(लेख) चिंतन- माल-ए- मुफ्त  दिले बेरहम…

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चिंतन-
माल-ए- मुफ्त  दिले बेरहम
     पार्थसारथि थपलियाल
पराई बारात में प्रीति भोज का आनंद लोग अप्रिय ढंग से करते हैं। प्लेट में भर भर कर जमा कर लेंगे, खा नही पाए तो उसे छोड़ दिया दूसरी प्लेट उठा ली। सौ रुपये का लिफाफा अभी देना है। खाना तो सभी टेस्ट करना ही होगा। न जाने कौन पूछ लें क्या क्या बना हुआ था। बाद वालों के लिए खाना बचता ही नही। घराती बराती लड़ने लगते हैं। इस नीति को नीतिकार ने बहुत सरल शब्दों में समझा दिया- मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन।
इंसानी आदतें धरती पर एक जैसी हैं। अरब देशों या ईरान इराक में भी मुफ्त के माल को बेरहमी से खानेवाले थे। भारत मे चंदन घिस कर भड़ास निकाली जाती थी। इस कला को भारत मे पेंसिलिन की तरह चेक करने का  श्रेय जाता है देलगूदेशम के संस्थापक आंध्र के नेता नंदमूरी तारक रामाराव को। जिन्होंने 1983 में चुनाव जीतने के लिए दो रुपये किलो चावल देने की घोषणा की थी। तमिलनाडु की दोनों पार्टियों ने इसे विस्तार दिया। धोती, सदृ, मंगलसूत्र, कूकर, टी वी आदि मुफ्त में बांटे जाते रहे। दारू के बिना किसी व्यक्ति का चुनाव जीतना संभव नही। उत्तर प्रदेश में साइकिल, लैपटॉप बांटने के किस्से भी प्रचलन में रहे। सबसे बड़ा दिल रहा अन्ना हज़ारे जी के रामलीला मैदान की अनसन की उपज अरविंद केजरीवाल का। आंदोलन का नाम था “इंडिया अगैस्ट करप्शन” मांग थी लोकायुक्त की। फैला दी मुफ्तखोरी। बिजली फ्री, पानी फ्री, महिलाओं के लिए बस यात्रा फ्री। यह अलग बात कि वास्तव में किसे फ्री…! दिल्ली में रेवेन्यू बहुत इकठ्ठा होता है, अधिकतर काम नगर निगम कर देते हैं। बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाएं मुख्य केसरी हैं जो केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के पास हैं। दिल्ली में जी एस टी अन्य राज्यों के अनुपात में अधिक मिलता है। अब पंजाब में वायदे पूरे  करें तब प्रमाण मिलेगा। अरविंद केजरीवाल से कोई जाति दुश्मनी हो ऐसा नही। चाहे भाजपा हो, कोंग्रेस या कोई भी अन्य दल चुनाव जीतने के लिए ये हथकंडे सभी अपनाते हैं। कोई हिन्दू मुस्लिम तो कोई, दलित-मुस्लिम, कोई ब्राह्मण -राजपूत, तो कोई जाट की खाट पर राजनीति करेंगे। सांविधान निर्माताओं ने सोचा भी न होगा कि भविष्य की राजनीति कामधेनु की तरह हो जाएगी। इसमें पीड़ा दायक एक ही बात है वह ये कि राजनीति ने सामाजिक ताने बाने को नष्ट कर दिया। आपसी सौहार्द को तार तार कर दिया। उदाहरण अनेक हैं। ताज़ा उदाहरण सपा का देख लें पुत्र ने पिता की गद्दी छीनी, तो बहू ने भाजपा का भगवा थामा। भतीजे ने चाचा को झटके दिए तो चाचा ने धुर विरोधी भाजपा के साथ अँखियाँ मटकनी शुरू कर दी। कालिदास ने राजनीति राजनीति के चरित्र  को वैश्या के समान बताया। न जाने कब किसके मुखसुख को बढ़ा दे। प्रसन्नता में पुराने राजा माणिक्य और मोतियों के हर न्यौछावर कर दिया करते थे। राजा विक्रमादित्य और कालिदास प्रति श्लोक पर कार्षापण देने और लेने के किस्से बहुत प्रसिद्ध हैं। वेनेजुएला में 1998 में एक राष्ट्रपति ने जीत के लिए लोकलुभावन नीतियां शुरू की। ये मुफ्त वो मुफ्त, मुफ्त को भी मुफ्त।  इतने लोकप्रिय हुए कि 2013 में मृत्यु तक गद्दी से नही उतरे। बहुत सम्पन्न राष्ट्र था। खज़ाना खाली हो चुका था।
वहाँ महंगाई बहुत बढ़ गई। आज आलम ये है एक कप कॉफी की कीमत 25 लाख रुपये, एक थाली खाना की कीमत एक करोड़ रुपये हो गया। चीन ने हमारे पड़ोसियों को बहुत आर्थिक मदद की।  पड़ोसी देश पाकिस्तान को सब्जबाग दिखानेवाले चीन ने पाकिस्तान को भिखारी बना दिया। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गधों पर आधारित हो गई है। महंगाई चरम पर है। चीन ने श्रीलंका को भी बहुत धन दिया। आज श्रीलंका में आलू 300 रुपया किलो चावल 500 से 1000 रुपये किलो हो गया। देश मे गृहयुद्ध शुरू होनेवाला है। श्रीलंका में जीवन जीना मुश्किल हो गया है। भारत सहयोग  से काम चल रहा है, अन्यथा चीन कब्जा कर चुका होता। नेपाल भी चीन के कर्ज को माल ए मुफ्त का समझा तो दिले बेरहम होना ही था। चीन ने नेपाल की सीमा में अपने गाँव बसा दिए। अब भारत की शरण मे घूम रहा है नेपाल। हमारे देश मे सरकार की अनेक योजनाएँ हैं, जिनसे स्वाभिमानी भारतीय सरकारी टुकड़ों पर पलने का आदि हो गया है। पिंजरे के शेर सर्कस में ही अच्छे लगते हैं। लोगों को स्वावलंबी बनाने में सरकार कुछ भूमिका निभाए, लोगों को सक्षम बनाएं, योग्य बनाएं। उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा करें लेकिन समाज को मुफ्तखोर न बनाएं। मुफ्तखोर व्यक्ति का स्वाभिमाम मर जाता है। वह धूर्त हो जाता है। वह अपने स्वार्थ के लिए देश के विरुद्ध गतिविधियों में शामिल होने में संकोच नही करता।
व्यक्ति स्वाभिमान से जियेगा तो राष्ट्र का स्वाभिमान स्वतः बढ़ेगा। इसलिए माल ए मुफ्त दिले बेरहम की कहावत को बदलें। मुफ्त का माल वोट तो दिला देगा लेकिन अकर्मण्य समाज बुरी तरह रुला देगा।Pic Credit: Internet 

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