स्वामी चिदानन्द सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती के पावन सान्निध्य में अमेरिका में रह रहे भारतीय परिवारों ने मनाया रक्षाबंधन

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  • परमार्थ निकेतन से रक्षा बंधन, संस्कृत दिवस और गायत्री जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं
  • सत्यनारायण कथा कर उत्तराखंड व उत्तराखंड वासियों के स्वास्थ्य पर समृद्धि हेतु की प्रार्थना
  • एक राखी धरती माँ के नाम के संकल्प के साथ वट वृक्ष को बांधी राखी
अमेरिका/ ऋषिकेश : ऋषियों की तपोभूमि और गंगा तट पर स्थित परमार्थ निकेतन में आज भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन, हमारी संस्कृति की आत्मा देवभाषा संस्कृत दिवस, और वेदों की जननी गायत्री जयंती मनायी गयी।स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में अमेरिका में बसे भारतीय परिवारों ने हर्षोल्लास से रक्षाबंधन मनाया। इस अवसर पर श्रद्धापूर्वक सत्यनारायण कथा का आयोजन हुआ, जिसमें उत्तराखंड और उत्तराखंड वासियों के स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और कल्याण हेतु विशेष प्रार्थना की गई। कार्यक्रम के अंत में स्वामी जी ने सभी को ‘एक राखी धरती मां के नाम’ का संकल्प कराया और पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक स्वरूप पवित्र वट वृक्ष को राखी बांधी।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि ज्ञान, दर्शन, काव्य और ईश्वर की दिव्य अभिव्यक्ति की अमर धारा है। इसकी प्रत्येक ध्वनि में विज्ञान है, प्रत्येक श्लोक में सौंदर्य है। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक जड़ों की पहचान है, बल्कि भविष्य की आध्यात्मिक भाषा भी है। संस्कृत में ही वह शक्ति है जो मानवता को एक सूत्र में पिरो सकती है, जो भौतिक प्रगति को आध्यात्मिक संतुलन प्रदान कर सकती है।उन्होंने कहा कि आज जब हम रक्षा बंधन का पर्व मना रहे हैं, तो हमें यह संकल्प लेना होगा कि यह प्रेम, सुरक्षा और विश्वास का सूत्र केवल भाई-बहन के बीच ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के साथ बंधे। इस अवसर पर उन्होंने एक विशेष आह्वान किया, आइए, इस रक्षा बंधन पर हम अपनी धरती मां को भी राखी बांधें। यह राखी हमारे संकल्प की प्रतीक हो, कि हम जल, जंगल, जमीन और जीव-जंतुओं की रक्षा करेंगे, प्रकृति को प्रदूषण और दोहन से बचाएंगे, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित, स्वच्छ और संस्कारित भविष्य का निर्माण करेंगे।
गायत्री जयंती के अवसर पर स्वामी  ने गायत्री मंत्र के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा गायत्री मंत्र केवल एक प्रार्थना नहीं, बल्कि चेतना का जागरण है। यह हमारी बुद्धि को निर्मल, हृदय को करुणामय और जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाता है। स्वामी  ने विशेष रूप से युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि आज की पीढ़ी को तकनीक में दक्ष होना चाहिए, परंतु अपनी जड़ों से जुड़ा रहना उससे भी अधिक आवश्यक है। यदि हम अपनी भाषा, संस्कृति और प्रकृति को बचा लें, तो हम अपनी पहचान बचा पाएंगे। संस्कृत हमें केवल शब्द नहीं, बल्कि जीवन जीने की दिशा और दृष्टि देती है।स्वामी  ने इस अवसर पर एक विशेष धरती मां को राखी अभियान की शुरुआत का आह्वान करते हुये कहा कि इसके अंतर्गत गंगा तट पर, वृक्षों पर और पवित्र धरा को प्रतीकात्मक रूप से राखी बांधकर जल, वायु, मिट्टी और जैव विविधता की रक्षा का संकल्प लें। अभियान का उद्देश्य यह संदेश देना है कि रक्षा बंधन केवल रिश्तों की डोर नहीं, बल्कि हमारी पृथ्वी के साथ अटूट बंधन का भी प्रतीक बन सकता है।
स्वामी  ने कहा कि हम सबको मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि धरती मां सुरक्षित और समृद्ध रहे। उन्होंने कहा कि यदि हम चाहते हैं कि भारत विश्व में फिर से ज्ञानगुरु बने, तो हमें अपनी भाषाओं, विशेषकर संस्कृत का पुनर्जागरण करना होगा। संस्कृत केवल हिन्दू धर्म की भाषा नहीं, बल्कि यह सम्पूर्ण मानवता के उत्थान की भाषा है। इसमें विज्ञान, गणित, चिकित्सा, वास्तु, संगीत, योग, आध्यात्म सबका अक्षय भंडार है।स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने सभी को तीनों पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा, आज का दिन हमें यह स्मरण कराता है कि प्रेम, भाषा और प्रार्थना, ये तीनों जीवन को सुंदर, संस्कारित और सुरक्षित बनाने के सबसे बड़े साधन हैं। आइए, इन पर्वों की त्रिवेणी को अपने जीवन में बहने दें और एक ऐसे भारत का निर्माण करें जो अपनी परंपरा में गौरव महसूस करता हो और भविष्य में भी आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करे।आज अगस्त क्रान्ति के अवसर पर स्वामी  ने कहा कि 9 अगस्त 1942 की अगस्त क्रांति ने भारत की आजादी की राह को नई गति दी। महात्मा गांधी के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के आह्वान पर देशवासी एकजुट हुए और सत्याग्रह व अहिंसा के बल पर स्वतंत्रता संग्राम को निर्णायक मोड़ मिला। यह दिन हमारे त्याग, साहस और एकता के स्वर्णिम इतिहास का अमर प्रतीक है।

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