही किया जा सकता है कि शपथ वाले प्रावधान को संविधान में से हटाकर इन माननीयों को बादशाहों की तरह जीने दिया जाय ताकि संविधान के एक उपबंध की बेइज़्ज़ती होने से बची रहे? अथवा शपथ दिलाने वाले पद के पास शपथ भंग की समीक्षा कर दंडित करने का प्रावधान हो। ताकि अनैतिक आचरण के लोग देश के महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा न कर सके।

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