परमार्थ निकेतन में माँ गंगा आरती प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यशाला का शुभारंभ

- वर्ल्ड ओशन डे के अवसर पर पाँच दिवसीय कार्यशाला जल की महत्ता को समर्पित
- परमार्थ निकेतन, नमामि गंगे और जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में माँ गंगा
- जागरूकता एवं आरती प्रशिक्षण की पाँच दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ
- पुरोहित केवल पूजा के अधिकारी नहीं जनजागरण के पथप्रदर्शक-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि माँ गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, एक जीवनधारा है। जैसे समुद्र पृथ्वी का हृदय है, वैसे ही गंगा भारत की आत्मा है। आरती का यह प्रशिक्षण केवल मंत्रों और दीपों का अभ्यास नहीं, यह हर व्यक्ति के भीतर जल-जागृति और कर्तव्य-बोध का जागरण कराना है।स्वामी ने कहा कि भारत की नदियाँ, विशेषतः माँ गंगा, न केवल लाखों लोगों की आस्था की प्रतीक हैं, बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका और स्वास्थ्य का स्रोत भी हैं। दुर्भाग्यवश, आधुनिकता, प्लास्टिक प्रदूषण और असंवेदनशीलता ने इन जीवनदायिनी नदियों को संकट में डाल दिया है।स्वामी ने कहा कि पुरोहित केवल कर्मकांड के ज्ञाता नहीं, बल्कि जनजागरूकता के अग्रदूत बनें। पुरोहित आस्था और समाज के बीच की सबसे प्रभावशाली कड़ी है। जब आस्था से जुड़े पुरोहित जल संरक्षण, स्वच्छता और पर्यावरण जैसे विषयों पर बोलते हैं, तो वह केवल संदेश नहीं होता, वह श्रद्धा से जुड़ा हुआ एक दिव्य उपदेश बन जाता है और उनके द्वारा कहा गया हर मंत्र, हर उपदेश समाज के व्यवहार को दिशा दे सकता है और जनमानस में स्थायी परिवर्तन का माध्यम बन सकता है इसलिए समय की मांग है कि पुरोहित केवल पूजा के अधिकारी न बनें, बल्कि जनजागरण के पथप्रदर्शक भी बनें।
साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि जब हम माँ गंगा की आरती करते हैं, हम केवल जल की पूजा नहीं करते बल्कि हम जीवन की पूजा करते हैं। यह कार्यशाला गंगा तट पर सेवा कर रहे पुरोहितों को यह समझाने का माध्यम है कि हर दीप, हर मंत्र, हर आरती एक जन-जागरण का एक दिव्य उपकरण है।परमार्थ निकेतन में आयोजित जल की महत्ता पर केंद्रित यह प्रशिक्षण माँ गंगा आरती की विधि और उसका आध्यात्मिक-सांस्कृतिक अर्थ, संवेदनशीलता के साथ मंत्रों का उच्चारण, जल संरक्षण, स्वच्छता और सतत विकास के संदेश को आरती में कैसे जोड़ा जाये यह संदेश पुरोहितों को दिया जाता है।वर्ल्ड ओशन डे के अवसर पर इस कार्यशाला का प्रारंभ यह बताता है कि महासागर हो या नदी हर जल स्रोत हमारी चेतना और अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। समुद्र की लहरें हों या गंगा जी की धाराएं ये सभी प्रकृति की चेतन अभिव्यक्ति हैं। आज जब हमारे महासागर प्लास्टिक, तेल रिसाव और अपशिष्ट से भरते जा रहे हैं और नदियाँ भी कचरे और गंदगी से कराह रही हैं।आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह जनमानस में भाव जागरण का साधन है। परमार्थ निकेतन वर्षों से इस मंत्र को आत्मसात करता रहा है आरती से सेवा तक, पूजा से पर्यावरण तक। इस प्रशिक्षण शिविर का उद्देश्य है कि माँ गंगा तट के पुरोहित न केवल धार्मिक रीति-रिवाजों में निपुण हों, बल्कि जल-संरक्षण के प्रहरी भी बनें। वे आरती के माध्यम से स्वच्छता, प्लास्टिक मुक्त जीवन, जैविक जीवनशैली और नदी पुनर्जीवन के सशक्त संदेश जन-जन तक पहुँचाएँ।
वर्ल्ड ओशन डे के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जब तक हमारे भीतर सागर और नदियों के प्रति श्रद्धा नहीं होगी, तब तक संरक्षण केवल नीतियों तक सीमित रहेगा। श्रद्धा से ही सेवा की प्रेरणा उत्पन्न होती है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। चाहे वह महासागर हो या माँ गंगा, हमें हर जल स्रोत को केवल उपयोग की वस्तु नहीं, एक जीवंत चेतना समझकर उसके प्रति समर्पित होना होगा। परमार्थ निकेतन में आयोजित यह कार्यशाला इसी भावना को जनमानस तक पहुँचाने का एक पवित्र और प्रभावशाली प्रयास है।आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि जल के हर रूप की रक्षा करेंगे, आरती से जागृति फैलाएँगे और माँ गंगा की धारा को अविरल और निर्मल बनाएंगे। स्वामी जी और साध्वी जी ने सभी पुरोहितों को अपने-अपने घाटों के लिये रूद्राक्ष के पौधें भेंट किये।इस कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर योगाचार्य आभा सरस्वती जी, योगाचार्य गंगा नन्दिनी, वंदना शर्मा, दुर्गा प्रसाद जी, आचार्य संदीप शास्त्री, आचार्य दीलिप क्षेत्री, ऋषिकुमार आयुष, राकेश रोशन, योगाचार्य गायत्री गुप्ता, उमा, दिनेश और परमार्थ निकेतन की सेवा टीम उपस्थित रही।