प्रयोग से निकली और इंटेलक्चुवल क्लास के दिलों में घर करने वाली पहली उत्तराखंड की 12 इंटरनेशनल अवार्ड जीतने वाली हिंदी फिल्म “कलरव”
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मनोज रौतेला की रिपोर्ट-
ऋषिकेश : कलरव यानी चिड़ियों की आवाज, पानी की आवाज, कल कल…नाम से ही प्रकर्ति की ध्वनि निकल रही है. उत्तराखंड की पहली फिल्म कलरव बड़े परदे पर रिलीज हुई शुक्रवार को. देश भर में अलग-अलग शहरों में 6 जगह फिल्म लगी है. फिल्म की शुरुवात घुम्मकड़ी स्वभाव में होती है. फिल्म का हीरो परेशान है, डिप्रेस है अधिकतर आजकल नौजवानों की तरह. ऐसे में उसे उत्तराखंड की वादियां और मां गंगा के आशीर्वाद से उसकी जिंदगी पलट जाती है. फिल्म में कोरोना के समय के दर्द को अलग अलग वर्गों के लोगों के मुंह से जो कहा गया है वह काबिले तारीफ है. वहीँ दूसरी तरफ कुम्भ के रोचक तस्वीरों ने फिल्म को एक मिक्स ड्रामा बना दिया है.
फिल्म ने कुल 12 अवार्ड जीते हैं इंटरनेशनल लेवल पर. अपने आप में यह काफी महत्वपूर्ण है. अब नेशनल अवार्ड की लिस्ट में भी दस्तक दे रही है कलरव. फिल्म में संगीत और गाने काफी अच्छे हैं.लिरिक्स में काफी जान है. एक दो गाने हिट हो जायेंगे इसमें कोई शक नहीं है. कलाकार सभी नए हैं फिल्म में राजेश मालगुड़ी को छोड़कर. जो उत्तराखंडी सिनेमा का चेहरा हैं पिछले 20 वर्षों से. उन्होंने साधू महाराज की भूमिका बखूबी निभाई है और भटके हुए दुःख से भरपूर लोगों को रास्ता दिखाने में वे कामयाब हुए हैं. उनका अभिनय सदा हुआ है. डायलॉग डिलीवरी में आध्यात्मकता झलकती है. फिल्म की हेरोइन अम्बिका आर्य जो ऋषिकेश से है. पहली फिल्म उनकी है लेकिन अभिनय अच्छा किया है. एक एक्ट्रेस में क्या खूबी होनी चाहिए उस रास्ते पर वह चल सकती है. उनका बम्बैया प्यार से पहाड़ों की तरफ रुख करना वह भी एक सामान्य अहसास कराता है. फिल्म का पहला भाग एक तरह से ट्रेवलॉग है. दूसरे हाफ में फिल्म साधु महाराज के प्रकट होने के बाद स्क्रीन पर थोड़ी गंभीरता दिखी है. गंगा नदी के तट और टिहरी, उत्तरकाशी, ऋषिकेश के आस पास के जंगल किसी भी खूबसूरत जगह को टक्कर देते हुए दिखाई दे रहे हैं. हिमाचल के नाहन के रहने वाले हीरो नितिन शर्मा की भी यह पहली फिल्म है. उन्होंने कोशिश की है अभिनय को सामने लाने की. जिस तरह से किरदार उन्होंने निभाया है वह काफी कुछ आजकल के युवा जो डिप्रेस है उसको सामने लाने में सफल हुए हैं.
फिल्म के सहनिर्माता डॉक्टर नितिन आनंद गुप्ता का कहना था कुम्भ की वजह से यात्रा शुरू हुई थी. कुम्भ और हरिद्वार,ऋषिकेश और अन्य जगहों के शॉट डाल कर हमने जो समावेश किया है वह नया है, दूसरी ख़ास बात इसमें टेक्निकली हमने कोई समझौता नहीं किया है. मुंबई से टेक्नीशियन से काम कराकर और एडिटिंग वहीँ कर के फिल्म बनाई है. डाक्यूमेंट्री शूट करने आये थे हम लोग और फीचर फिल्म बनती चलती गयी. फिल्म के डायरेक्टर जगदीश भारती कुम्भ की डाक्यूमेंट्री शूट करने आये थे लेकिन स्क्रिप्टिंग ऑन द स्पॉट हुई है. पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा इस फिल्म से. लोकल लोगों का काफी सहयोग मिला है हमें यहाँ पर. गुप्ता ने कहा उत्तराखंड में काफी पोटेंशियल है फिल्म शूटिंग में. सरकार का भी काफी सहयोग मिला है हमें. हमें सोचा नहीं था हमारी फिल्म इतने अवार्ड मिल पाएंगे. हर एक डायलॉग में एक मैसेज दिया गया है. फिल्म हर वर्ग को राह दिखाती है. गंगा की यात्रा जो दिखाया है जैसे गंगोत्री से पवित्रता से चलती है मैदानी इलाके में आते आते ही वह स्वरुप, रूप बदलने लगती है. उसी तरह फिल्म में भी है.
राकेश धामी जिनकी फिल्म है यह वह पूरी फिल्म में हल्के मूड में दिखे जो फिल्म के अहम किरदार को मजबूती प्रदान कर रहा है. जब भी कहीं ढिलाईपन आ रहा है वहां पर राकेश धामी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर माहौल को सामान्य करने में मदद की है. इस फिल्म ने जो एक सबसे अलग सन्देश देने की कोशिश की है वह है, भारी भरकम बजट की मसाला मूवी के बजाय सिंपल और सीधे फॉर्मेट में बनी फिल्म को भी बॉक्स ऑफिस पर सादा जा सकता है. बी क्लास शहर या सी क्लास शहर से फिल्म बन कर भी आ सकती है यह भी इस फिल्म से जाहिर होता है. हालाँकि कई जगह लिस्पिंग आउट और ब्लर मारने जैसी समस्या आयी है और शार्ट कैमरे में शूट जैसी समस्या है. जो बाद में कन्वर्ट कर कोशिश को नए अंजाम देने की गयी है. लेकिन कहीं न कहीं उससे स्क्रीन पर क्वालिटी का खामियाजा भुगतना पड़ा है. लेकिन प्रयोग से निकली फिल्म इंटेलक्चुवल क्लास के लिए देखने लायक है. परिवार के साथ देख सकते हैं फिल्म को. इसके लिए निर्देशक ने काफी जगह छोड़ी हुई है. फिल्म ट्रेवल, आध्यात्म, प्रकर्ति, युवा पीढ़ी की समस्या, कुम्भ और हरिद्वार की सुंदरता के मध्य अपने आप को रख कर एक फीचर फिल्म का रूप देने में कामयाब कह सकते हैं. फिल्म को 10 में से 7 नंबर दिए जा सकते हैं. इन नंबरों में जो 12 अंतराष्ट्रीय अवार्ड मिले हैं उनकी भी भूमिका है.