हल्द्वानी में छात्रसंघ चुनाव में ABVP को झटका, बागी हुई रश्मि लमगड़िया बनी अध्यक्ष
रश्मि लमगड़िया ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज करते हुए इतिहास रच डाला है
हल्द्वानी : उत्तराखंड के दुसरे सबसे बड़े शहर और रॉयल सिटी के नाम से मशहूर हल्द्वानी में सबसे बड़े एमबीपीजी कॉलेज में निर्दलीय प्रत्याशी रश्मि लमगड़िया शनिवार देर शाम चुनीं गई है। रश्मि की जीत ऐतिहासिक तौर पर देखी जा रही है. रश्मि लमगड़िया ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज करते हुए इतिहास रच डाला है। रश्मि एमपीजी (MPG)की पहली छात्रा अध्यक्ष चुनी गई हैं। सुबह से चुनाव में वह लीड करती दिखी.मतगणना के दौरान वह काफी वोटों से आगे चल रही थी. रश्मि ने एबीवीपी प्रत्याशी कौशल बिरखानी को 1294 मतों से बड़े अंतर से हराया है । रश्मि भाजपा की छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थीः परिषद् यानी ABVP से टिकट मांग रही थी लेकिन उसे नहीं दिया गया था. उसके बाद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने रश्मि ने ऐलान कर दिया था. लड़ा और चुनाव जीती. इससे कहीं न कहीं ABVP के संगठन की कमी सामने आयी है जो वह जीत के संभावित प्रयत्यशी को पहचान नहीं पायी. ऋषिकेश में भी ऐसा ही हुआ साक्षी तिवारी जब अध्यक्ष बनी कांग्रेस की छात्रा विंग NSUI से. साक्षी को भी ABVP से टिकट के लिए मना कर दिया था. हालाँकि वह अध्यक्ष पद के लिए नहीं मांग रही थी. दूसरे पद के लिए मांग रही थी. वही साक्षी का कहना था मुझे धोखा दिया गया ABVP के द्वारा.
हल्द्वानी में पहली बार कोई लड़की छात्रसंघ की अध्यक्ष बनी है। एबीवीपी से टिकट नहीं मिलने से नाराज रश्मि लमगड़िया निर्दलीय चुनाव लड़ी थी। अपने प्रत्याशी की जीत पर रश्मि के समर्थकों ने सड़क पर उतर कर जश्न मनाया। इस दौरान समर्थकों ने रश्मि के समर्थन में जमकर नारेबाजी की। यहां रश्मि का कहना है कि वह एबीवीपी कार्यकर्ताओं और एनएसयूआई कार्यकर्ताओं का धन्यवाद करती है और उनके मार्गदर्शन पर उनका आभार व्यक्त किया। हालाकि रश्मि ने अभी किसी भी पार्टी को ज्वाइन करने से साफ इंकार कर दिया है। NSUI का संगठन मजबूत नहीं था फिर से उसने कही जगह अच्छे पदों पर जीत हासिल की है. लेकिन एक बात साफ़ दिखी ABVP का जिस तरह से टिकट का बँटवारा हुआ है उससे काफी युवा प्रत्याशी खफा दिखे. इसका असर कहीं न कहीं आने वाले चुनावों में पड़ सकता है. संगठन को इस पर गौर करना होगा नहीं तो नुक्सान हो सकता है. जरुरत है दोनों जेबों से हाथ निकालने की और संगठन को शक्रिय करने की. क्योँकि ये खाली छात्र संघ चुनाव नहीं थे बल्कि युवाओं की नब्ज टटोलने के लिए एक प्रभावी चुनावी जरिया भी था.