करौली स्थित शंकर महादेव मंदिर से  करौली शंकर महादेव  आये परमार्थ निकेतन

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  • परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती  के पावन सान्निध्य में विश्व विख्यात गंगा  की आरती में किया
  • सहभागआध्यात्मिक व समसामरिक विषयों पर हुई चर्चा
  • महा मानव, महात्मा ज्योतिबा फुले, गौरव, गरिमा और मानवोन्मुख परिवर्तन के युगदृष्टा
  • महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन
ऋषिकेश, 28 नवम्बर। करौली स्थित प्राचीन पवित्र शंकर महादेव मंदिर से  करौली शंकर महादेव  का परमार्थ निकेतन आगमन हुआ। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती  के पावन सान्निध्य में विश्वविख्यात गंगा  की आरती में विशेष रूप से सहभाग किया। इस दौरान आध्यात्मिक उन्नति और समसामरिक विषयों पर चर्चा हुई।स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने कहा कि करौली स्थित शंकर महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह साधना, सिद्धि और आत्मिक उन्नति का स्थान है। उन्होंने कहा कि आज के आधुनिक समय में हमारी बुद्धि तो अत्यधिक बढ़ रही है, परन्तु मन और आत्मा की शुद्धि धीरे-धीरे खोती जा रही है। जीवन में सबसे बड़ी सिद्धि केवल भौतिक सफलता या ज्ञान नहीं, बल्कि प्रसन्नता और आत्मिक शांति है।स्वामी ने कहा कि अक्सर हम अपने जीवन में धन, पद और प्रतिष्ठा अर्जित कर लेते हैं। हम अलमारियों को संपत्ति और उपलब्धियों से भर लेते हैं, ऐसी भागदौड़ में कई बार हम स्वयं खाली ही रह जाते हैं। साधना का वास्तविक अर्थ यही है कि हम अपने भीतर की शून्यता को भरें, स्वयं को पहचानें और आत्मा का वास्तविक अनुभव प्राप्त करें।
उन्होंने कहा कि यदि जीवन में शुद्धि और शोध नहीं है, तो प्रतिशोध और नकारात्मकता बढ़ती जाती है। स्वामी  ने आदि गुरू शंकराचार्य  द्वारा रचित भज गोविन्दम् के श्लोक-कस्त्वं कोऽहम् कुत आयातः मे जननी को मे तातः इति परिभावय निजं संसारं सर्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम्, की गहन व्याख्या की। स्वामी ने कहा कि इस श्लोक का संदेश अत्यंत महत्वपूर्ण है हमें अपने वास्तविक स्वरूप, अपने आत्मा और ईश्वर को पहचानना चाहिए। संसार में उलझ कर, केवल बाहरी सुख-साधनों को पाने में लगना, हमें शून्यता और अधूरी अनुभूति की ओर ले जाता है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने यह भी स्पष्ट किया कि भज गोविन्दम् केवल भक्ति का संदेश नहीं देता, बल्कि यह जीवन के वास्तविक उद्देश्य और संसार को त्यागने की शिक्षा देता है। जब हम अपने भीतर के भ्रम, अहंकार और मोह से मुक्त होते हैं, तभी हम वास्तविक शांति और आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।करौली शंकर महादेव  ने कहा कि साधना का मूल उद्देश्य स्वयं को जानना, अपने भीतर की पूर्णता को अनुभव करना और आत्मा का जागरण करना है। जब हम स्वयं को पा लेते हैं, तभी हम बाहरी संसार में भी शांति, संतोष और प्रसन्नता का अनुभव कर सकते हैं। उन्होंने उपस्थित साधकों और भक्तों को प्रेरणा दी कि जीवन में सच्ची सिद्धि प्रसन्नता, संतोष और आत्मिक जागरूकता में निहित है।उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में भौतिक उपलब्धियाँ तो बढ़ रही हैं, लेकिन मन और आत्मा की शुद्धि की ओर ध्यान देना अतिआवश्यक है।
स्वामी  ने महात्मा ज्योतिबा फुले  की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन करते हुये कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले समाज-सुधार की पवित्र धारा के वह तेजस्वी युगदृष्टा थे, जिन्होंने भारतीय समाज को समता, शिक्षा, न्याय और मानव गरिमा के दिव्य मूल्यों से आलोकित किया। सावित्रीबाई फुले के साथ प्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना, सत्यशोधक समाज का गठन, नारी सम्मान, विधवा विवाह और सामाजिक समरसता हेतु उनका अदम्य संघर्ष राष्ट्र की आत्मा को नई दिशा देता है। “सबके लिए शिक्षा, सबके लिए न्याय” का उनका उद् घोष आज भी आधुनिक भारत का पथप्रकाश है। सत्य, साहस और करुणा से ओतप्रोत उनका जीवन समाज-परिवर्तन की अमूल्य धरोहर है।स्वामी  ने  करौली शंकर महादेव  को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट कर मां गंगा के तट पर उनका अभिनन्दन किया। उन्होंने इस यात्रा को अभुतपूर्व बताया।

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