(अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस) बाघों के संरक्षण से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण होता है : स्वामी चिदानन्द सरस्वती

- वनों का संरक्षण अर्थात बाघों का संरक्षण..श्रावण माह प्रकृति के नवजीवन का प्रतीक -स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर बाघों के संरक्षण हेतु अधिक से अधिक पौधारोपण करने का आह्वान करते हुये कहा कि वनों का संरक्षण अर्थात बाघों का संरक्षण। बाघ एक अनूठा और अद्भुत प्राणी है जो स्वस्थ व स्वच्छ पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बाघों के संरक्षण से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण होता है।
बाघों के संरक्षण, उनके आवास और उन्हें सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराने हेतु जनसमुदाय को जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है। बाघों को विश्व स्तर पर ‘लुप्तप्राय’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। अतः जो प्रजातियाँ लुप्तप्राय होने के कगार पर है उन प्रजातियों का संरक्षण करना नितांत आवश्यक है, इससे जैव विविधता के साथ खाद्य श्रंखला भी बनी रहेगी।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने संदेश में कहा कि बाघों के संरक्षण का उद्देश्य केवल एक प्राणी को बचाना ही नहीं हैं बल्कि बाघ संरक्षण तो जंगलों, वनस्पतियों और पेड़-पौधों के संरक्षण का प्रतीक है। बाघों का संरक्षण अर्थात पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण। पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण से हमें स्वच्छ जल, शुद्ध वायु और प्रदूषण मुक्त वातावरण मिलेगा जिससे हम अधिक समय तक स्वस्थ रह सकते हैं।
स्वामी ने कहा कि बाघों की प्रकृति एकान्तवास की होती है परन्तु वर्तमान समय में अत्यधिक मात्रा में पेडों को काटा जा रहा हैं और जंगलों को नष्ट किया जा रहा हैं, इससे बाघ जंगलों से बाहर आकर शहरों में आतंक कर रहे हैं, ऐसे में जरूरी है कि उन्हें सुरक्षित वातावरण प्रदान करना। साथ ही जंगल के बीच से गुजरते हुये गाड़ी के हार्न का उपयोग नहीं करना व गाड़ियों की गति को धीमा रखना अत्यंत आवश्यक है। अभी कांवड़ यात्रा के दौरान भी जंगल में रहने वाले प्राणियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।आज श्रावण के दूसरे सोमवार स्वामी ने कहा कि श्रावण माह प्रकृति के नवजीवन का प्रतीक है, जो भगवान शिव की आराधना को समर्पित है और यह माह शिव को अत्यंत प्रिय हैं। श्रावण में शिवलिंग पर जल चढ़ाने और पूजा करने से शुद्धि, बुद्धि, समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती हैं। कावंड में गंगाजल लेकर शिवभक्त शिवालयों में अर्पित कर नवसृजन, नवजीवन व नवकल्याण की प्रार्थना करते हैं।शिव, संहारक और सृजनकर्ता दोनों हैं, जीवन के द्वंद्वों को मूर्त रूप देते हुए सृजन और विनाश दोनों से जुड़े हुए हैं। नटराज का तांडव नृत्य इसका प्रतीक हैं और इसके पीछे एक गहरी अंतर्दृष्टि भी है। शिव के अग्रदूत रुद्र हैं, जो प्राकृतिक तत्त्वों और प्रकृति की दैवीय शक्तियों के प्रतीक हैं इसलिये हमें इस माह में विशेष कर प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण के लिये आगे आना होगा। अधिक से अधिक पौधों का रोपण कर पर्यावरण संरक्षण के अग्रदूत बनना होगा।