ऋषिकेश :बाई पास रोड स्थित वन विकास निगम के परिसर में भी हरेला (हरियाव) पर्व मनाया गया  वृक्षारोपण कर 

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ऋषिकेश :बाई पास रोड स्थित  वन विकास निगम के परिसर में हरेला (हरियाव) पर्व मनाया गया  वृक्षारोपण कर. इस दौरान निगम के स्थानीय  अधिकारी और  कर्मचारी मौजूद रहे. इस दौरान वहां मौजूद कर्मियों ने तेज पत्ता, नीम्बू, जामुन, आंवला, और आम के पेड़ लगाए. परिसर में अलग अलग जगहों पर इनको लगाया गया. फिर उसके बाद पाने दिया गया. इस दौरान प्रमुख तौर पर डिप्पो इंचार्ज, सूर्य प्रकाश कपरवाण, छेदा लाल, गोविन्द सिंह रौथाण, अनिता आदि लोग मौजूद रहे.

आपको बता दें, हरेला या हरियाव  मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य  का पर्व है और प्रकर्ति से जुड़ा हुआ पर्व है.  जो प्रकर्ति को समर्पित है. हरेला  राज्य में  भव्य तौर पर पर  मनाया जाता है. हरेला पर्व वैसे तो वर्ष में तीन बार आता है- पहले यह कुमाऊं इलाके में मनाया जाता था अब इसकी महत्ता देखकर सरकार सम्पूर्ण राज्य में इसे मनाती है. 

1- चैत्र माह में – प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है. 

2- श्रावण माह में – सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है।

3- आश्विन माह में – आश्विन माह में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है।

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चैत्र व आश्विन माह में बोया जाने वाला हरेला मौसम के बदलाव के सूचक है।

चैत्र माह में बोया/काटा जाने वाला हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है,

तो आश्विन माह की नवरात्रि में बोया जाने वाला हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है।

लेकिन श्रावण माह में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता तथा समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। जिस कारण इस अन्चल में यह त्यौहार अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जैसाकि हम सभी को विदित है कि श्रावण माह भगवान भोलेशंकर का प्रिय माह है, इसलिए हरेले के इस पर्व को कही कही हर-काली के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि श्रावण माह शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है। यह तो सर्वविदित ही है कि उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है। इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण माह में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व है। दैनिक जागरण रुद्रपुर के पत्रकार मनीस पांडे ने बताया कि हरेला पर्व उत्तराखंड के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में भी हरियाली पर्व के रूप में मनाया जाता है। हरियाली या हरेला शब्द पर्यावरण के काफी करीब है। ऐसे में इस दिन सांस्कृतिक आयोजन के साथ ही पौधारोपण भी किया जाता है। जिसमें लोग अपने परिवेश में विभिन्न प्रकार के छायादार व फलदार पौधे रो.पते हैं।

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सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं। दसवें दिन इसे काटा जाता है। 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी! साथ ही प्रभू से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है।

इस दिन कुमाऊँनी भाषा में गीत गाते हुए छोटों को आशीर्वाद दिया जाता है –

जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,
दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंग ज्यू में पांणि छन तक,
यो दिन और यो मास भेटनैं रइतिहास ये,
अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये,
स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो।” 

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