ऋषिकेश : 14 और 15 नवंबर को माँ गंगा के तट पर होगा परमार्थ में संगीत सम्मलेन,जुटेंगे दिग्गज

- परमार्थ निकेतन में दो दिवसीय कार्यक्रम शाम 6.30 से बजे से शुरू होगा।
ऋषिकेश :(मनोज रौतेला) 14 और 15 नवंबर को पांचवा संगीत महोत्सव परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में स्वामी चिदानंद सरस्वती के सानिध्य में आयोजित होगा।साथ देंगे पंडित चंद्र कुमार मल्लिक मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट के युवा संगीतीज्ञ निलेश कुमार मल्लिक और निकेश कुमार मल्लिक। कार्यक्रम को नाम दिया है “नमामि गंगे इंटरनेशनल म्यूजिक एंड डांस फेस्टिवल।”
सोमवार को आईएसबीटी परिसर स्थित प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता करते हुए दिल्ली के युवा संगीतीज्ञ निलेश कुमार मल्लिक और निकेश कुमार मल्लिक ने पत्रकारों को क्रायक्रम की जानकारी दी।मलिक बंधुओं ने जानकारी देते हुए बताया, हमारी संस्था को अपार हर्ष और गौरव की अनुभूति हो रही है कि प्रत्येक वर्ष के भांति इस वर्ष भी पंडित चंद्र कुमार मलिक मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दो दिवसीय संगीत सम्मेलन का आयोजन देवभूमि उत्तराखंड के ऋषिकेश में 4 और 15 नवंबर 2023 को आयोजित होगा। इसका मुख्य उद्देश है उत्तराखंड के कलाकार एवं देश विदेश से आए हुए कलाकारों को एक मंच पर कलाओं का आदान प्रदान करना है।आपको बता दें, इससे पहले ट्रस्ट ने इसी महीने 6 और 7 नवंबर को एमिटी यूनिवर्सिटी गुरुग्राम, हरियाणा में शानदार संगीत महोत्सव आयोजित किया गया था।
पंडित चंद्र कुमार मल्लिक मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट जो एक गैर-लाभकारी संगठन है। जो भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य रूपों को बढ़ावा देकर समृद्ध भारतीय विरासत को संरक्षित करने में लगा हुआ है। इसके अलावा, संगठन पिछले 17 वर्षों से पूरे भारत में कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए संगीत समारोहों की व्यवस्था करते आया है। दोनों ने जानकारी देते हुए बताया, यह देश के युवा उभरते संगीतकारों के लिए एक अच्छा मंच है।ट्रस्ट संगीत और नृत्य के क्षेत्र में लगातार काम कर रहा है। हमारे गुणों में ध्रुपद गायन, पखावज (वाद्य), वेन्ना (वाद्य) और विभिन्न शास्त्रीय नृत्य रूप शामिल हैं। ट्रस्ट ने अब तक एक साफ छवि बनाये रखी है और भविष्य में भी ऐसा करती रहेगी। इसका उद्देश्य है राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगीतकारों दोनों के हित के लिए सम्मानजनक काम करना है।
पंडित चंद्र कुमार मल्लिक मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट, भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार के लिए देश के कई राज्यों में प्रतिष्ठित स्थानों, संस्थानों में कार्यक्रमों का आयोजन कर चुका है। जिसमें केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा आर्थिक सहयोग भी किया गया है और इसे सराहा भी गया है। चंद्र कुमार मल्लिक मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट तत्वाधान में विभिन्न स्थानों के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों ने भाग लिया। आज तक जितने भी कार्यक्रम हुए हैं उनमें कलाकारों द्वारा हमेशा मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति और यादें र मधुर संगीत की छोड़ी हैं।मालिक बंधुओं ने जानकारी देते हुए बताया, यह ट्रस्ट भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य के क्षेत्र में ज्ञान प्रदान करने के लिए समर्पित है।ट्रस्ट अब माँ गंगा किनारे परमार्थ निकेतन आश्रम में दो दिवसीय भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य कार्यक्रम का आयोजन करने जा रहा है। उम्मीद है एक बार फिर से शानदार प्रस्तुति से संगीत व् नृत्य प्रेमी दो दिनों में अपने मन को सीचेंगे।
पंडित चंद्र कुमार मल्लिक मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट, एक संक्षिप्त परिचय-
पंडित चंद्र कुमार मल्लिक मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट, नई दिल्ली ने पहले भी कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं जिनमें विभिन्न स्थानों से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों ने भाग लिया और दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। मल्लिक परिवार बिहार के दरभंगा की दरबारी संगीत परंपरा का प्रमुख प्रतिनिधि है, जो भारत के उत्तर-पूर्वी कोने में एक पूर्व राज्य है, जो नेपाली सीमा के करीब है। वे अपनी पंक्ति को गायक स्वर्गीय पं. से दोहराते हैं। राधाकृष्ण और कर्ताराम. जो प्रसिद्ध मुगल दरबार गायक तानसेन के वंशज लेफ्टिनेंट उस्ताद भूपत खान के साथ पच्चीस वर्षों तक अध्ययन करने के बाद 18वीं शताब्दी में दरभंगा के दरबार में पहुंचे। उस समय दरभंगा क्षेत्र में अकाल और भयंकर सूखा पड़ा था। भाइयों ने मदद की पेशकश की और राग मेघ (बारिश का जादुई राग) गाना शुरू कर दिया, जिससे तुरंत भारी बारिश होने लगी।
कृतज्ञतापूर्वक महाराजा माधव सिंह ने उन्हें कई गाँव और आसपास की ज़मीन दी जहाँ उनका परिवार आज भी रहता है। वे न केवल ज़मींदार (मल्लिक “मालिक”) बन गए, बल्कि मल्लिक परिवार ने दरभंगा के महाराजाओं के लिए मुख्य दरबारी संगीतकार भी प्रदान किए। 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद रॉयल कोर्ट के उन्मूलन के बाद, मल्लिकों ने सार्वजनिक संगीत कार्यक्रमों की शुरुआत की, जिससे उन्हें पूरे भारत और विदेशों में जाना जाने लगा।मल्लिक ध्रुपद की लयबद्ध रूप से विस्तृत व्याख्या के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। पुरानी ध्रुपद और धमार रचनाओं को छोड़कर – जिनमें उनके पास एक अद्वितीय भंडार है – वे ठुमरी शैली में ख्याल, तराना, ग़ज़ल, भजन और मध्यकालीन कवि विद्यापति के गीतों की प्रस्तुति के लिए भी जाने जाते हैं।दरभंगा परंपरा के ध्रुपद वंश की लंबे समय से चली आ रही परंपरा अलपा की आश्चर्यजनक शक्ति में सन्निहित है, लय का निरंतर प्रवाह बेहतरीन पुनरावृत्ति (कविता) के साथ जुड़ा हुआ है। खण्डारवाणी एवं गौहरवाणी का प्रयोग। मूलतः इस घराने ने वीणा और पखावज वादन की शाखाओं को भी कायम रखा है। ध्रुपद गायकों के दरभंगा घराने के प्रदर्शन को मुख्य रूप से आलाप के बाद गाने के तरीके से पहचाना जा सकता है। घराने की विशिष्ट विशेषता शक्तिशाली और अभिव्यंजक गायन प्रस्तुति है, जो प्रदर्शन की जीवंत शैली के साथ संयुक्त है।
अतीत में दरभंगा घराने के प्रसिद्ध संगीतकार थे- पं. धरमलाल मल्लिक,पं. भीम मल्लिक (पखावज, पं. चितपाल मल्लिक, पं. नेहल मल्लिक (वीणा), पं. राजितराम मल्लिक, पं. विष्णुदेव पाठक, पं. सुखदेव मल्लिक, पद्मश्री पं. रामचतुर मल्लिक, पं. महावीर एवं यदुवीर मल्लिक, पद्मश्री पं. सियाराम तिवारी और ध्रुपद वादक पं. विदुर मल्लिक। वर्तमान में पं. अभय नारायण मल्लिक, पं. नवल किशोर मल्लिक, डॉ. पं. प्रेम कुमार मल्लिक और पं. राम कुमार मल्लिक प्रमुख गायक हैं जबकि पं. रामाशीष पाठक.पं. चंद्र कुमार मल्लिक, श्री रमेश मल्लिक, श्री उदय कुमार मल्लिक और श्री आनंद कुमार मल्लिक दरभंगा परंपरा के पखावज वादक हैं।